असम में ऐतिहासिक बदलाव, 90 साल पुराना मुस्लिम विवाह कानून खत्म, नया विधेयक पारित

मुस्लिम विवाह-तलाक से जुड़ा 90 साल पुराना कानून बन जाएगा इतिहास, असम विधानसभा में विधेयक पारित

असम में ऐतिहासिक बदलाव, 90 साल पुराना मुस्लिम विवाह कानून खत्म, नया विधेयक पारित

असम विधानसभा ने गुरुवार को एक महत्वपूर्ण विधेयक पारित किया, जिसके तहत मुस्लिमों के विवाह और तलाक के लिए सरकारी पंजीकरण अनिवार्य कर दिया गया है। इस विधेयक को "असम मुस्लिम विवाह और तलाक का अनिवार्य पंजीकरण विधेयक, 2024" के नाम से जाना जाएगा। इस विधेयक की पेशकश राजस्व और आपदा प्रबंधन मंत्री जोगेन मोहन ने की थी, और इसके पारित होने के साथ ही 90 साल पुराना मुस्लिम विवाह और तलाक कानून अब अप्रचलित हो गया है।

विधेयक पर चर्चा के दौरान, असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने स्पष्ट किया कि यह कानून केवल नए विवाहों पर लागू होगा और पहले से पंजीकृत सभी विवाहों को वैध माना जाएगा। इसके अलावा, उन्होंने यह भी कहा कि सरकार मुस्लिम पर्सनल लॉ और इस्लामी रीति-रिवाजों में हस्तक्षेप नहीं करेगी, और केवल उन शादियों का पंजीकरण नहीं होगा जो इस्लाम द्वारा निषिद्ध हैं।

मुख्यमंत्री सरमा ने यह भी कहा कि इस विधेयक के लागू होने के बाद बाल विवाह पर प्रभावी नियंत्रण लगेगा। भारतीय कानून के अनुसार, बाल विवाह पूरी तरह से गैरकानूनी है, और यह नया कानून इस प्रथा को समाप्त करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। उन्होंने कहा कि यह कानून किशोर गर्भावस्था को रोकने और लड़कियों के समग्र विकास को बढ़ावा देने के लिए भी काम करेगा।

विधेयक की घोषणा के बाद, जोगेन मोहन ने कहा कि इस नए कानून के माध्यम से बहुविवाह पर रोक लगेगी और विवाहित महिलाओं को उनके वैधानिक अधिकार प्राप्त होंगे, जैसे कि भरण-पोषण और अन्य लाभ। इसके अलावा, विधवाओं को अपने पति की मृत्यु के बाद उत्तराधिकार के अधिकार प्राप्त होंगे, और यह कानून पुरुषों को शादी के बाद पत्नियों को छोड़ने से भी रोकेगा। इस प्रकार, यह विधेयक विवाह संस्था को और मजबूत करने में सहायक होगा।

मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने ट्वीट करके इस विधेयक की महत्वता को बताया और कहा कि यह विधेयक असम की लड़कियों को सम्मानपूर्ण जीवन देने और बाल विवाह को समाप्त करने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है। उन्होंने विधेयक को राजनीतिक दलगत राजनीति से ऊपर मानते हुए इसे सामाजिक सुधार के एक महत्वपूर्ण प्रयास के रूप में प्रस्तुत किया।

विधेयक के पारित होने के बाद, विपक्षी पार्टियों ने इसे मुस्लिम समुदाय के प्रति भेदभावपूर्ण बताते हुए आलोचना की। उनका आरोप है कि यह विधेयक वोट बैंक की राजनीति के तहत पेश किया गया है और इससे समाज में असामंजस्य उत्पन्न हो सकता है। विपक्ष ने कहा कि इस विधेयक के माध्यम से मुस्लिम मतदाताओं को विभाजित किया जा रहा है और इससे उनके धार्मिक अधिकारों का उल्लंघन हो सकता है।

विधानसभा में विधेयक पर हुई बहस के बाद, यह स्पष्ट हो गया कि सरकार इस विधेयक को लागू करने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है और इसे मुस्लिम विवाह और तलाक के प्रबंधन में एक नया दिशा-निर्देश मानती है। हालांकि, इसके लागू होने के बाद इसके प्रभाव और प्रतिक्रिया को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं, जिनका उत्तर समय के साथ ही मिलेगा।

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