गणेश पूजा की राजनीति: पीएम मोदी और सीजेआई चंद्रचूड़ की मुलाकात पर विपक्ष की प्रतिक्रियाएं

गणेश पूजा की राजनीति: पीएम मोदी और सीजेआई चंद्रचूड़ की मुलाकात पर विपक्ष की प्रतिक्रियाएं

गणेश पूजा की राजनीति: पीएम मोदी और सीजेआई चंद्रचूड़ की मुलाकात पर विपक्ष की प्रतिक्रियाएं

संजय सक्सेना

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के घर पर गणपति पूजा में शामिल होने की घटना ने भारतीय राजनीति और न्यायपालिका में गहराई से चर्चा को जन्म दिया है। यह मुलाकात सामान्य सामाजिक परंपरा से कहीं अधिक हो गई, और इसके बाद की प्रतिक्रियाएं राजनीतिक बवाल का रूप ले गईं। पीएम मोदी ने खुद सोशल मीडिया पर इस घटना की तस्वीरें साझा कीं, जिनमें वे चीफ जस्टिस और उनकी पत्नी के साथ भगवान गणेश की पूजा करते नजर आ रहे हैं। इस पारंपरिक और धार्मिक घटना ने विशेष रूप से राजनीति में एक नई बहस को जन्म दिया है।

प्रधानमंत्री मोदी की इस पूजा में भागीदारी पर राजनीतिक दलों की प्रतिक्रियाएं विविध और तीव्र रही हैं। विपक्ष ने इस मुलाकात को महाराष्ट्र के आगामी विधानसभा चुनावों से जोड़ते हुए इसे एक रणनीतिक चाल करार दिया। शिवसेना (उद्धव ठाकरे) की सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा कि उन्हें उम्मीद है कि इस पूजा के बाद चीफ जस्टिस संविधान के अनुच्छेद 10 की अवहेलना पर सुनवाई के लिए स्वतंत्र होंगे। उनका तर्क था कि चुनावों की तारीखें नजदीक आ रही हैं, और इस मुद्दे पर सुनवाई को स्थगित किया जा सकता है। उनके अनुसार, इस पूजा के माध्यम से राजनीति को प्रभावित करने की कोशिश की जा रही है, जो न्यायिक स्वतंत्रता और निष्पक्षता पर सवाल खड़ा करती है।

संजय राउत, शिवसेना (उद्धव ठाकरे) के एक प्रमुख नेता, ने भी इस मुलाकात पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि गणपति उत्सव के दौरान एक-दूसरे के घर जाना सामान्य बात है, लेकिन एक संवैधानिक पद के व्यक्ति के साथ पीएम की इस मुलाकात से लोगों के मन में संदेह उत्पन्न हो सकता है। राउत ने यह भी कहा कि महाराष्ट्र में चल रहे संवैधानिक मुद्दों और विधानसभा चुनावों की स्थिति को देखते हुए, पीएम और सीजेआई के बीच इस मुलाकात से न्याय मिलने की संभावना पर सवाल उठ सकते हैं। उनके अनुसार, इस मुलाकात के चलते लोगों को यह आशंका हो सकती है कि न्याय प्रणाली पर प्रभाव पड़ सकता है, खासकर जब केंद्र सरकार और विपक्ष दोनों इस मुद्दे में शामिल हैं।

विपक्षी नेताओं की प्रतिक्रियाओं के अलावा, सुप्रीम कोर्ट के वकील प्रशांत भूषण ने भी इस घटना पर अपनी चिंता व्यक्त की। उन्होंने ट्वीट करते हुए कहा कि यह चौंकाने वाला है कि चीफ जस्टिस ने पीएम मोदी को एक निजी बैठक के लिए अपने घर बुलाया। भूषण का तर्क है कि न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच की दूरी बनाए रखना आवश्यक है ताकि न्यायपालिका स्वतंत्र और निष्पक्ष तरीके से काम कर सके। उनके अनुसार, इस मुलाकात से यह संकेत मिलता है कि दोनों के बीच की दूरी कम हो रही है, जो लोकतंत्र के लिए खतरा हो सकता है। उनका यह भी कहना था कि इस प्रकार की मुलाकातों से न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता पर प्रश्न उठ सकते हैं।

भूषण के आलोचनात्मक दृष्टिकोण के अलावा, भाजपा ने इस मुद्दे पर जोरदार जवाब दिया है। भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा कि एक पूजा ने कई लोगों की नींद और चाय नाश्ते को बिगाड़ दिया है। उनका कहना था कि अगर इफ्तार पार्टी में पीएम और चीफ जस्टिस मिलते थे, तो अब गणेश उत्सव पर मिलने में आपत्ति क्यों? उन्होंने आरोप लगाया कि विपक्ष इस मुद्दे को राजनीति में घसीट रहा है और गणेश उत्सव की राजनीति में घसीटने की कोशिश कर रहा है। उनका तर्क है कि इस मुलाकात को एक धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से देखना चाहिए, न कि राजनीतिक दृष्टिकोण से।

संबित पात्रा ने यह भी कहा कि राहुल गांधी और उनकी पार्टी ने गठबंधन के नाम के पीछे छुपे तुष्टिकरण, अपराध और अहंकार को समझने में समय लिया और इस मुलाकात के पीछे की राजनीति को उजागर किया। उनका तर्क है कि राहुल गांधी को ‘इंडिया एलायंस’ के ‘ए’ के अर्थ को लेकर भ्रमित होना इस बात का संकेत है कि विपक्षी दलों की आलोचना केवल राजनीति के लिए होती है, न कि वास्तविक मुद्दों के समाधान के लिए।

इसके अतिरिक्त, कांग्रेस के नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने इस मुद्दे पर अपनी राय दी। उन्होंने कहा कि सीजेआई चंद्रचूड़ उनके पुराने मित्र हैं और इस मुलाकात पर उन्हें कोई आपत्ति नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि अगर सीजेआई किसी उद्घाटन समारोह में भी भाग लेते हैं, तो इस पर कोई सवाल नहीं उठाया जाता। उनके अनुसार, संविधान में कहीं भी यह नहीं लिखा गया है कि कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच मुलाकात नहीं हो सकती। एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए, दोनों स्तंभों के बीच सहयोग होना चाहिए और इस मुलाकात को एक सकारात्मक दृष्टिकोण से देखना चाहिए। उनका कहना था कि इस मुलाकात को गोपनीय रखना कोई समाधान नहीं है; अगर दोनों पारदर्शी तरीके से मिलते हैं, तो यह लोकतंत्र के लिए अच्छा है।

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ के कार्यकाल में उन्होंने कई महत्वपूर्ण फैसले दिए हैं, जो उनकी स्वतंत्रता और न्यायपालिका की मजबूती को दर्शाते हैं। उन्होंने समलैंगिक विवाह के मामले में महत्वपूर्ण टिप्पणियां की हैं, जिसमें उन्होंने स्पष्ट किया कि व्यक्तिगत गोद लेने का अधिकार वैवाहिक स्थिति से प्रभावित नहीं होता। इसके अलावा, उन्होंने महाराष्ट्र गवर्नर के राज्य में सरकार गठन पर टिप्पणी की और सील कवर में प्रस्तुतियों की प्रथा की आलोचना की। उनके द्वारा सरकार की चुनावी बॉंड योजना को असंवैधानिक ठहराना भी उनके निर्णयों की स्वतंत्रता को दर्शाता है।

इस पूरे संदर्भ में, यह स्पष्ट होता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के बीच की मुलाकात ने विभिन्न दृष्टिकोणों को उजागर किया है। इस मुलाकात ने संविधान, लोकतंत्र, और न्यायपालिका के बीच की सीमाओं और सहयोग के मुद्दों पर बहस को जन्म दिया है। पीएम मोदी और सीजेआई के बीच की यह मुलाकात केवल एक धार्मिक अनुष्ठान से अधिक का प्रतीक बन गई है, जिससे राजनीतिक, न्यायिक और सामाजिक धारणाओं की परतें उधड़ रही हैं।

इस प्रकार की घटनाएं लोकतंत्र के कार्यक्षेत्र में कैसे प्रभाव डालती हैं, इसे समझना आवश्यक है। लोकतंत्र में कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच सहयोग और पारदर्शिता महत्वपूर्ण हैं, लेकिन साथ ही, दोनों के बीच की दूरी बनाए रखना भी आवश्यक है ताकि किसी भी संस्था की स्वतंत्रता और निष्पक्षता को प्रभावित न किया जा सके। पीएम मोदी और सीजेआई की मुलाकात इस मुद्दे पर एक महत्वपूर्ण संवाद का हिस्सा बन गई है, जो भारतीय लोकतंत्र के स्वास्थ्य और स्थिरता के लिए आवश्यक है।

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