बीजेपी के उग्र हिंदुत्व की दौड़: हिमंता बिस्वा सरमा और मोहन यादव योगी आदित्यनाथ को कैसे पछाड़ेंगे?


बीजेपी के उग्र हिंदुत्व की दौड़: हिमंता बिस्वा सरमा और मोहन यादव योगी आदित्यनाथ को कैसे पछाड़ेंगे?

2024 के लोकसभा चुनावों के बाद भारतीय जनता पार्टी (भा.ज.पा.) में एक नया राजनीतिक परिदृश्य उभर रहा है। चुनावी हार के बावजूद पार्टी ने केंद्र में सरकार तो बनाई, लेकिन फैसले लेने में पूर्व जैसी आत्म-विश्वासिता अब नहीं दिख रही। इससे पार्टी के भीतर संघर्ष की स्थिति पैदा हो गई है, विशेषकर उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उनके दोनों डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक के बीच। इसके साथ ही, पार्टी के भीतर एक नई होड़ शुरू हो गई है, जिसमें प्रमुख मुख्यमंत्री उग्र हिंदुत्व की दिशा में अधिक से अधिक सक्रिय भूमिका निभाने की कोशिश कर रहे हैं।

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव इस समय हिंदुत्व के पोस्टर बॉय बनने की दौड़ में सबसे आगे दिखाई दे रहे हैं। जन्माष्टमी के मौके पर एक कार्यक्रम में बोलते हुए, मोहन यादव ने कहा कि "भारत में रहना है तो राम और कृष्ण की जय बोलनी होगी।" उन्होंने यह भी जोड़ा कि लोग अपनी धार्मिक स्वतंत्रता का पालन कर सकते हैं, लेकिन उन्हें देशभक्ति की भावना बनाए रखनी होगी। इस बयान में उन्होंने यह भी कहा कि "खाता कहीं और का, बजाता कहीं और का" नहीं चलेगा, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि उनकी सरकार कानून व्यवस्था के प्रति कठोर रवैया अपनाएगी।

मोहन यादव के कार्यकाल की शुरुआत से ही उनकी नीतियों में उग्र हिंदुत्व के संकेत देखे जा सकते हैं। शपथ लेने के तुरंत बाद उन्होंने खुले में मांस की बिक्री पर प्रतिबंध और लाउडस्पीकर पर बैन का फैसला किया। इसके अतिरिक्त, उन्होंने मध्य प्रदेश में भगवान राम और कृष्ण से जुड़े तीर्थ स्थलों को विकसित करने का भी बीड़ा उठाया है और संघ के विचारकों की किताबें कॉलेजों में पढ़ाने का निर्णय लिया है। मदरसों में गैर-मुस्लिम बच्चों की धार्मिक शिक्षा पर भी रोक लगाने की घोषणा की गई है, जिससे उनकी हिंदुत्व समर्थक नीतियों की दिशा स्पष्ट होती है।

असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा इस दौड़ में पीछे नहीं हैं। सरमा ने हाल ही में असम विधानसभा में कहा कि "मैं असम को मियां लोगों की भूमि नहीं बनने दूंगा।" उनके इस बयान का संदर्भ राज्य में हुई बलात्कार की घटनाओं और अन्य सांप्रदायिक तनाव से है। हिमंता सरमा का यह बयान न केवल मुस्लिम समुदाय के प्रति उनकी कठोर नीति को दर्शाता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि वे उग्र हिंदुत्व के पक्षधर हैं।उनकी नीतियों में 'बाढ़ जिहाद' और 'उर्वरक जिहाद' जैसे आरोपों की ओर इशारा करते हुए, सरमा ने मुस्लिम किसानों पर आरोप लगाए हैं और भूमि जिहाद तथा लव जिहाद जैसे मुद्दों पर भी सख्त कानून लाने की बात की है। असम में उनकी लोकप्रियता के पीछे यही उग्र हिंदुत्व की राजनीति एक बड़ा कारण मानी जा रही है।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी इस होड़ में खुद को पीछे नहीं रहने दिया है। योगी ने हाल ही में बांग्लादेश की स्थिति को लेकर आग उगला है और हिंदुओं से सावधान रहने की अपील की है। उनका यह बयान विशेष रूप से उन मुद्दों को लेकर था जो बांग्लादेश में हुई धार्मिक हिंसा से जुड़े थे। इसके अलावा, योगी ने धर्मांतरण विरोधी कानून में संशोधन के लिए एक विधेयक पेश किया, जिससे यह कानून और अधिक सख्त हो गया है।उनकी नीतियों में कांवड़ यात्रा के मार्ग पर विक्रेताओं और दुकानदारों को अपने नाम लिखने का आदेश और अयोध्या रेप केस में आरोपी के मुसलमान होने पर कार्रवाई जैसे कदम शामिल हैं, जो उनकी उग्र हिंदुत्व की छवि को फिर से स्थापित कर रहे हैं।

बीजेपी में उग्र हिंदुत्व की होड़ का मुख्य कारण पार्टी की स्थिति और आगामी चुनावों की राजनीति है। 2024 के लोकसभा चुनावों में पार्टी को मिली शिकस्त ने उसे बहुत कुछ सिखाया है। कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों द्वारा जाति आधारित राजनीति की तेज होती रणनीतियों का सामना करने के लिए बीजेपी ने हिंदुत्व का आक्रामक रुख अपनाया है। पहले भी जब देश में मंडल राजनीति की शुरुआत हुई थी, बीजेपी ने कमंडल के मुद्दे को आगे रखा था। अब वही रणनीति हिंदुत्व के साथ अपनाई जा रही है।

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि योगी आदित्यनाथ की सफलता को देखते हुए अन्य मुख्यमंत्री भी उनके रास्ते पर चलने की कोशिश कर रहे हैं। योगी के कट्टर हिंदुत्व का अनुसरण करने से उन्हें भी अपनी राजनीतिक छवि को बनाए रखने में मदद मिल रही है। यह स्थिति पार्टी के भीतर हिंदुत्व को एक प्रमुख राजनीतिक टूल के रूप में इस्तेमाल करने की प्रवृत्ति को दर्शाती है। एक और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि बीजेपी को यह एहसास हो चुका है कि मुस्लिम समाज से उसे कोई भी वोट नहीं मिलने वाला है। इसलिए हिंदुत्व के ध्रुवीकरण के माध्यम से विपक्षी दलों की आक्रमणकारी नीतियों का मुकाबला करने का प्रयास किया जा रहा है।

2024 के लोकसभा चुनावों के बाद बीजेपी में उग्र हिंदुत्व की होड़ की राजनीति ने एक नई दिशा ले ली है। मुख्यमंत्री मोहन यादव, हिमंता बिस्वा सरमा और योगी आदित्यनाथ इस होड़ में अपनी-अपनी भूमिका निभाते हुए पार्टी की हिंदुत्व आधारित रणनीति को आगे बढ़ा रहे हैं। इस उग्र हिंदुत्व की राजनीति का उद्देश्य न केवल हिंदू वोटरों को एकजुट करना है, बल्कि विपक्षी दलों की जातिवादी राजनीति का भी मुकाबला करना है।  इन नेताओं के उग्र बयानों और नीतियों से यह स्पष्ट होता है कि बीजेपी का अगला लक्ष्य हिंदुत्व के माध्यम से राजनीतिक लाभ हासिल करना है। इसके साथ ही, पार्टी के भीतर हिंदुत्व के झंडे को लेकर जारी होड़ उसकी आगामी रणनीतिक प्राथमिकताओं और चुनावी योजनाओं का संकेत देती है।

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