हरियाणा के विधानसभा में निर्दलीय उम्मीदवारों की जीत की गारंटी कौन सी सीटें हैं प्रमुख?

 

हरियाणा के विधानसभा में निर्दलीय उम्मीदवारों की जीत की गारंटी  कौन सी सीटें हैं प्रमुख?

हरियाणा की 90 विधानसभा सीटों में से कुछ पर निर्दलीय उम्मीदवारों का दबदबा स्पष्ट रूप से देखा गया है, जो पार्टी सिंबल की बजाय व्यक्तिगत पहचान और स्थानीय समर्थन पर निर्भर करते हैं। इनमें से चार प्रमुख सीटें ऐसी हैं जहां निर्दलीय उम्मीदवारों ने लगातार जीत दर्ज की है, और एक सीट तो ऐसी है जहां 1996 से अब तक केवल निर्दलीय उम्मीदवार ही सफल हुए हैं। आइए, इन सीटों पर विस्तार से नजर डालते हैं:

पुंडरी
कैथल जिले की पुंडरी विधानसभा सीट पर निर्दलीय उम्मीदवारों का शासन लगातार जारी है। 1968 में पहली बार इश्वर सिंह ने निर्दलीय के रूप में जीत हासिल की थी और कांग्रेस के तारा सिंह को हराया। इसके बाद 1996 में नरेंद्र शर्मा ने भी निर्दलीय के तौर पर जीत दर्ज की। इसके बाद से, इस सीट पर किसी पार्टी के उम्मीदवार को जीत नहीं मिली। 2000 में तेजवीर सिंह, 2005 और 2014 में दिनेश कौशिक, 2009 में सुल्तान और 2019 में रणधीर सिंह गोलेन ने निर्दलीय जीत दर्ज की। 2019 में, गोलेन ने कांग्रेस के सतबीर भामा को हराया था।

नूह
गुरुग्राम लोकसभा क्षेत्र की नूह विधानसभा सीट भी निर्दलीय उम्मीदवारों के लिए अनुकूल रही है। 1967 में रहीम खान ने पहली बार निर्दलीय जीत दर्ज की थी, और इसके बाद 1972 और 1982 में भी उन्होंने निर्दलीय जीत हासिल की। 1989 में हसन मोहम्मद ने भी निर्दलीय के रूप में जीत दर्ज की। इसके बाद, 2005 में हबीबुर रहमान ने फिर से निर्दलीय जीत दर्ज की। नूह सीट पर मुस्लिमों की बड़ी आबादी के चलते निर्दलीय उम्मीदवारों को फायदा हुआ है।

निलोखेरी
करनाल की निलोखेरी विधानसभा सीट पर भी निर्दलीय उम्मीदवारों का प्रभाव रहा है। 1968 में चंदा सिंह ने निर्दलीय के रूप में पहली जीत हासिल की थी। इसके बाद 1982 में, 1987 में जय सिंह राना और 1991 में भी जय सिंह राना ने निर्दलीय जीत दर्ज की। 2019 में, धर्मपाल गोंडर ने बीजेपी के भगवान दास को हराकर निर्दलीय के तौर पर जीत दर्ज की।

हाथिन
पलवल जिले की हाथिन सीट पर भी निर्दलीय उम्मीदवारों की जीत लगातार रही है। 1968 में हेमराज ने पहली बार निर्दलीय जीत दर्ज की थी। 1972 में हेमराज कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े और हार गए। इसके बाद, 2005 में हर्ष कुमार ने निर्दलीय के तौर पर जीत हासिल की, और 2009 में जालेब खान निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में जीतने में सफल रहे।

हरियाणा में निर्दलीय उम्मीदवारों का दबदबा केवल इन सीटों तक सीमित नहीं है। 2005 में, 10 निर्दलीय उम्मीदवार विधानसभा में पहुंचे थे, और 2014 में उनकी संख्या 5 थी जो 2019 में बढ़कर 7 हो गई। निर्दलीय विधायकों ने 2009 और 2019 में सरकार बनाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इन आंकड़ों से स्पष्ट होता है कि निर्दलीय उम्मीदवारों की भूमिका और प्रभाव हरियाणा की राजनीति में एक महत्वपूर्ण घटक रहे हैं।

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