AAP-कांग्रेस गठबंधन के सामने हरियाणा में 5 बड़ी दिक्कतें
हरियाणा में आम आदमी पार्टी (AAP) और कांग्रेस के बीच सीट शेयरिंग को लेकर बातचीत अब तक निष्कर्ष पर नहीं पहुंची है, और स्थिति काफी जटिल बन चुकी है। चुनावों की तिथि नजदीक आ रही है, जबकि दोनों दलों के बीच समझौते की प्रक्रिया अभी भी अनिर्णीत है। 12 सितंबर तक हरियाणा की 90 विधानसभा सीटों के लिए नामांकन दाखिल किया जाएगा, और इस समय सीमा के साथ ही गठबंधन की संभावनाओं को लेकर अटकलें तेज हो गई हैं।
1. हरियाणा में आप और कांग्रेस का गठबंधन:
हरियाणा में आप और कांग्रेस के गठबंधन को लेकर स्थिति अभी भी स्पष्ट नहीं है। दोनों पार्टियों के बीच तीन दौर से अधिक की बातचीत हो चुकी है, लेकिन अब तक कोई ठोस निर्णय नहीं लिया जा सका है। कांग्रेस की ओर से केसी वेणुगोपाल और दीपक बाबरिया, जबकि आप की ओर से संदीप पाठक और राघव चड्डा वार्ता कर रहे हैं। संदीप पाठक ने हाल ही में कहा कि बातचीत अभी फाइनल नहीं हुई है, और दोनों दलों को इस पर एक या दो दिन में अंतिम फैसला लेने की उम्मीद है।
2. गठबंधन में पेच:
गठबंधन के मुद्दे पर प्रमुख पेच यह है कि कांग्रेस को हरियाणा में बड़ी पार्टी के तौर पर आप के लिए कुछ सीटें छोड़नी पड़ेंगी। 2024 में लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस और आप के बीच समझौता हुआ था, जिसमें आप को 10 में से 1 सीट मिली थी। आप का कहना है कि इसी आधार पर विधानसभा चुनाव में भी उसे 10 सीटें मिलनी चाहिए। हालांकि, कांग्रेस केवल 4 सीट देने के लिए तैयार है। इसके अलावा, दोनों दलों के बीच यह भी विवाद है कि कौन सी सीटें आप को दी जाएंगी, खासकर उन सीटों पर जो कांग्रेस महासचिव रणदीप सुरजेवाला के गढ़ में आती हैं। इन सीटों को आप को देने से सुरजेवाला की नाराजगी बढ़ सकती है।
3. गठबंधन में असहमति की अन्य वजहें:
कांग्रेस के अंदर कुछ प्रमुख नेता गठबंधन के पक्ष में नहीं हैं। भूपिंदर हुड्डा, कुमारी शैलजा, और रणदीप सुरजेवाला जैसे नेता सार्वजनिक रूप से अकेले चुनाव लड़ने की वकालत कर चुके हैं। इन नेताओं का मानना है कि आप का हरियाणा में जनाधार बहुत मजबूत नहीं है, और इसके बावजूद पार्टी अधिक सीटों की मांग कर रही है। कांग्रेस के इन क्षेत्रीय नेताओं का तर्क है कि आप का जनाधार उनकी पार्टी के मुकाबले काफी कमजोर है, जो गठबंधन के प्रस्ताव को और जटिल बना रहा है।
4. आम आदमी पार्टी का हरियाणा में जनाधार:
आप ने 2020 में दिल्ली चुनाव में शानदार जीत के बाद राष्ट्रीय स्तर पर अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश की है। पंजाब में उसकी जीत और गुजरात में किए गए अच्छे प्रदर्शन ने उसे कुछ हद तक हरियाणा में भी आत्मविश्वास प्रदान किया है। हालांकि, हरियाणा में आप का जनाधार अभी पूरी तरह से मजबूत नहीं है। हालिया लोकसभा चुनावों में, आप को हरियाणा में लगभग 5.76 लाख वोट मिले थे और विधानसभा की 4 सीटों पर उसे बढ़त भी मिली थी। इसके बावजूद, आप की स्थिति कांग्रेस के मुकाबले अपेक्षाकृत कमजोर है, जिसे देखते हुए कांग्रेस के नेताओं का विश्वास दरक रहा है।
5. गठबंधन न होने की स्थिति में संभावनाएं:
यदि आप और कांग्रेस के बीच गठबंधन नहीं होता है, तो दोनों दल अलग-अलग चुनाव लड़ सकते हैं। इस स्थिति में, आप अकेले चुनावी मैदान में उतर सकती है, जबकि कांग्रेस अपने सहयोगियों के साथ चुनाव लड़ सकती है। कांग्रेस 50 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने की योजना बना सकती है और सीपीआई, सीपीएम, एसपी और एनसीपी जैसे दलों के साथ मिलकर चुनावी रणनीति बना सकती है। कांग्रेस इन दलों को सांकेतिक आधार पर कुछ सीटें दे सकती है, जिससे उसकी चुनावी रणनीति को मजबूत किया जा सके।हरियाणा की राजनीति में सीट शेयरिंग को लेकर जारी ये उलझन और भी जटिल हो सकती है यदि अंतिम क्षणों में कोई निर्णायक फैसला नहीं लिया जाता। दोनों दलों के बीच चल रही यह गुत्थी भविष्य में राजनीतिक परिदृश्य को काफी हद तक प्रभावित कर सकती है।
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