उत्तर प्रदेश में शिक्षकों की 69,000 नौकरियों को लेकर लखनऊ में छिड़ी दोतरफा मोर्चेबंदी
उत्तर प्रदेश में 69,000 प्राथमिक शिक्षक पदों की भर्ती को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। हाईकोर्ट के आदेश के बाद लखनऊ में स्थिति तंग होती जा रही है, जहां शिक्षकों की नौकरी बचाने और पाने के लिए दोतरफा मोर्चेबंदी देखी जा रही है। कोर्ट ने चार साल पहले हुई भर्ती में आरक्षण नियमों का पालन करते हुए नई मेरिट सूची तैयार करने का आदेश दिया है, जिससे दोनों पक्षों के बीच तनाव बढ़ गया है।
हाईकोर्ट के जस्टिस एआर मसूदी और जस्टिस बीआर सिंह की पीठ ने 13 अगस्त को निर्देश दिया कि आरक्षण और बेसिक शिक्षा नियमों के अनुसार तीन महीने के भीतर नई मेरिट सूची तैयार की जाए और उसी के आधार पर नियुक्तियां की जाएं। इस आदेश के बाद से, जो अभ्यर्थी नई मेरिट सूची से लाभान्वित हो सकते हैं, वे इसे लागू करने की मांग कर रहे हैं। दूसरी ओर, जिनकी नौकरी नई सूची बनने से जा सकती है या जो पहले से नौकरी कर रहे हैं, वे इस फैसले का विरोध कर रहे हैं और सरकार से अपील कर रहे हैं कि वह इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे।
लखनऊ में बेसिक शिक्षा निदेशालय के मुख्यालय पर दोनों पक्षों का धरना जारी है। एक ओर, आरक्षित श्रेणी के अभ्यर्थी कोर्ट के आदेश के अनुसार भर्ती प्रक्रिया की घोषणा की मांग कर रहे हैं ताकि वंचित एससी और ओबीसी उम्मीदवारों को नौकरी मिल सके। दूसरी ओर, सामान्य वर्ग के नौकरीपेशा शिक्षक मेरिट सूची में किसी भी बदलाव का विरोध कर रहे हैं और सरकार से फैसले के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में अपील करने की मांग कर रहे हैं।
इस विवाद की शुरुआत दिसंबर 2018 में हुई जब बेसिक शिक्षा विभाग ने 69,000 प्राथमिक शिक्षकों की भर्ती के लिए विज्ञापन जारी किया था। 2019 में परीक्षा आयोजित की गई और 2020 में परिणाम घोषित हुआ। आरोप है कि इस भर्ती में 19,000 एससी और ओबीसी कैंडिडेट्स को आरक्षण का लाभ नहीं दिया गया, जिसके खिलाफ कुछ लोगों ने कोर्ट में याचिका दायर की। हाईकोर्ट ने इसी संदर्भ में अपना निर्णय दिया है।मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस मुद्दे पर उच्चस्तरीय बैठक भी की थी और कहा था कि किसी भी अभ्यर्थी के साथ अन्याय नहीं होने दिया जाएगा। इस बीच, इस मुद्दे पर राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रियाएं भी आ रही हैं, और यह देखना होगा कि सरकार इस विवाद को कैसे सुलझाती है।
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