सरमा बनाम योगी: असम और उत्तर प्रदेश में हिंदुत्व की दौड़

सरमा बनाम योगी: असम और उत्तर प्रदेश में हिंदुत्व की दौड़

 सरमा बनाम योगी: असम और उत्तर प्रदेश में हिंदुत्व की दौड़

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की बढ़ती लोकप्रियता और राजनीतिक ताकत की वजह से उनकी छवि एक हिंदुत्व के पोस्टर बॉय के रूप में बन चुकी है। उनका आक्रामक हिंदुत्व रुख और कई विवादास्पद निर्णय उन्हें भारतीय राजनीति में एक प्रमुख स्थान पर ले आए हैं। उनकी राजनीति ने न सिर्फ उत्तर प्रदेश बल्कि पूरे देश में चर्चा का विषय बना दिया है। अब, असम के मुख्यमंत्री हिमन्ता बिस्व सरमा भी इस ट्रेंड का हिस्सा बनते दिखाई दे रहे हैं।हिमन्ता बिस्व सरमा, जिन्होंने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) जॉइन करने के बाद से ही हिंदुत्व की राजनीति में अपनी जगह बनाई है, ने हाल ही में योगी आदित्यनाथ की राह पर चलते हुए अपने राज्य असम में भी हिंदुत्व के मुद्दों को प्रमुखता से उठाना शुरू किया है। सरमा ने असम में लव जिहाद के खिलाफ कड़ा कानून लाने की योजना बनाई थी, जैसा कि योगी ने उत्तर प्रदेश में किया था। लेकिन अब उनकी रणनीति लव जिहाद से कहीं आगे की है। सरमा ने कई प्रकार के जिहाद का जिक्र करते हुए नई विवादास्पद पहल की है, जो उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा और हिंदुत्व की राजनीति के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाती है।

हिमन्ता सरमा का मानना है कि असम में मुसलमानों द्वारा जमीन की बिक्री पर अंकुश लगाने की जरूरत है। उन्होंने 'भूमि जिहाद' की बात की और कहा कि एक ऐसा कानून लाया जा सकता है जिसमें हिंदुओं और मुसलमानों के बीच भूमि लेनदेन के लिए मुख्यमंत्री की सहमति अनिवार्य हो। इस कानून का उद्देश्य यह है कि जमीन की बिक्री में किसी भी तरह की सांप्रदायिक असंतुलन को रोका जा सके। सरमा की इस सोच से यह स्पष्ट है कि वे अपनी राजनीतिक रणनीति में हिंदुत्व के मुद्दों को प्रमुख स्थान देने के लिए तैयार हैं।सिर्फ भूमि जिहाद तक ही नहीं, हिमन्ता ने हाल ही में 'उर्वरक जिहाद' का भी जिक्र किया है। उनके अनुसार, उर्वरक के अत्यधिक उपयोग के कारण फसलों में बीमारियाँ फैल रही हैं और यह एक प्रकार का जिहाद है। उनकी इस तरह की बयानों से यह संकेत मिलता है कि वे हर समस्या को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश कर रहे हैं।

हाल में, सरमा ने गुवाहाटी में आई बाढ़ को 'बाढ़ जिहाद' का परिणाम बताया है। उनका आरोप है कि बाढ़ का कारण पहाड़ियों और वनों की कटाई है, जो कि एक मुस्लिम स्वामित्व वाले विश्वविद्यालय के निर्माण के कारण हुई। सरमा ने विश्वविद्यालय की वास्तुकला को भी जिहाद का प्रतीक करार दिया, जिसमें उन्होंने मुख्य दरवाजे पर तीन गुम्बदों को जिहाद का प्रतीक बताया। यह बयान दर्शाता है कि हिमन्ता की दृष्टि में हर समस्या को किसी न किसी रूप में सांप्रदायिक संदर्भ से जोड़ दिया जाता है।हिमन्ता की ये पहलें और बयान बीजेपी की राजनीति में उनके स्थान को मजबूत करने का एक तरीका हो सकता है। असम में उनकी हिंदुत्व की राजनीति को देखते हुए यह स्पष्ट होता है कि वे योगी आदित्यनाथ की आक्रामक राजनीति को भी चुनौती देने का इरादा रखते हैं। बीजेपी के अंदर भी इस तरह की राजनीति के माध्यम से वे अपने समर्थकों को प्रभावित करने की कोशिश कर रहे हैं।

वहीं, योगी आदित्यनाथ ने भी हाल ही में अपने हिंदुत्व के एजेंडे को और मजबूत किया है। उत्तर प्रदेश में धर्मांतरण विरोधी कानून में संशोधन का विधेयक पेश किया गया है, जिससे लव जिहाद को खत्म करने का इरादा और सख्त हो गया है। कांवड़ यात्रा के दौरान दुकानदारों को अपने प्रतिष्ठानों के बाहर नाम प्रदर्शित करने के आदेश और बांग्लादेश के हिंदुओं के समर्थन की बातें भी की गई हैं।इन सब प्रयासों के पीछे एक स्पष्ट रणनीति नजर आती है। बीजेपी ने 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए अपनी रणनीति को सख्त किया है। मुस्लिम समाज से वोट मिलने की संभावना को नकारते हुए, बीजेपी अब हिंदुत्व के एजेंडे को प्रमुख स्थान दे रही है। इसका उद्देश्य विपक्ष के हमलों से निपटने और पार्टी के भीतर की गुटबाजी को नियंत्रित करने का है। हिंदुत्व को प्रमुख मुद्दा बनाकर, बीजेपी पार्टी के भीतर और बाहरी दबावों को संभालने की कोशिश कर रही है।

इस परिप्रेक्ष्य में, योगी आदित्यनाथ और हिमन्ता बिस्व सरमा दोनों ही हिंदुत्व की राजनीति के प्रमुख चेहरों के रूप में उभरते दिखाई दे रहे हैं। योगी का आक्रामक रुख और सरमा की नई पहलें दर्शाती हैं कि हिंदुत्व के मुद्दे को लेकर राजनीति में प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है। दोनों नेताओं की रणनीतियाँ इस बात को साबित करती हैं कि वे हिंदुत्व के एजेंडे को प्रमुख स्थान देने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं।बीजेपी की यह रणनीति हिंदुत्व के ध्रुवीकरण के माध्यम से अपने राजनीतिक प्रभाव को बढ़ाने का एक प्रयास है। यह स्पष्ट है कि इस तरह की राजनीति का उद्देश्य केवल चुनावी लाभ नहीं, बल्कि पार्टी के भीतर की गुटबाजी और बाहरी दबावों से निपटना भी है। इस प्रकार, हिंदुत्व की राजनीति में योगी आदित्यनाथ और हिमन्ता बिस्व सरमा दोनों ही महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभा रहे हैं और उनकी रणनीतियों से भविष्य की राजनीति में और अधिक बदलाव देखने को मिल सकते हैं।

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