रात की नौकरी और असुरक्षा: एक महिला कर्मी की अंधेरे में हकीकत

रात की नौकरी और असुरक्षा: एक महिला कर्मी की अंधेरे में हकीकत

रात की नौकरी और असुरक्षा: एक महिला कर्मी की अंधेरे में हकीकत

कोलकाता में महिला डॉक्टर से रेप और हत्या के बाद ‘नाइट शिफ्ट’ शब्द एक बार फिर से चर्चा के केंद्र में आ गया है. घटना के बाद से लड़कियों और महिला कर्मियों के नाइट शिफ्ट करने और उनकी सुरक्षा को लेकर तमाम सवाल खड़े हो गए हैं. यहां सवाल केवल कोलकाता को लेकर नहीं है बल्कि सभी बड़े शहरों का है. जहां, रोजी-रोटी के चक्कर में लड़कियों-महिलाओं को नाइट शिफ्ट करनी पड़ती है. कई बार तो ऐसा भी होता है कि नाइट शिफ्ट की वजह से महिला कर्मचारियों को सामाजिक ताना-बाना भी सुनना पड़ता है और अब तो सोशल मीडिया का जमाना है. नाइट शिफ्ट को लेकर आज हम आपको कई ऐसीमहिला कर्मियों से रूबरू कराएंगे जिन्हें रोजी-रोटी के लिए रात में ड्यूटी करनी पड़ती है.

रात के डेढ बज रहे थे नोएडा के एक पब में पार्टी चल रही थी. श्वेता (बदला हुआ नाम) बीच में वॉशरूम गई तो देखा तो वहां महिला सफाई कर्मी मौजूद थी. श्वेता ने पूछा अरे इतनी रात तक आपकी ड्यूटी चल रही है? सफाई कर्मा ने हां, 12 घंटे की ड्यूटी है जो रात 2 बजे तक चलती है. श्वेता ने फिर पूछा तो आप घर कैसे जाती हैं? महिला ने जवाब दिया कि कंपनी से कैब मिलती है, लेकिन हम गांव में रहते हैं. रात में घर पहुंचने पर गांव वाले अलग-अलग तरह की बातें बनाने लगते हैं. इसलिए मेरे पति खुद मुझे लेने आ जाते हैं. या फिर कभी-कभी मैं ऑटो से घर चली जाती हूं. श्वेता ने फिर पूछा रात 2 बजे घर जाने में आपको डर नहीं लगता है? थोड़ा हिचकिचाते हुए महिला ने फिर जवाब दिया और कहा कि डर लगता तो है, लेकिन रोजी-रोटी का सवाल है क्या कर सकते हैं.

फीमेल नर्सिंग स्टाफ की नाइट ड्यूटी

देशभर में फीमेल नर्सिंग स्टाफ की भी यही हालत है. ग्रेटर नोएडा के एक हॉस्पिटल में काम करने वाली 24 साल की मेघा 2021 में अपने होमटाउन हापुड़ से नोएडा आई थीं. उस समय उन्होंने जनरल नर्सिंग मिडवाइफ (GNM) डिप्लोमा कोर्स में दाखिला लिया था. पढ़ाई के दौरान वह क्लिनिक पर नौकरी करती थीं, लेकिन कोर्स पूरा होने के बाद इस हॉस्पिटल में नौकरी करने लगी. वह गाजियाबाद में रहती हैं और नाइट शिफ्ट में नर्सिंग स्टाफ हैं. नाइट शिफ्ट रात 8 बजे से सुबह 8 बजे तक होती है. रात 8 बजे जब घर से हॉस्पिटल के लिए निकलती हैं तो मन में एक डर होता है कि कहीं कुछ गलत न हो जाए. सर्दियों में तो अंधेरा और भी जल्दी हो जाता है और सड़क सुनसान. मेघा रिक्शे से अस्पताल तक की दूरी में पीछे किसी भी आहट से घबरा उठती हैं.

मेघा बताती हैं कि डर केवल बाहर ही नहीं होता, ये डर हॉस्पिटल के अंदर भी रहता है. हमेशा एक फीमेल स्टाफ के साथ एक मेल स्टाफ दिया जाता है, लेकिन कई बार ऐसा नहीं हो पाता है. कई बार ऐसा भी होता है कि एक मेल मरीज प्राइवेट कमरे में होता है और उसे हमें अकेले देखने जाना पड़ता है. आए दिन जिस तरह के मामले सुनने देखने में आते हैं उससे किसी मरीज के कमरे में अकेले तीमारदारी के लिए जाते हुए भी डर लगता है. जो भी काम होता है, उसे जल्दी से खत्म करकेचले आते हैं. रात में कई बार इमरजेंसी वार्ड में आए मरीज के साथ 10-20 लोग आ जाते हैं, जिसमें सभी मेल होते हैं. उस समय भी बहुत डर लगता है.

आगे कहती हैं, डर तो डर इस सबके बाद नाइट शिफ्ट में काम करने पर समाज और रिश्तेदार के भी न जाने कितने सवालों का जवाब भी देना पड़ता है. रात के बजाय दिन में काम करने की बिन मांगी सलाह सुननी पड़ती हैं. दूर बैठी मां को भी कई तरह की चिंता होती है. काम के बीच उनका कई बार फोन आता है और हर बार उनके यही सब सवाल होते हैं कि आसपास महिला स्टाफ तो है, वहां कितने लोग काम कर रहे हैं. शायद ऐसा ही फोन कोलकाता की डॉक्टर की मां ने भी किया होगा जब उसने बताया कि वो खाना खा लेगी, लेकिन कोई राक्षस उसको ही लील गया.

सैन्य अधिकारी की नाइट ड्यूटी

एयरफोर्स की पूर्व ऑफीसर आकांक्षा (बदला हुआ नाम ) कहती हैं नाइट ड्यूटी और ऑड वर्किंग ऑवर विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण होते हैं, इस समय शरीर स्वाभाविक रूप से आराम की स्थिति में होता है. वर्दी में महिलाओं के लिए यह चुनौती और भी बढ़ जाती है, क्योंकि उन्हें रात में नियमित अंतराल पर गार्ड चेक करना पड़ता है. ऐसे में महिलाओं को असुविधा ना हो इसलिए पर्याप्त सुविधाएं होना बहुत जरूरी है. कई यूनिट्स और स्टेशनों में अब महिलाओं के लिए सेफ, अच्छी तरह से रोशनी वाली और आरामदायक रेसीडेंशियल फैसिलिटी दी गई है. ये बेसिक जरूरतें अगर पूरी हैं तो महिलाएं सेफ्टी का स्ट्रेस लिए बिना अपने काम पर फोकस रख सकती हैं.

सफाईकर्मी, स्वास्थकर्मी और सेना की पूर्व अधिकारी इन तीनों से बात करके हमने जाना कि हम कितनी भी मॉडर्न बातें करके डेवलप्ड सोसायटी होनें का दम भर लें, लेकिन सच यही हैं कि समाज सड़क पर काम करने सफाईकर्मी से लेकर वर्दी में तैनात ग्रेड वन महिला ऑफीसर तक को सुरक्षा का वो भाव नहीं दे पाया हैं जिसमें वो दिन हो या रात निर्भय होकर काम करे. कितनी विडम्बना हैं शरीर के बंधन से मुक्त होकर ही दिल्ली में वो निर्भया कहलाई. क्या त्रासदी है कि कोलकाता में डर और दहशत के पलों में जिसने जान गंवा दी हम उसे निर्भया कह रहें हैं?

क्या महिलाओं के लिए नाइट ड्यूटी सुरक्षित है?

अंधेरा शब्द में ही असुरक्षा का भाव है, यही वजह है कि कामकाजी महिलाओं के लिए नाइट शिफ्ट मेंटल चैलेंज तो है ही. सोशल और सेफ्टी चैलेंज भी है. सवाल समाज से, सवाल प्रशासन से और सवाल उन सभी प्रोफेशनल नियमों पर भी कि क्या नाइट शिफ्ट महिलाओं के लिए सुरक्षित है? ऐसे और भी कई सवाल हैं जो ऐसे अपराधों के बाद उठ रहे हैं. क्योंकि कई बार महिलाओं को नाइट शिफ्ट की वजह से नौकरी छोड़नी पड़ती है. कई बार परिवार की रजामंदी नहीं मिलती तो कई बार आस-पास का माहौल ही उन्हें नाइट शिफ्ट से रोकता है. अकेले सफर करने से लेकर, दफ्तर पहुंचने तक ना जाने दहशत के कितने पड़ाव पार करके वो ऑफिस पहुंचती होंगी.

नाइट शिफ्ट के लिए क्या इंतजाम?

नाइट शिफ्ट में काम करने वाली महिलाओं के लिए सरकार की ओर से कई नियम बनाए गए हैं, लेकिन उनका पालन शायद ही कहीं होता है. नियमों को ताक पर रखकर काम कराने वाली कंपनियों और संस्थाओं को महिलाओं की फिक्र होती भी है या नहीं, बड़ा सवाल है? जब इस तरह के घटना होती है तो जिम्मेदार अधिकारी एक-दूसरे पर आरोप लगाने लगते हैं.

भारत में नाइट शिफ्ट के लिए क्या कानून है?

16 दिसंबर 2012 को हुए निर्भया कांड ने पूरे देश को हिला कर रखा दिया था. इस घटना के बाद दिल्ली पुलिस ने निजी कंपनियों के लिए महिला कर्मचारियों को घर तक छोड़ने की सुविधा देना अनिवार्य कर दिया था. साल 2020 में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी बजट पेश करते हुए कहा था कि महिलाओं को पर्याप्त सुरक्षा के साथ सभी सेक्टर में और रात की शिफ्ट में काम करने की अनुमति होगी.किसी भी कंपनी में रात में काम करने वाली महिलाओं के लिए नियम पहले ही बनाए गए थे. जिन्हें व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य स्थिति संहिता, 2020 में अधिसूचित किया गया था. जिसके हिसाब से, सुबह छह बजे से पहले और शाम को सात बजे के बाद महिलाओं के काम करने पर कंपनी को महिला कर्मचारी की सहमति लेनी होगी. उनकी सुरक्षा और काम के घंटों का भी ध्यान रखना होगा.

सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020 (36 एफ 2020) कानून के अनुसार मातृत्व लाभ प्रावधानों के खिलाफ किसी भी महिला को नियुक्त नहीं किया जा सकता है. इसके साथ मातृत्व लाभ अधिनियम (Maternity Benefit Act) के अनुसार, नाइट शिफ्ट में काम करने वाली गर्भवती महिलाओं के लिए विशेष प्रावधान बनाया गया है. व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य स्थिति संहिता (OSH कोड), 2020, के तहत पुरुषों, महिलाओं, और ट्रांसजेंडरों के लिए अलग-अलग बाथरूम और लॉकर रूम होना चाहिए. खड़े होकर काम करने वाले कर्मचारियों के लिए बैठने की व्यवस्था के साथ पोर्टेबल पीने वाले पानी की व्यवस्था हो महिलाएं जिस गेट से एंट्री या एग्जिट करती हैं, वहां पर पर्याप्त लाइट हो. महिला कर्मचारियों को उनके निवास पर ऐसे कर्मचारियों को लेने और छोड़ने के लिए कैब की फैसिलिटी दी जाएगी.

सरकार और पुलिस की एडवाइजरी

गौतम बुद्ध नगर की वीमेन सिक्योरिटी डीसीपी सुनीति बताती हैं कि नोएडा जैसा 24 घंटे चलता है. हमारा प्रयास भी है कि वो चले और सुरक्षित चले. यूपी सरकार ने एक एडवाइजरी भी जारी की है. ऐसी बड़ी-बड़ी संस्थाएं, जिमसें ज्यादा महिलायें काम करती हैं या जो off duty hours होता है. उनको अपने स्तर पर क्या करना चाहिए, एक एडवाइजरी पुलिस मुख्यालय से भी जा रही है. जिसका हम लोग अपने स्तर से प्रचार-प्रसार कर रहे हैं. हम संस्थाओं तक भी इस एडवाइजरी को पहुंचाने का काम कर रहे हैं. डीएम की मीटिंग कंपनी के मालिकों से साथ कराई जाएगी जिसमें बताया जाएगा कि हम लोग क्या काम कर रहे हैं और एम्प्लायर के तौर पर उनकी क्या जिम्मेदारी है.

कोलकाता की घटना के बाद सुरक्षा सबक

आरजी कर मेडिकल कॉलेज में उस रात महिलाओं की सुरक्षा के लिए क्या कोई इंतजाम था भी? महिला डॉक्टर अपने काम के बीच में थोड़ी देर के लिए कहीं आराम कर सकें, इसके लिए रेस्ट रुम तक नहीं था. आरोपी संजय रॉय ने पूछताछ में बताया पीड़िता चिल्ला रही थी, इसलिए उसने उसका गला दबा दिया. अब सोचिए कोई इतने पास भी नहीं था कि चीखें सुन सकता था.

घटना के बाद जगा पश्चिम बंगाल का स्वास्थ्य विभाग

इस घटना के बाद पश्चिम बंगाल के स्वास्थ्य विभाग ने गवर्नमेंट और प्राइवेट सेक्टर में काम करने वाली महिलाओं की सुरक्षा बढ़ाने के लिए ‘रात के साथी – हेल्पर्स ऑफ द नाइट’ से एक कार्यक्रम भी शुरू किया. नए दिशा-निर्देश उन मेडिकल कॉलेजों, अस्पतालों और छात्रावासों में लागू किए जाएंगे, जहां पहले से ऐसे प्रावधान नहीं हैं. इस प्रोग्राम के तहत नाइट शिफ्ट के दौरान महिला हेल्थ केयर वर्कर की सुरक्षा के लिए महिला स्वयंसेवकों को ड्यूटी पर तैनात किया जाएगा.

नए दिशा निर्देशों में बताया गया कि महिलाओं के लिए शौचालय के साथ अलग विशेष शौचालय होने चाहिए. पूरी तरीके से सीसीटीवी कवरेज के साथ महिलाओं के लिए सुरक्षित क्षेत्र बनाया जाएगा. अलार्म उपकरणों के साथ एक विशेष मोबाइल फोन ऐप विकसित किया जाएगा, जो अनिवार्य रूप से होने चाहिए. इस ऐप को महिलाओं द्वारा डाउनलोड करवाया जाएगा और यह ऐप स्थानीय पुलिस स्टेशनों से जुड़ा होगा.

नाइट शिफ्ट एक पूरे परिवार की चिंता

नाइट शिफ्ट काम करने वाली लड़कियां ही नहीं बल्कि उनके परिवार वाले भी उसकी सुरक्षा को लेकर परेशान रहते हैं. कई परिवार ऐसे हैं, जो बेटी के साथ कोई घटना न हो जाए. इस डर में रात में उन्हें नौकरी करने नहीं जाने देते हैं. कुछ परिवार ऐसे भी हैं, जो बेटियों को जाने तो देते हैं लेकिन रात में कई बार फ़ोन करके पूछते रहते हैं कि तुम ठीक तो हो न.

नाइट शिफ्ट या शाम 3 बजे से रात 12 तक काम करने वाली कुछ लड़कियां बतातीं हैं कि जैसे शिफ्ट ओवर होती है, वैसे ही घर से फ़ोन आने लगता है. कई बार जब आप फोन नहीं उठा पाते हैं तो घरवालों को धड़कने बढ़ जाती हैं. घरवालों की सख्त हिदायत होती है कि फ़ोन जरूर उठाना. नौकरी करने गई बिटिया सुरक्षित घर वापस पहुंच जाती हैं तभी मां सुकून से सो पाती हैं. कई बार लड़कियां लाइव लोकेशन को भी घरवालों के साथ शेयर करती हैं. ये सब कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि काम के साथ इन सब बातों का भी तनाव लेकर जीना पड़ता है.

नियम हैं, लेकिन पालन नहीं

ये सभी नियम और कानून तो बना दिए गए लेकिन इसका कितना पालन होता है, उसका जवाब हर दिन हो रही घटनाएं दे रही हैं.जब तक कोई वीभत्स घटना नहीं होती तब तक पुलिस, सरकार और समाज की आंखें नहीं खुलती. किसी भी घटना के बाद कैंडल मार्च और विरोध प्रदर्शन करने वाले लोग कड़े से नियम- कानून बनाए जाते हैं लेकिन? इस देश में नियम-कानून थे, उसके बाद भी ‘मैं 5 मिनट में घर पहुंच रहीं हूं, मेरा नाश्ता तैयार रखना.’ अपनी मां से ये बात कहने वाली आईटी प्रोफेशनल जिगिशा घोष कभी अपने घर नहीं लौटी.

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