शिव शक्ति और सजल की शादी: रिश्तों में विवाह पर कानूनी और वैज्ञानिक नजर




शिव शक्ति और सजल की शादी: रिश्तों में विवाह पर कानूनी और वैज्ञानिक नजर

बेगूसराय, बिहार में नगर निगम के डिप्टी कमिश्नर शिव शक्ति ने अपने गांव की भतीजी सजल से प्रेम विवाह कर लिया है, जिससे समाज, कानून और विज्ञान की दृष्टियों से एक विवाद उत्पन्न हो गया है। इस शादी के बाद सजल के परिवार ने शिव शक्ति पर अपहरण का आरोप लगाया है, जबकि दूल्हा-दुल्हन ने वीडियो संदेश जारी कर इसे प्रेम विवाह बताया है और अपहरण के आरोप को खारिज किया है।समाज के दृष्टिकोण से, सगोत्रीय विवाह (खून के रिश्तेदारों के बीच विवाह) एक विवादास्पद मामला है। हिंदू समाज में इस प्रकार के विवाह को सामाजिक मान्यता प्राप्त नहीं है। उत्तर भारत के कई क्षेत्रों में खाप पंचायतें ऐसी शादियों का विरोध करती हैं और इसके खिलाफ सख्त कार्रवाई करती हैं। हालांकि, मुस्लिम समुदाय में ऐसा विवाह स्वीकार्य है, लेकिन हिंदू समाज में इसे मान्यता नहीं दी जाती है।

भारतीय कानून के अनुसार भी ऐसे विवाह पर रोक है। हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 3 (f) (i) के तहत, एक व्यक्ति अपने खून के रिश्ते में किसी से शादी नहीं कर सकता। इसके तहत मां की ओर से तीन पीढ़ियों तक और पिता की ओर से पांच पीढ़ियों तक के रिश्तेदारों से विवाह को प्रतिबंधित किया गया है। इसी प्रकार, धारा 5 (v) भी सगोत्रीय विवाह पर रोक लगाती है। उल्लंघन पर धारा 18 के तहत एक महीने की सजा या 1000 रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है। हाल ही में दिल्ली हाईकोर्ट ने इस कानून की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि वर्तमान में भी हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 5 (v) प्रभावी है और सगोत्रीय विवाह पर रोक जारी है।

विज्ञान के अनुसार, रिश्तों में विवाह करने से जन्मे बच्चों में आनुवंशिक समस्याओं का खतरा अधिक होता है। एक ही पूर्वज के होने के कारण, ऐसे दंपति अपने बच्चों को घातक जीन विरासत में दे सकते हैं। इससे नवजातों में जन्मजात दोष, आनुवंशिक विकार और अन्य स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। रिसर्च के अनुसार, सपिंड शादियों से जन्मे बच्चों में इम्युनोडेफिशिएंसी, बीटा-थैलेसीमिया, और सिस्टिक फाइब्रोसिस जैसे विकारों की संभावना अधिक होती है। इसके अलावा, गर्भपात, मेडिटरेनीयन फीवर और सेरेब्रल पाल्सी जैसी बीमारियां भी उत्पन्न हो सकती हैं। इससे बच्चों में मानसिक मंदता, कमजोर दृष्टि और कम सुनाई देने जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं।दक्षिण भारत के कुछ समुदायों में सगोत्रीय विवाह पारंपरिक मान्यता प्राप्त है। तमिलनाडु और कर्नाटक में चचेरे भाई-बहन या मामा-भतीजी के बीच विवाह सामान्य है। यह रिवाज पारंपरिक विश्वासों और परिवार की संपत्ति को बनाए रखने के लिए किया जाता है। हालांकि, हाल के वर्षों में इन राज्यों में भी सपिंड शादियों की संख्या में कमी आई है।

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) के आंकड़ों के अनुसार, भारत में सपिंड शादियों की संख्या में वृद्धि देखने को मिली है। 1992-93 में जहां 9.9% शादियां सगोत्रीय थीं, वहीं 2019-21 में यह आंकड़ा बढ़कर 10.8% हो गया है। दक्षिण भारत में यह प्रतिशत अधिक है, जहां तमिलनाडु और कर्नाटक में 25-30% शादियां सगोत्रीय होती हैं शिव शक्ति और सजल की शादी ने एक बार फिर से रिश्तों में विवाह के विवादित मुद्दे को समाज, कानून और विज्ञान के समक्ष खड़ा कर दिया है। जबकि कुछ समुदायों में यह परंपरा के रूप में स्वीकार्य है, भारतीय कानून और वैज्ञानिक दृष्टिकोण इसके खिलाफ हैं। इस प्रकार की शादियों से जुड़े जोखिम और समस्याओं को देखते हुए, समाज को इन परंपराओं पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है। भविष्य में इस तरह की शादियों के कानूनी और सामाजिक परिणामों को समझने और उनकी रोकथाम के लिए ठोस कदम उठाए जाने की जरूरत है।

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