रोहन जेटली: बीसीसीआई सचिव पद की दौड़ में परिवार की क्रिकेट विरासत का प्रभाव

रोहन जेटली: बीसीसीआई सचिव पद की दौड़ में परिवार की क्रिकेट विरासत का प्रभाव

रोहन जेटली: बीसीसीआई सचिव पद की दौड़ में परिवार की क्रिकेट विरासत का प्रभाव

जब हम दिल्ली के फिरोजशाह कोटला स्टेडियम की बात करते हैं, तो हमें अरुण जेटली के योगदान को याद करना अनिवार्य हो जाता है। 1999 में जब अरुण जेटली ने दिल्ली जिला क्रिकेट संघ (DDCA) के अध्यक्ष का पद संभाला, तब उन्होंने इस संस्था को एक नई दिशा देने का काम किया। उनके कार्यकाल में कई चुनौतियाँ आईं, लेकिन उन्होंने कभी भी हार मानने की बजाय चुनौतियों का सामना किया। बिशन सिंह बेदी जैसे दिग्गज खिलाड़ियों ने उनकी नीतियों का विरोध किया, लेकिन जेटली ने अपने फैसलों पर कायम रहते हुए डीडीसीए को मजबूती दी। यहाँ तक कि उन्होंने बेदी को अपना वोट भी दिया, यह जानते हुए कि वह हारने वाले हैं। इस पर बहस होती रही कि यह एक ‘पब्लिसिटी स्टंट’ था या नहीं, लेकिन सच तो यह है कि अरुण जेटली का बिशन सिंह बेदी के प्रति सम्मान कभी कम नहीं हुआ।

अरुण जेटली का दिल्ली क्रिकेट से गहरा रिश्ता था। उनकी मृत्यु के बाद, फिरोजशाह कोटला स्टेडियम का नाम अरुण जेटली स्टेडियम रखा गया, हालांकि इस पर बिशन सिंह बेदी ने विरोध किया और स्टेडियम से नाम हटाने की मांग की। फिर भी, दिल्ली क्रिकेट जगत में अरुण जेटली की छवि एक सशक्त और सहयोगी नेता के रूप में स्थापित रही। उन्होंने विराट कोहली जैसे खिलाड़ियों के व्यक्तिगत दुखों और क्रिकेट के मैदान में उनके संघर्ष को भी समझा और समर्थन दिया। यही कारण था कि वीरेंद्र सहवाग की शादी भी उनके घर से हुई थी।

अरुण जेटली की कार्यशैली और उनके साथियों के प्रति स्नेह को देखकर यह साफ था कि उनके लिए क्रिकेट एक गहरा जुनून था। उनके बाद डीडीसीए के कामकाज में कई बदलाव आए। वीरेंद्र सहवाग, गौतम गंभीर और आशीष नेहरा जैसे प्रमुख खिलाड़ियों ने डीडीसीए के कामकाज के तरीके पर सवाल उठाए, लेकिन अरुण जेटली ने धैर्यपूर्वक उन समस्याओं का समाधान किया। उनके व्यस्त राजनीतिक कार्यक्रमों के बावजूद, क्रिकेटर्स के लिए हमेशा समय निकाला। यही वजह थी कि विरोधियों की समस्याओं का समाधान अंततः उन्हीं की ताकत से किया जाता था। यहां तक कि एक बार सीजन के बीच में ही उन्होंने सेलेक्शन कमेटी को बर्खास्त कर दिया था, यह दिखाता है कि वे अपनी जिम्मेदारियों के प्रति कितने गंभीर थे।

अब, रोहन जेटली के सामने एक नई चुनौती है। भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) के सचिव जय शाह के आईसीसी चेयरमैन बनने के बाद, बीसीसीआई सचिव की कुर्सी खाली हो जाएगी। रोहन जेटली, जय शाह के दोस्त हैं, और इस कारण उनके नाम की चर्चा शुरू हो गई है। हालांकि, बीसीसीआई की राजनीति में उनकी स्वीकार्यता और प्रभाव के लिए अभी उन्हें बहुत कुछ करना होगा। फिलहाल, रोहन जेटली की प्राथमिकता दिल्ली प्रीमियर लीग पर केंद्रित है। उन्होंने इस लीग को स्थापित कर दिल्ली के क्रिकेटरों को आईपीएल और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेलने का एक नया अवसर प्रदान किया है।

रोहन जेटली ने डीडीसीए अध्यक्ष पद संभालने के बाद कई महत्वपूर्ण सुधार किए हैं। उन्होंने स्टेडियम के ओल्ड पैवेलियन और उसके आसपास के बंद हिस्सों को खोलने के लिए मंजूरियां प्राप्त कीं, और पिच की गुणवत्ता में सुधार किया। विश्व कप के दौरान स्टेडियम के अपग्रेडेशन को भी पूरा किया गया। इन सुधारों ने डीडीसीए को और अधिक पेशेवर और आधुनिक बनाया है। रोहन जेटली की कार्यशैली ने साबित कर दिया है कि वे अपने पिता के नक्शे कदम पर चल रहे हैं।

फिर भी, डीडीसीए और बीसीसीआई की राजनीति में महत्वपूर्ण अंतर हैं। बीसीसीआई की राजनीति अधिक जटिल और प्रतिस्पर्धात्मक है। रोहन जेटली को अपनी स्वीकार्यता और प्रभाव बढ़ाने के लिए समय और प्रयास की आवश्यकता होगी। वे युवा हैं और अभी भी बीसीसीआई के अन्य पदाधिकारियों जैसे आशीष शेलार और देवजीत सैकिया की तुलना में अपनी स्थिति को मजबूत करने का अवसर तलाश रहे हैं।

आखिरकार, रोहन जेटली के पास अपने पिता की विरासत को संभालने की चुनौती है, और उनके द्वारा किए गए सुधार और प्रयास उनकी इस जिम्मेदारी को निभाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। उन्हें इस लंबी यात्रा में अपनी जगह बनानी होगी और भारतीय क्रिकेट के विकास में अपना योगदान देना होगा।

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