मरे हुए फिर ज़िंदा हुए… सिर्फ बीमा क्लेम के लिए!
उत्तर प्रदेश के संभल जिले में पुलिस ने एक बेहद चौंकाने वाले स्कैम का पर्दाफाश किया है, जिसने समाज की संवेदनशीलता और व्यवस्था की कमज़ोरी को एक बार फिर उजागर कर दिया है। यह मामला एक ऐसे अंतरराज्यीय गिरोह से जुड़ा है जो बीमार और मरणासन्न लोगों की पहचान कर उनके नाम पर फर्जी बीमा पॉलिसी बनवाता था और फिर उनकी मौत के बाद बीमा कंपनियों से लाखों-करोड़ों रुपये का क्लेम हासिल करता था। यह सुनकर किसी के भी रोंगटे खड़े हो सकते हैं कि इंसानियत की सभी हदें पार करते हुए यह गिरोह मौत के सौदागर बन चुका था और ज़िंदगी की आख़िरी साँसे गिन रहे लोगों को मुनाफे का ज़रिया बना रहा था।
गिरोह का मुख्य तरीका प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना (PMJJBY) जैसे सरकारी कार्यक्रमों का दुरुपयोग करना था, जिसमें मात्र ₹436 के सालाना प्रीमियम पर ₹2 लाख की बीमा राशि मिलती है। योजना का उद्देश्य था गरीब और जरूरतमंद परिवारों को जीवन सुरक्षा देना, लेकिन इस गिरोह ने इसे भ्रष्टाचार और धोखाधड़ी का हथियार बना लिया। गिरोह के सदस्य अस्पतालों, गांवों और बीमार लोगों के परिवारों से संपर्क करते थे। एक आशा कार्यकर्ता, जिसका नाम नीलम बताया गया है, गिरोह को बीमार और मरणासन्न मरीजों की जानकारी उपलब्ध कराती थी। इसके बाद उनके नाम पर फर्जी दस्तावेज़ तैयार कर बीमा पॉलिसी निकाली जाती थी, और मृत्यु होने के बाद गिरोह बीमा कंपनी से पैसे क्लेम कर लेता था।
पुलिस जांच में सामने आया है कि यह गिरोह कई राज्यों में फैला हुआ है उत्तर प्रदेश के अलावा मध्य प्रदेश, उत्तराखंड और दिल्ली तक इसकी जड़ें फैली हुई थीं। अब तक की कार्रवाई में पुलिस ने 15 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया है और कई अन्य की तलाश अभी भी जारी है। गिरोह के पास से कुल 81 बैंक पासबुक, 35 डेबिट कार्ड, 25 आधार कार्ड, 18 पैन कार्ड, 31 मृत्यु प्रमाण पत्र, 51 फर्जी बीमा क्लेम फॉर्म, 17 बीमा पॉलिसी बांड, 16 चेकबुक, 5 मोबाइल फोन, 7 अलग-अलग कंपनियों के सिम कार्ड और 18 सरकारी मुहरें बरामद की गई हैं। इसके अलावा, पुलिस को आरोपियों के पास से ₹11,45,000 की नकद राशि भी मिली है, जो इस घोटाले की आर्थिक गहराई को स्पष्ट करता है।
एक मामला जो इस घोटाले की भयावहता को दर्शाता है वह त्रिलोक कुमार नामक व्यक्ति से जुड़ा है, जिनकी मृत्यु जुलाई 2023 में हो गई थी। उनकी मौत के तीन महीने बाद गिरोह ने उन्हें जीवित दिखाकर उनके नाम पर दो बीमा पॉलिसियां करवाईं और फिर दिसंबर में फर्जी मृत्यु प्रमाण पत्र बनवाकर क्लेम कर लिया गया। यानी एक व्यक्ति की मौत को भी गिरोह ने दोबारा ज़िंदा कर मुनाफे का सौदा बना दिया। ऐसे कई मामले पुलिस जांच में सामने आ चुके हैं और संभावना जताई जा रही है कि यह आंकड़ा बहुत अधिक हो सकता है।
गिरोह की कार्यशैली बेहद संगठित और तकनीकी रूप से दक्ष थी। वे फर्जी पते, मोबाइल नंबर, पहचान पत्र और मेडिकल दस्तावेज़ों का इस्तेमाल करते थे, जिनमें से कई दस्तावेज़ तो सरकारी अस्पतालों और जनसेवा केंद्रों की मदद से बनाए गए थे। पुलिस को संदेह है कि इस नेटवर्क में कुछ सरकारी कर्मचारी और बीमा एजेंट भी शामिल हो सकते हैं, जिनकी भूमिका की जांच की जा रही है।
इस पूरे मामले की निगरानी संभल की एएसपी अनुकृति शर्मा स्वयं कर रही हैं और उन्होंने स्पष्ट किया है कि जांच की रफ्तार तेज़ कर दी गई है और बहुत जल्द इस नेटवर्क के सभी कड़ियों को सामने लाया जाएगा। यह मामला न केवल अपराध की गहराई दिखाता है बल्कि यह भी उजागर करता है कि किस तरह सरकारी योजनाएं गलत हाथों में जाकर मासूम नागरिकों के लिए जाल बन जाती हैं। जिन योजनाओं का उद्देश्य समाज के गरीब, वंचित और जरूरतमंद तबकों को आर्थिक सुरक्षा देना था, वहीं योजनाएं आज ठगी का माध्यम बन गई हैं।
गिरोह के पास से मिले दस्तावेज़ों और डेटा के आधार पर पुलिस अनुमान लगा रही है कि अब तक इस गैंग ने करीब 5 से 6 करोड़ रुपये तक की बीमा राशि पर कब्जा कर लिया है। बीमा कंपनियों ने भी इस पूरे मामले की जानकारी मिलने के बाद पुलिस के साथ तालमेल बनाकर जांच प्रक्रिया में सहयोग देना शुरू कर दिया है। यह मामला इसलिए भी गंभीर है क्योंकि इसमें कई बार मृतकों के परिजनों को भी यह जानकारी नहीं होती थी कि उनके नाम पर कोई बीमा पॉलिसी थी। कई मामले तो ऐसे हैं जिनमें मरने वाले के परिवार तक को मृतक के कागज़ात से कोई लेना-देना नहीं था, लेकिन फिर भी बीमा राशि क्लेम कर ली गई।
इस पूरी घटना ने एक बार फिर से यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या हमारी प्रणाली इतनी कमजोर है कि कोई भी व्यक्ति फर्जी कागज बनवाकर करोड़ों रुपये का घोटाला कर सकता है, और उसे कई वर्षों तक पकड़ा भी न जाए? क्या बीमा कंपनियों की जांच प्रणाली इतनी लचर है कि मृत्यु प्रमाण पत्र की वैधता तक की पुष्टि नहीं की जाती? क्या सरकारी योजनाएं आज भी उन लोगों की पहुंच में नहीं हैं, जिनके लिए ये बनाई जाती हैं?
हालांकि, संभल पुलिस की इस कार्रवाई ने यह ज़रूर साबित किया है कि यदि इच्छाशक्ति और तत्परता हो तो किसी भी बड़े से बड़े रैकेट का भंडाफोड़ किया जा सकता है। एएसपी अनुकृति शर्मा की अगुवाई में पुलिस की टीम ने जिस तरह से इस मामले को अंजाम तक पहुंचाया है, वह एक मिसाल है। परंतु यह भी सच है कि यह सिर्फ शुरुआत है। अभी कई दस्तावेज़, बैंक रिकॉर्ड, अस्पतालों से जुड़े नाम और नेटवर्क की अन्य शाखाएं जांच के घेरे में हैं। अभी कई चेहरे बेनकाब होने बाकी हैं और कई चौंकाने वाली जानकारियां सामने आनी बाकी हैं।
यह पूरा मामला न केवल कानून और व्यवस्था की परीक्षा है, बल्कि समाज के उस नैतिक ताने-बाने की भी जो आज बिखर रहा है। जब किसी की बीमारी और मौत भी मुनाफे का जरिया बन जाए, तो यह संकेत है कि समाज को अपनी सोच और संवेदनशीलता पर पुनर्विचार करना होगा। यह घोटाला सिर्फ बीमा कंपनियों या सरकार के लिए नहीं, बल्कि हर उस नागरिक के लिए चेतावनी है जो सोचता है कि उसका नाम किसी दस्तावेज़ में सुरक्षित है। पुलिस की तत्परता और संकल्प ने इस बार तो इन मौत के सौदागरों को बेनकाब कर दिया है, लेकिन जरूरी है कि सिस्टम में ऐसे सुधार हों कि कोई भी फिर से इस तरह की घिनौनी साजिश रचने की हिम्मत न कर सके।
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