
भारत में 'वन नेशन-वन इलेक्शन': चुनावी सुधारों की दिशा में एक बड़ा कदम या सिर्फ एक राजनीतिक बहस?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने अपने तीसरे कार्यकाल के सौ दिन पूरे किए हैं और इस अवसर पर एक महत्वपूर्ण मुद्दे पर चर्चा शुरू हो गई है वन नेशन-वन इलेक्शन। यह अवधारणा, जिसमें लोकसभा चुनाव के साथ-साथ सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव और स्थानीय निकायों के चुनाव एक ही समय पर कराए जाएं, फिर से सुर्खियों में है। सरकार ने संसद में इस विषय पर विधेयक लाने की तैयारी शुरू कर दी है, जिससे यह मुद्दा एक बार फिर गंभीर विमर्श का विषय बन गया है।वन नेशन-वन इलेक्शन का तात्पर्य है कि देशभर में एक ही समय पर लोकसभा और विधानसभा के चुनाव कराए जाएं। इसके अंतर्गत स्थानीय निकायों के चुनाव भी शामिल होते हैं। यह व्यवस्था एक निश्चित समय पर सभी चुनावों को एक साथ कराने की परिकल्पना करती है। इसका उद्देश्य बार-बार चुनाव कराने की प्रक्रिया से बचना और चुनावी खर्च और प्रशासनिक बोझ को कम करना है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई बार वन नेशन-वन इलेक्शन का समर्थन किया है। उनका मानना है कि बार-बार चुनाव होने के कारण विकास कार्यों में बाधा उत्पन्न होती है। 15 अगस्त 2023 को लाल किले की प्राचीर से अपने भाषण में मोदी ने इस प्रणाली की वकालत की थी। उन्होंने कहा था कि लगातार चुनावों के कारण प्रशासनिक और सुरक्षा बलों पर अत्यधिक दबाव बनता है, जिससे विकास के कार्य प्रभावित होते हैं। उनके अनुसार, एक साथ चुनाव कराए जाने से सरकारें चुनावी मोड से बाहर आकर अपनी प्राथमिक जिम्मेदारियों पर ध्यान केंद्रित कर सकेंगी।आजादी के बाद, 1951 से 1967 तक लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ होते थे। यह व्यवस्था काफी सुचारू रूप से चल रही थी, लेकिन राज्य पुनर्गठन और नये राज्यों के गठन के कारण चुनावों का समय असमय हो गया। इसके बाद, अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग समय पर चुनाव होने लगे।
वन नेशन-वन इलेक्शन पर राजनीतिक दलों के बीच एकमत की कमी रही है। राष्ट्रीय दलों का मानना है कि इससे उन्हें लाभ होगा क्योंकि एक साथ चुनाव होने से उनकी राष्ट्रीय स्तर पर उपस्थिति मजबूत होगी। वहीं, क्षेत्रीय दलों का तर्क है कि इससे उन्हें नुकसान होगा क्योंकि राज्य स्तर के मुद्दे और उनके समाधान दब सकते हैं। उनका यह भी कहना है कि इस व्यवस्था के लागू होने से राज्यों का विकास प्रभावित हो सकता है क्योंकि राष्ट्रीय मुद्दे स्थानीय मुद्दों से ऊपर उठ सकते हैं।
दुनिया के कई देशों में वन नेशन-वन इलेक्शन की व्यवस्था लागू है। अमेरिका, फ्रांस, स्वीडन और कनाडा इस प्रणाली को अपनाए हुए हैं। अमेरिका में राष्ट्रपति, कांग्रेस और सीनेट के चुनाव एक निश्चित तारीख पर हर चार साल में होते हैं। यह एकीकृत चुनावी प्रक्रिया के लिए संघीय कानून का पालन करते हैं। फ्रांस में नेशनल असेंबली के चुनाव राष्ट्रपति के चुनाव के साथ ही कराए जाते हैं। इस व्यवस्था में राज्यों के प्रमुख और प्रतिनिधियों के चुनाव भी शामिल होते हैं। स्वीडन में संसद और स्थानीय सरकारों के चुनाव हर चार साल में एक साथ होते हैं, जिसमें नगरपालिका और काउंटी परिषद के चुनाव भी शामिल होते हैं। कनाडा में हाउस ऑफ कॉमंस के चुनाव हर चार साल में होते हैं और कुछ प्रांत इन चुनावों को संघीय चुनाव के साथ ही कराते हैं।
वन नेशन-वन इलेक्शन के कई लाभ हो सकते हैं। चुनावी खर्च में कमी आएगी क्योंकि एक ही समय पर चुनाव होने से चुनावी खर्च में कमी आएगी। बार-बार चुनाव कराने पर भारी-भरकम राशि खर्च होती है, जिससे सरकार का बजट प्रभावित होता है। प्रशासनिक और सुरक्षा बलों पर बोझ कम होगा क्योंकि एक साथ चुनाव कराने से चुनावी ड्यूटी पर लगे प्रशासनिक और सुरक्षा बलों की संख्या कम होगी। इससे उनके कार्यभार में भी कमी आएगी और वे अन्य प्रशासनिक कामकाज पर ध्यान केंद्रित कर सकेंगे। विकास कार्यों पर ध्यान केंद्रित होगा क्योंकि बार-बार चुनावी मोड में रहने के बजाय, सरकारें अपने विकास कार्यों पर ध्यान दे सकेंगी। इससे दीर्घकालिक योजनाओं को लागू करना आसान होगा। वोटर की भागीदारी में वृद्धि हो सकती है क्योंकि एक ही दिन या एक निश्चित समय पर चुनाव होने से वोटरों की भागीदारी बढ़ सकती है, क्योंकि उन्हें बार-बार मतदान की प्रक्रिया से गुजरना नहीं पड़ेगा।
इस प्रणाली को लागू करने में कई चुनौतियाँ भी सामने आती हैं। संवैधानिक और कानूनी बदलाव की आवश्यकता होगी क्योंकि एक साथ चुनाव कराने के लिए संविधान और कानूनों में संशोधन की आवश्यकता होगी। यह प्रक्रिया जटिल हो सकती है और इसमें समय लग सकता है। अस्थायी चुनाव और भंग होने की स्थिति में एक साथ चुनाव का क्रम कैसे बनाए रखा जाएगा, यह एक महत्वपूर्ण सवाल है। वर्तमान में ईवीएम और वीवीपैट की सीमित संख्या है। एक साथ चुनाव कराने के लिए अधिक मशीनों की जरूरत होगी, जो एक बड़ी चुनौती हो सकती है। प्रशासनिक और सुरक्षा संसाधनों की आवश्यकता भी एक महत्वपूर्ण प्रश्न है क्योंकि एक ही समय पर बड़े पैमाने पर चुनाव कराने के लिए ज्यादा प्रशासनिक अफसरों और सुरक्षाबलों की जरूरत होगी।
वन नेशन-वन इलेक्शन के संदर्भ में पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक समिति बनाई गई थी, जिसने 14 मार्च 2024 को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। इस रिपोर्ट में 18,626 पन्नों के विवरण के साथ सुझाव दिए गए हैं, जिसमें राज्यों की विधानसभाओं का कार्यकाल बढ़ाकर 2029 तक करने की सिफारिश की गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि हंग असेंबली या नो कॉन्फिडेंस मोशन की स्थिति में पांच साल में से बचे समय के लिए नए चुनाव कराए जा सकते हैं। पहले चरण में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ कराए जाएं। दूसरे चरण में सौ दिनों के भीतर ही स्थानीय निकायों के चुनाव कराए जा सकते हैं। इसके लिए चुनाव आयोग लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय निकायों के लिए एक वोटर लिस्ट तैयार कर सकता है। साथ ही सुरक्षा बलों, प्रशासनिक अफसरों, कर्मचारियों और मशीन आदि के लिए एडवांस में प्लानिंग करने की सिफारिश की गई है।
वन नेशन-वन इलेक्शन की अवधारणा पर अभी भी व्यापक चर्चा और समझ की आवश्यकता है। इसके लाभ और चुनौतियों के बीच संतुलन बनाना महत्वपूर्ण है, ताकि इस प्रणाली को लागू करने के बाद लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की सहजता और प्रभावशीलता को बनाए रखा जा सके। यह व्यवस्था यदि सफलतापूर्वक लागू होती है, तो भारतीय लोकतंत्र की चुनावी प्रक्रिया को एक नई दिशा दे सकती है, जिससे विकास कार्यों में तेजी आ सकती है और चुनावी खर्च और प्रशासनिक बोझ कम हो सकता है।
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