दिल्ली में गणेश चतुर्थी पंडालों की सजावट और सांस्कृतिक मिलन का अद्भुत मेल
दिल्ली की चकाचौंध और भागमभाग में गणेश उत्सव एक ऐसा पर्व बन चुका है, जो न केवल मराठी समुदाय बल्कि शहर के विभिन्न हिस्सों में रहने वाले लोगों के दिलों को छूने लगा है। आनंद विहार में रहने वाले प्रशांत साठे की कहानी इस उत्सव की गहराई और विविधता को दर्शाती है। गणेश उत्सव के 41 साल पूरे कर चुके प्रशांत हर साल अपने पंडाल की थीम को खास बनाते हैं। इस बार की थीम उनके पैतृक गांव महाराष्ट्र को समर्पित है।
दिल्ली में गणेश उत्सव: एक यात्रा
प्रशांत बताते हैं कि कैसे हर साल पंडाल को एक नई थीम पर सजाया जाता है। इस बार उन्होंने अपने गांव की झलक दिल्ली में उतारने की कोशिश की है। गणेश उत्सव की पृष्ठभूमि में, वे अपने महाराष्ट्र के गांव को बहुत याद करते हैं, लेकिन अब दिल्ली में मराठी समुदाय की बढ़ती संख्या ने उन्हें नये आयाम दिए हैं। दिल्ली-एनसीआर में अब 25 से 30 मराठी मंडल हो गए हैं, जिनमें हर एक अपनी-अपनी अलग-अलग पहचान और संस्कृति बनाए हुए है।पूर्वांचल महाराष्ट्र मंडल के ट्रेजरर प्रशांत बताते हैं कि बाल गंगाधर तिलक ने समुदाय को एकजुट करने की जो परंपरा शुरू की थी, वह आज भी जीवित है। गणेश उत्सव के दौरान बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक इस उत्सव में पूरी तरह से शामिल होते हैं। घरों में गणेश जी की प्रतिमा की स्थापना की जाती है और इसे देखने के लिए काफी लोग जुटते हैं।
माधव जोशी: एक कार्टूनिस्ट और गणेश उत्सव के रचनाकार
दिल्ली में 18 साल से रह रहे कार्टूनिस्ट माधव जोशी गणेश उत्सव के समय अपने हाथों से बप्पा की मूर्तियां बनाते हैं। उनके लिए गणेश उत्सव का मतलब केवल पूजा नहीं है, बल्कि यह उनके गांव की यादों और परंपराओं का हिस्सा भी है। उनका कहना है कि उनके गांव में गणपति की स्थापना के पांचवे दिन माता गौरी भी आती हैं और फिर गौरी पूजा के बाद विसर्जन होता है। लेकिन दिल्ली की तेज़-तर्रार जीवनशैली के कारण लोग पांच, सात या दस दिन तक ही गणेश उत्सव मनाते हैं।
दिल्ली में गणेश उत्सव की विविधता
दिल्ली में गणेश उत्सव की विविधता और भी रंगीन हो गई है। गणेश प्रतिमा और डेकोरेटिव आइटम की दुकान लगाने वाली नीलिमा भागवत बताती हैं कि कैसे 50 प्रतिमाओं से शुरू हुआ काम अब 1000 गणेश प्रतिमाओं पर पहुंच गया है। उनका कहना है कि हर साल डिमांड बढ़ती जा रही है और सितंबर का महीना उनके लिए सबसे व्यस्त समय होता है।नीलिमा के अनुसार, महाराष्ट्र और दिल्ली में बनी गणेश प्रतिमा में काफी अंतर होता है। महाराष्ट्र में प्रतिमा शुद्ध मिट्टी से बनाई जाती है, जो आपको लगता है कि ईश्वर आपसे बात कर रहे हैं। वहीं, दिल्ली में मूर्तियों में घास-फूस भी मिलाया जाता है।
दिल्ली के प्राचीन गणेश उत्सव
दिल्ली में गणेश उत्सव का एक लंबा इतिहास है। करोल बाग और पहाड़गंज के नूतन मराठी स्कूल और चौगुले पब्लिक स्कूल में गणेश उत्सव का आयोजन मराठी समुदाय के लिए एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक घटना है। 1929 में स्थापित नूतन मराठी स्कूल में गणेश उत्सव मनाने की परंपरा शुरू हुई थी। यहां के एल्युमनाई में वाईबी चव्हाण, वसंत साठे, पृथ्वीराज चव्हाण और सुमित्रा महाजन जैसे नामी नेता शामिल रहे हैं।चौगुले पब्लिक स्कूल की स्थापना 1957 में करोल बाग के फैज रोड पर हुई थी। इस स्कूल में मराठी भाषा को अनिवार्य रूप से पढ़ाया जाता है, जिससे नई पीढ़ी अपनी मातृभाषा से जुड़ी रहे।
दिल्ली में भव्य गणेश पंडाल
दिल्ली में गणेश उत्सव की भव्यता को कई स्थानों पर देखा जा सकता है:
DDA ग्राउंड, बुराड़ी: दिल्ली के बुराड़ी इलाके में सबसे बड़ा गणपति पंडाल सजता है। इसे मुंबई के लालबाग के पंडाल के बराबर माना जाता है। 6,00,000 वर्ग फीट में फैले इस पंडाल में भक्तों की भारी भीड़ रहती है और यहां की प्रतिमा इको-फ्रेंडली बनाई जाती है।
पीतमपुरा: पीतमपुरा में लाल बाग का राजा ट्रस्ट हर साल धूमधाम से गणेश उत्सव मनाता है। यहां की मूर्तियां मुंबई के मशहूर लाल बाग का राजा के मूर्तिकार द्वारा डिजाइन की जाती हैं। यहां पंडाल को सजाने के लिए बंगाल से कारीगर बुलाए जाते हैं और रोजाना लगभग 25,000 लोग इस पंडाल में आते हैं।
श्री शुभ सिद्धि विनायक मंदिर, मयूर विहार: मयूर विहार फेज 1 मेट्रो स्टेशन के पास हर साल एक सुंदर पंडाल सजाया जाता है। गणेश चतुर्थी के दौरान यहां 10 दिनों तक उत्सव की रौनक रहती है।
गणेश मंदिर, कनॉट प्लेस: कनॉट प्लेस के गणेश मंदिर में भी भव्य पंडाल सजाया जाता है, जहां सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाता है। शाम की आरती के समय यहां भक्तों की भीड़ लगी रहती है।
इसके अलावा, गुरुग्राम, फरीदाबाद, गाजियाबाद, ग्रेटर नोएडा और कई अन्य स्थानों पर भी गणेश उत्सव बड़े पैमाने पर मनाया जाता है। दिल्ली मराठी प्रतिष्ठान जैसे बड़े मंडल भी दिवाली के समय दिवाली पहाट नाम का कार्यक्रम आयोजित करते हैं, जिसमें महाराष्ट्र के बड़े कलाकारों को बुलाया जाता है।
गैर-मराठी लोगों की बढ़ती भागीदारी
आजकल गैर-मराठी और हिंदी भाषी लोग भी गणेश प्रतिमा की स्थापना करने लगे हैं। प्रशांत साठे का कहना है कि जब लोग फोन करके गणेश स्थापना की विधि और विसर्जन के बारे में पूछते हैं, तो उन्हें बहुत अच्छा लगता है। यह दर्शाता है कि सांस्कृतिक आदान-प्रदान और आपसी समझ बढ़ रही है।दिल्ली-एनसीआर में लगभग साढ़े तीन लाख मराठी लोग रहते हैं, जो अपनी पारंपरिक मिठाइयों जैसे पूरनपोली और श्रीखंड के साथ-साथ राजमा चावल और छोले भटूरे का भी आनंद लेते हैं। गणेश उत्सव उनके जीवन का अभिन्न हिस्सा बन चुका है, जो उनके सांस्कृतिक धरोहर को जीवित रखता है और विभिन्न सांस्कृतिक पृष्ठभूमियों के बीच पुल का काम करता है।
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