विश्वभर में कृष्ण भक्ति का विस्तार: इस्कॉन की शुरुआत और भारत में पहला मंदिर



विश्वभर में कृष्ण भक्ति का विस्तार: इस्कॉन की शुरुआत और भारत में पहला मंदिर

 1960 के दशक में एक नई आध्यात्मिक लहर उठी, जिसने पूरी दुनिया को भक्ति और समर्पण का एक नया दृष्टिकोण प्रस्तुत किया। यह लहर तब शुरू हुई जब भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद ने हरे कृष्णा आंदोलन की नींव रखी। इस कहानी की शुरुआत कोलकाता से होती है, जहाँ एक साधारण लेकिन विलक्षण व्यक्ति ने अपने जीवन को भगवान श्री कृष्ण की भक्ति में समर्पित किया।

भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद, जिनका जन्म 1896 में हुआ था, भगवान श्री कृष्ण के प्रति गहरी श्रद्धा और भक्ति रखते थे। वे अपने जीवन को कृष्ण भक्ति के प्रचार में समर्पित करने के लिए प्रसिद्ध थे। 1965 में, जब उन्होंने महसूस किया कि पश्चिमी दुनिया में भगवान श्री कृष्ण के संदेश की जरूरत है, उन्होंने न्यूयॉर्क सिटी की ओर यात्रा की। उनकी इस यात्रा का मकसद था कृष्ण भक्ति के संदेश को पश्चिमी दुनिया में पहुंचाना और वहां एक आध्यात्मिक आंदोलन की शुरुआत करना।

न्यूयॉर्क में पहुंचने के बाद, स्वामी प्रभुपाद ने 1966 में "इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर कृष्णा कॉन्शियसनेस" (ISKCON) की स्थापना की। इस्कॉन का उद्देश्य था लोगों को भगवान श्री कृष्ण के प्रति भक्ति की ओर प्रेरित करना और वैदिक ज्ञान की शिक्षाओं को फैलाना। स्वामी प्रभुपाद की मेहनत और समर्पण ने इस्कॉन को तेजी से बढ़ने में मदद की, और देखते ही देखते, यह आंदोलन विश्वभर में फैल गया।

भारतीय उपमहाद्वीप में इस्कॉन के अनुयायियों ने भगवान श्री कृष्ण के जन्मस्थान वृंदावन में पहला मंदिर स्थापित किया। यह मंदिर 1975 में बनकर तैयार हुआ और कृष्ण-बलराम मंदिर के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर की स्थापत्य कला और भव्यता ने इसे एक प्रमुख धार्मिक स्थल बना दिया। यहाँ कृष्ण जन्माष्टमी जैसे त्योहार धूमधाम से मनाए जाते हैं और भक्तगण भगवान श्री कृष्ण के प्रति अपनी भक्ति व्यक्त करते हैं।

इस्कॉन का उद्देश्य केवल धार्मिक साधना तक ही सीमित नहीं है। इसका प्रमुख उद्देश्य है लोगों को आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान करना, उन्हें ईश्वर से जोड़ना और दुनिया भर में शांति और एकता को बढ़ावा देना। इस्कॉन की शिक्षाओं में श्रीमद्भागवत गीता की शिक्षाओं को प्रमुख स्थान दिया जाता है, जो लोगों को जीवन के उच्चतम लक्ष्य की ओर मार्गदर्शन प्रदान करती है।

भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद की मेहनत और उनके द्वारा शुरू किए गए इस्कॉन आंदोलन ने आज भी लाखों लोगों को आध्यात्मिक जागरूकता और कृष्ण भक्ति की ओर प्रेरित किया है। इस्कॉन के मंदिर और केंद्र अब दुनिया भर में एक आध्यात्मिक आश्रय स्थल के रूप में जाने जाते हैं, जहाँ लोग शांति, भक्ति और आध्यात्मिकता का अनुभव कर सकते हैं।

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