क्या पीएम मोदी को पाकिस्तान जाना चाहिए? हां और ना के दृष्टिकोण का विश्लेषण
शंघाई सहयोग संगठन (SCO) का शिखर सम्मेलन इस्लामाबाद में आयोजित होने जा रहा है, जिसमें SCO के सदस्य देशों के राष्ट्राध्यक्ष शामिल होंगे। इस सम्मेलन की तैयारियों के तहत, सीनियर अफसरों की बैठकें और मंत्री स्तर की चर्चाएँ चल रही हैं, जिनका मुख्य ध्यान SCO के सदस्य देशों के बीच आर्थिक, सामाजिक-सांस्कृतिक और मानवीय सहयोग पर होगा। पाकिस्तान इस सम्मेलन का मेज़बान है और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को निमंत्रण भेजा है। हालांकि, प्रधानमंत्री मोदी की इस्लामाबाद यात्रा को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं। विदेश मंत्री एस. जयशंकर के हालिया बयान से ऐसा लगता नहीं कि मोदी पाकिस्तान जाएंगे। इस स्थिति को देखते हुए यह प्रश्न उठता है कि क्या प्रधानमंत्री मोदी को इस्लामाबाद जाना चाहिए?इस सम्मेलन के आयोजन में अभी लगभग डेढ़ महीने का समय है और तब तक अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियाँ भी बदल सकती हैं। बांग्लादेश में हाल ही में हुई घटनाओं ने भारत को प्रभावित किया है। बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना ने भारत में शरण ली है, जिससे भारत-पाकिस्तान संबंधों पर भी असर पड़ा है।
प्रधानमंत्री मोदी के इस्लामाबाद न जाने के पक्ष में कई तर्क प्रस्तुत किए जा सकते हैं। 2014 में प्रधानमंत्री मोदी ने अपने पहले शपथ ग्रहण समारोह में पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को निमंत्रण भेजा था और उनके जन्मदिन पर औचक लाहौर भी गए थे। लेकिन इस तरह की पहल का परिणाम उरी और पुलवामा जैसे आतंकी हमलों के रूप में देखने को मिला। पाकिस्तान ने भारत की पीठ में खंजर घोंपा, जिसका विरोध भारतीय विपक्ष ने किया और मोदी की नीतियों की आलोचना की। क्या प्रधानमंत्री मोदी फिर से अपनी सरकार की छवि को खतरे में डालेंगे? विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने स्पष्ट किया है कि अब पाकिस्तान के साथ बातचीत की संभावना समाप्त हो चुकी है।उरी और पुलवामा हमलों के बाद भारत ने सर्जिकल स्ट्राइक की, लेकिन पाकिस्तान ने सुधार के कोई संकेत नहीं दिए हैं। हाल ही में जम्मू में हुए आतंकी हमलों ने पाकिस्तान की आतंकवादी गतिविधियों की गंभीरता को और उजागर किया है। ऐसे देश के साथ किस प्रकार की बातचीत या मेलजोल रखा जा सकता है, जो आतंकवाद का समर्थन करता है?
जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने के बाद पाकिस्तान ने इस मुद्दे पर लगातार विरोध किया है और अब वह वहां चुनाव कराए जाने के खिलाफ है। मोदी के पाकिस्तान दौरे के दौरान इस मुद्दे पर कोई नई साजिश रची जा सकती है, जिसे देखते हुए सतर्क रहना आवश्यक है।कुछ समय पहले तक, जब कोई विदेशी राष्ट्राध्यक्ष भारत आता था, तो वह पाकिस्तान भी जाता था। लेकिन पिछले दस वर्षों में मोदी ने यह संदेश दिया है कि भारत और पाकिस्तान को एक साथ नहीं देखा जाना चाहिए। यह कोई आवश्यकता नहीं है कि अगर कोई देश भारत के साथ अच्छे रिश्ते रखता है, तो उसे पाकिस्तान के साथ भी अच्छे संबंध रखने चाहिए।भारत ने क्रिकेट और अन्य मोर्चों पर पाकिस्तान को हाशिए पर लाकर उसकी आर्थिक स्थिति को कमजोर किया है। पाकिस्तान के आर्थिक संकट और भारत के साथ रिश्तों की कमी ने वहां के लोगों के बीच असंतोष पैदा किया है। अगर प्रधानमंत्री मोदी पाकिस्तान नहीं जाते हैं, तो यह दबाव बने रहेगा कि पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अलग-थलग रखा जाए।
दूसरी ओर, प्रधानमंत्री मोदी के पाकिस्तान जाने के पक्ष में भी तर्क दिए जा सकते हैं। पिछले साल भारत ने वर्चुअल SCO शिखर सम्मेलन की मेज़बानी की थी, जिसमें पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने भी भाग लिया था। इसी प्रकार, 2023 में गोवा में आयोजित SCO के विदेश मंत्रियों की बैठक में पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो भी शामिल हुए थे। ऐसे बहुपक्षीय आयोजनों में भागीदारी का महत्व होता है और यह भारत के सक्रिय नेतृत्व का संकेत भी है।जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनावों की तैयारी चल रही है और अगस्त 2019 में धारा 370 हटाए जाने के बाद पहली बार ये चुनाव हो रहे हैं। क्षेत्रीय दलों ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में पाकिस्तान के साथ बातचीत और द्विपक्षीय व्यापार को लेकर विचार व्यक्त किए हैं। मोदी की पाकिस्तान यात्रा से जम्मू-कश्मीर के क्षेत्रीय दलों को सकारात्मक संदेश जाएगा और इस प्रकार, इस यात्रा का द्विपक्षीय और क्षेत्रीय राजनीति पर प्रभाव पड़ेगा।
प्रधानमंत्री मोदी पाकिस्तान जाकर चीन को भी संदेश भेज सकते हैं। चीन और पाकिस्तान की साझेदारी भारत के लिए चिंता का विषय रही है। यदि मोदी पाकिस्तान जाकर इस्लामाबाद में अपने विचार प्रस्तुत करें, तो यह दुनिया को यह संकेत दे सकता है कि भारत युद्ध के बजाए शांति की दिशा में अग्रसर है। इससे अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को यह संदेश जाएगा कि भारत आतंकवाद के खिलाफ ठोस कदम उठा रहा है और पाकिस्तान को अपनी नीतियों में बदलाव लाने की आवश्यकता है। अंततः, पाकिस्तान भारत का पड़ोसी देश है और इस समय गंभीर संकट से गुजर रहा है। दोनों देशों के बीच संबंधों को सामान्य बनाने की दिशा में कोई शुरुआत होनी चाहिए। चाहे वह बहुपक्षीय सम्मेलन के माध्यम से ही क्यों न हो। यह एक अवसर हो सकता है कि नई शुरुआत की जाए और द्विपक्षीय संबंधों में सुधार की दिशा में कदम उठाए जाएं।प्रधानमंत्री मोदी के इस्लामाबाद दौरे का प्रभाव निश्चित रूप से होगा, चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक। यह निर्णय अंतरराष्ट्रीय राजनीति, क्षेत्रीय संबंधों और दोनों देशों के बीच की जटिलताओं पर निर्भर करेगा। प्रधानमंत्री मोदी को इस यात्रा के संभावित लाभ और जोखिमों का गहराई से आकलन करने की आवश्यकता होगी, ताकि इस यात्रा के माध्यम से भारत अपने उद्देश्यों को प्राप्त कर सके।
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