
आंखों की रोशनी खोने के बावजूद, सिमरन शर्मा ने पेरिस पैरालंपिक में ब्रॉन्ज मेडल से भारत का नाम रोशन किया
भारत की महिला पैरा एथलीट सिमरन शर्मा ने 7 सितंबर को पेरिस पैरालंपिक में एक अद्वितीय सफलता प्राप्त की है। उन्होंने महिला 200 मीटर की टी12 कैटगरी में शानदार प्रदर्शन करते हुए ब्रॉन्ज मेडल जीतकर भारत की झोली में 28वां मेडल डाला। मौजूदा वर्ल्ड चैंपियन सिमरन ने 24.75 सेकंड में रेस समाप्त की और तीसरे स्थान पर रही। यह उनकी व्यक्तिगत सबसे अच्छी प्रदर्शन है, जो इस तथ्य को और भी विशेष बनाता है कि उनके जीवन की यात्रा काफी संघर्षपूर्ण रही है।
सिमरन शर्मा का जन्म 1999 में उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद जिले में हुआ था, लेकिन उनका जन्म समय से 2.5 महीने पहले यानी सिर्फ 6.5 महीने पर हुआ था। इस प्रीमैच्योर जन्म के कारण उन्हें इनकुबेटर में रखना पड़ा, और 6 महीने तक इनकुबेटर में रखने की वजह से उनकी आंखों की रोशनी चली गई। इसके अलावा, समय से पहले जन्म लेने के कारण उन्हें चलने में भी दिक्कतें आईं। इस स्थिति को देखकर पड़ोसी अक्सर उन्हें चिढ़ाते थे, जो उनके मानसिक बल को और भी परखते थे। लेकिन सिमरन ने कभी भी इन कठिन परिस्थितियों के सामने हार मानने की सोच नहीं बनाई।
उनके जीवन में यह चुनौतियाँ यहीं समाप्त नहीं हुईं। सिमरन की शुरुआती मुश्किलें बढ़ी, जब उनके पिता की अचानक मृत्यु हो गई। इसके बावजूद, सिमरन ने अपने आत्मविश्वास और दृढ़ता को बनाए रखा। उन्होंने अपनी पढ़ाई और खेल दोनों में शानदार प्रदर्शन किया, और स्कूल में विभिन्न खेलों में कई मेडल भी जीते। हालांकि, आर्थिक तंगी के कारण उन्हें ट्रेनिंग के लिए उचित सुविधाएँ नहीं मिल पा रही थीं, लेकिन उन्होंने हार मानने के बजाय और मेहनत की।
सिमरन की जिंदगी में एक नया मोड़ तब आया जब उन्होंने मोदीनगर के रुकमणि मोदी महिला इंटर कॉलेज में एडमिशन लिया। यहां उनकी एथलेटिक्स में रुचि और बढ़ी और उन्होंने इंटर-कॉलेज प्रतियोगिताओं में भाग लेना शुरू किया। उनकी मेहनत और समर्पण ने उन्हें प्रोफेशनल स्पोर्ट्स में आगे बढ़ने की प्रेरणा दी। 2015 में उनका परिचय गजेंद्र सिंह से हुआ, जो लखनऊ के खंजरपुर के निवासी हैं। गजेंद्र ने सिमरन की प्रतिभा को तुरंत पहचान लिया और उन्हें कोचिंग देने का निर्णय लिया। दोनों ने बाद में शादी भी कर ली।
गजेंद्र सिंह ने सिमरन को केवल तकनीकी प्रशिक्षण ही नहीं बल्कि आर्थिक और मानसिक समर्थन भी प्रदान किया। उन्होंने सिमरन के सपनों को पूरा करने के लिए सभी आवश्यक संसाधनों की व्यवस्था की, जिससे सिमरन का आत्मविश्वास और बढ़ा। उनका यह समर्थन और प्यार धीरे-धीरे गहरा हुआ, और यह रिश्ता शादी के बंधन में बदल गया।
शादी के बावजूद, सिमरन और गजेंद्र ने समाज की आलोचनाओं को नजरअंदाज किया और अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहे। आज, सिमरन शर्मा का पेरिस पैरालंपिक में मेडल जीतना उनकी मेहनत, संघर्ष और अडिग भावना की जीत है। उनका यह ब्रॉन्ज मेडल न केवल भारत के लिए गर्व की बात है, बल्कि यह उनके व्यक्तिगत संघर्ष और उपलब्धियों की भी प्रतीक है। सिमरन की यह कहानी प्रेरणा का एक स्रोत है, जो हमें बताती है कि कठिन परिस्थितियों के बावजूद, अगर लगन और मेहनत सच्ची हो, तो सफलता अवश्य मिलती है।
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