जम्मू-कश्मीर में 10 साल बाद होने वाले विधानसभा चुनाव बहुमत का रास्ता नहीं है आसान
जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनावों की घोषणा के बाद राजनीतिक गतिविधियाँ तेज हो गई हैं। पिछले छह साल से ठंडे पड़े इस क्षेत्र में अब हलचल दिखने लगी है। यह चुनाव, जम्मू-कश्मीर के ऐतिहासिक परिवर्तनों के बाद हो रहे हैं, जिनमें 5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 को खत्म करना और जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश बनाना शामिल है। यह चुनाव विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं क्योंकि यह प्रदेश के भविष्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।
ऐतिहासिक परिवर्तनों के बाद चुनावी माहौल
5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 को समाप्त करने के बाद, जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा मिला और इसे लद्दाख से विभाजित कर अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया। इन परिवर्तनों ने प्रदेश की राजनीतिक और सामाजिक संरचना में गहरा असर डाला है। इसके बाद से जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक गतिविधियाँ सीमित हो गई थीं, लेकिन हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव के दौरान मतदान की रिकॉर्ड संख्या ने विधानसभा चुनाव के लिए आशा की किरण दिखाई है।
पिछले चुनावों का आकलन
लोकसभा चुनावों में, नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) ने कश्मीर की तीन में से दो सीटें जीत ली थीं, जबकि भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने जम्मू की दोनों सीटें बरकरार रखीं। विधानसभा चुनाव में दोनों पार्टियाँ अपने लोकसभा प्रदर्शन को दोहराने के प्रयास में हैं। NC ने 90 विधानसभा क्षेत्रों में से 34 पर जीत दर्ज की थी, जबकि BJP ने जम्मू में 29 सीटों पर विजय प्राप्त की थी। इस आधार पर यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या विधानसभा चुनाव में भी यही वोटिंग पैटर्न देखने को मिलेगा।
NC और कांग्रेस का गठबंधन
सूत्रों के मुताबिक, NC और कांग्रेस के बीच चुनाव पूर्व गठबंधन और सीट-बंटवारे की रणनीति पर बातचीत चल रही है। दोनों पार्टियाँ जम्मू और कश्मीर में विभिन्न विधानसभा क्षेत्रों में एक-दूसरे को समर्थन देने की योजना बना रही हैं। लोकसभा चुनावों के दौरान भी इन दलों के बीच इसी प्रकार का गठबंधन था। NC का उद्देश्य जम्मू में कांग्रेस के उम्मीदवारों को समर्थन देना है, जबकि कांग्रेस कश्मीर में NC का समर्थन करेगी। यह गठबंधन विशेष दर्जे की बहाली जैसे मुद्दों को लेकर भी है, जो कि क्षेत्रीय दलों के चुनावी घोषणापत्र का एक प्रमुख हिस्सा है।
BJP की रणनीति और चुनौती
BJP ने जम्मू और कश्मीर दोनों में अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए कई प्रयास किए हैं। जबकि जम्मू BJP का मजबूत गढ़ रहा है, कश्मीर हमेशा से उसकी कमजोर कड़ी रहा है। पिछले पांच वर्षों में, पार्टी ने घाटी में अपने संगठनात्मक ढांचे को मजबूत करने के लिए काफी समय और संसाधन लगाए हैं। हालाँकि, 2024 के लोकसभा चुनावों में पार्टी ने कश्मीर की तीनों सीटों पर उम्मीदवार नहीं उतारे, जिससे यह संकेत मिलता है कि कश्मीर में पार्टी की स्थिति में बहुत अधिक बदलाव नहीं आया है।
BJP ने पीपुल्स कॉन्फ्रेंस जैसे सहयोगियों के साथ गठबंधन करने के प्रयास भी किए, लेकिन ये प्रयास विफल रहे। लोकसभा चुनावों में इन पार्टियों का प्रदर्शन कमजोर रहा और वर्तमान में ये आंतरिक विद्रोह और बगावत का सामना कर रही हैं। इसके चलते, BJP ने अब अकेले चुनाव लड़ने का निर्णय लिया है। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि क्या पार्टी इस बार कश्मीर में उम्मीदवार उतारेगी या नहीं।
त्रिशंकु विधानसभा की संभावना
इन सभी परिस्थितियों को देखते हुए, जम्मू-कश्मीर में त्रिशंकु विधानसभा की संभावना बनती दिख रही है, जहां कोई भी पार्टी अकेले सरकार बनाने में सफल नहीं हो पाएगी। सत्ता में आने के लिए किसी भी दल को गठबंधन की आवश्यकता पड़ेगी। जम्मू में अच्छा प्रदर्शन करने वाली पार्टी को कश्मीर में बेहतर प्रदर्शन करने वाले दल के साथ गठबंधन करना होगा, ताकि स्थिर सरकार बनाई जा सके।
जम्मू-कश्मीर में आगामी विधानसभा चुनाव न केवल प्रदेश की राजनीति के भविष्य को आकार देंगे बल्कि यह भी दिखाएंगे कि अनुच्छेद 370 के समाप्त होने के बाद राजनीतिक परिदृश्य कैसे बदल रहा है। NC और कांग्रेस का संभावित गठबंधन, BJP की चुनौतियाँ और क्षेत्रीय मुद्दे, इन चुनावों की दिशा तय करेंगे। यह चुनाव प्रदेश की राजनीतिक जमीन को फिर से समेटने का अवसर प्रदान करेंगे और यह देखने योग्य होगा कि कौन सी पार्टी और गठबंधन प्रदेश की राजनीति में प्रमुख भूमिका निभाते हैं।
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