रिटायरमेंट का नया ट्रेंड: बुजुर्ग खुद लग्जरी केयर सेंटर चुन रहे हैं, जहां उन्हें आराम और देखभाल दोनों मिलती हैं!

रिटायरमेंट का नया ट्रेंड: बुजुर्ग खुद लग्जरी केयर सेंटर चुन रहे हैं, जहां उन्हें आराम और देखभाल दोनों मिलती हैं!

रिटायरमेंट का नया ट्रेंड: बुजुर्ग खुद लग्जरी केयर सेंटर चुन रहे हैं, जहां उन्हें आराम और देखभाल दोनों मिलती हैं!

वृद्धाश्रम सुनते ही आपके दिमाग में क्या तस्वीर आती है…सन्नाटा, लाचारी और बेबसी में एक आश्रम जैसी जगह, जहां बचा- खुचा जीवन काटते बुजुर्ग. ज़माना बहुत तेजी से बदल रहा है और ये निरूपा राय टाइप बुढ़ापे की तस्वीर बदलने को आ चुके हैं. लग्ज़री एग्जिस्टेंस लिंविंग फॉर सीनियर सिटिज़न. यानी पैसा दीजिए और ऐसे सेटअप में अपने जीवन की सांझ का ऐसा इंतज़ाम कर लीजिए, जहां आपके दोस्त भी हों, दवा भी, इंटरटेनमेंट भी और केयर भी.

रिटायरमेंट का नया ट्रेंड: बुजुर्ग खुद लग्जरी केयर सेंटर चुन रहे हैं, जहां उन्हें आराम और देखभाल दोनों मिलती हैं!


वृद्धाश्रम नहीं, रिटायरमेंट होम

नोएडा सेक्टर 93 के रहने वाले 62 साल के मनोज साल 2021 से पहले पेरिस, मॉस्को और सेंट्रल एशिया में काम करते थे. कोविड के दौरान उन्हें हार्ट अटैक आया. उसके बाद शरीर का लेफ्ट हिस्सा पूरी तरह पैरालाइज्ड हो गया. उसके बाद वो घर पर ही रहने को मजबूर हो गए लेकिन यहां आने के बाद उन्हें समझ आया कि घर से ज्यादा केयर यहां पर हो रही है और क्योंकि मनोज जी का बेटा स्पेन में रहता है तो घर पर अकेला रहना उनकी मजबूरी थी लेकिन यहां रहना च्वाइस भी है और खुशी भी. मनोज कहते हैं यहां केयर भी है और हमउम्र लोग भी हैं इसलिए मैं यहां बेहतर महसूस करता हूं.

कहीं च्वाइस कहीं ऑप्शन

तपस्या रिटायरमेंट होम में रहने वाले सुरिंदर नोएडा में अपनी बेटी के साथ रहते थे, दामाद की डेथ हो चुकी है और बेटी की भी दो बेटियां हैं. हाल ही में उनका पैर फ्रैक्चर हो गया, ऑपरेशन कराना पड़ा. ऐसे में उनको एक मेल अटेंडेंट चाहिए था, जो 24 घंटे देखभाल करे. लेकिन बेटी के घर में मेल अटेंडेंट रखना ठीक नहीं था इसलिए उन्होंने बेटी से बात करके ये प्रैक्टिकल सॉल्यूशन निकाला, अब यहां दवाई से लेकर फिजियोथेरेपी तक की पूरी सुविधा है.

सेल्फ रिस्पेक्ट की हिफाज़त

अखिल बताते हैं उन्हें एक 72 साल की पढ़ी-लिखी बिजनेसवुमेन ने फ़ोन कर कहा कि मैं आपके यहां रहना चाहती हूं क्योंकि मैं अपने बेटे के साथ नहीं रह सकती. वो मेरे साथ सही बर्ताव नहीं करता, मेरी भी अपनी कोई सेल्फ रिस्पेक्ट है. उनके साथ उनकी 96 साल की मां भी आईं, मैंने उनकी कोई फीस नहीं ली. उनके यहां रहने पर बेटे को भी अहसास हुआ कि मां उसके लिए कितनी जरूरी थीं. महानगरों में तो लोग हिसाब- किताब भी लगाकर देख लेते हैं ना कि घर में फ्री की कुक मिली हुई है, पेंशन का पैसा भी है. डॉग का भी ध्यान रख रही थी. कोचिंग से भी कमा रहीं थीं.

क्या है असिस्टेंट लिविंग सेटअप?

मॉडर्न सीनियर केयर सेंटर वैसे वृद्धाश्रम नहीं हैं, जहां लोग बस अपने बूढ़े मां- बाप को छोड़ जाया करते थे. इस नई व्यवस्था को लेकर अखिल शर्मा कहते हैं, अब लोग बहुत प्रोफेशनल और मनी माइंडेड होते जा रहे हैं. नई जनरेशन को आजादी इतनी पसंद है कि वो फैमिली के टच में बिल्कुल भी नहीं रहना चाहते हैं. PET पैरेंट बन जाएंगे लेकिन पेरेंट्स के साथ नहीं रहना चाहते हैं. अकेले रहने की वजह से पेरेंट्स डिप्रेशन में चले जाते हैं. घरों में बुजुर्गों से बात करने वाला ही कोई नहीं बचा है. अगर घर में नौकर आते भी हैं तो उनसे कितनी देर बात कर सकते हैं. इसलिए अच्छे घरों के ओल्ड एज पेरेंट्स अपनी मर्जी से भी यहां आते हैं और कई बच्चे मजबूरी में भी अपने पेरेंट्स यहां छोड़कर जाते हैं और रिमोट केयर करते हैं क्योंकि वो जॉब की वजह से या तो बाहर ही रहते हैं या घर पर पेरेंट्स को इतना समय नहीं दे पाते, जितनी उनको ज़रूरत है.

अखिल शर्मा बताते हैं कुछ लोग अपने माता- पिता को इसलिए भी हमारे पास रखते हैं क्योंकि वह वर्किंग होते हैं और घर में बच्चे भी होते हैं तो बुजुर्गों को संभाल पाना मुश्किल होता है.वह बताते हैं इस वाले केयर सेंटर में थोड़ा वेल टू डू फैमिली के लोग हैं, जिनके बच्चे नहीं हैं या फिर उनके बच्चे बाहर रह रहे हैं. कई ऐसे भी लोगों को रखा गया है, जो बीमार हैं और उनके घर में उनकी केयर नहीं हो पा रही है.

अपने दर्द ने दिखाई आगे की राह

डॉ. विपिन चौहान और उनकी पत्नी डॉ. सुमन चौहान नोएडा में पिछले 4 साल से बुजुर्गों की केयर के लिए रौशन स्मृति असिस्टेड लिविंग होम फॉर सीनियर्स नाम से केयर सेंटर चला रहे हैं. विपिन कहते हैं उनके पिता को अल्जाइमर हो गया था. उस समय उनको मैनेज करने में कई दिक्कतें होती थी, मुझे लगा कि इस दिशा में अच्छे से काम होना चाहिए. इसे केवल दवा से नहीं, सोशली और मनोवैज्ञानिक तौर पर भी ठीक करने की ज़रूरत है.


बुजुर्गों को डील करने में आती हैं चुनौतियां

अखिल शर्मा बताते हैं चुनौतियां ज्यादा हैं क्योंकि बुजुर्गों के मूड स्विंग बहुत होते हैं. वह बताते हैं कि उनके पास भी एक ऐसे अंकल हैं, जिन्हें अल्जाइमर की समस्या है. उनके बच्चों ने उनके पास अटेंडेंट रखा लेकिन वह किसी के साथ नहीं रह पाते थे. उनके बच्चे विदेश में रहते हैं और वह अपने पिता की केयर करना चाहते थे लेकिन उनके साथ भी समस्या है. ऐसे में उन्होंने इन्हें यहां रखा हुआ है ताकि उनका सही से ध्यान रखा जा सके. इस तरह के कई लोग हैं, जो अपने मां- बाप की सेवा करना चाहते हैं लेकिन नहीं कर पाते हैं.

केयर सेंटर की फीस और सुविधाएं

अखिल शर्मा के तपस्या केयर सेंटर में 8 पुरुष और 2 महिलाएं हैं. यहां पच्चीस हजार रुपये महीने की फीस में खाने- पीने के साथ लॉन्ड्री और वाई-फाई की सुविधा है. इसके साथ सबका ध्यान रखना और टाइम पर दवाई देना होता है. एक शेड्यूल बनाया जाता है और उसी के हिसाब से काम होता है.वह आगे बताते हैं एक कमरे में तीन लोग होते हैं और उन्हें बेड बॉक्स दिया जाता है, जिस पर वह लेटने के साथ अपना सामान भी रख सकते हैं. इसके साथ लकड़ी अलमारी दी जाती है. सभी कमरों में वॉशरूम अटैच होता है. जिसमें गीजर भी लगाया गया है. कमरों में AC नहीं लगाया जाता है क्योंकि बुजुर्गों को ठंड जल्दी लगने लगती है. गर्मी के लिए बड़े वाले कूलर लगाए गए हैं.डॉ विपिन चौहान बताते हैं उनके केयर सेंटर में केवल 20 लोगों के रहने की व्यवस्था है. फीस इस बात पर निर्भर करती हैं कि केयर किस टाइप की चाहिए. उनके सेंटर में 35000 से 1 लाख फीस लगती है.इसे असिस्टेंट लिविंग सेटअप बोला जाता है. इस सेटअप में एक डॉक्टर तो जरूर होना चाहिए, जो रोज़ाना बुजुर्गों की सेहत को मॉनीटर करे. यहां पर साइकोलॉजिकल पेशेंट भी रहते हैं. ऐसे में साइकोलॉजिस्ट की भी जरूरत होती है. साइकेट्रिस्ट, फिजियोथैरेपिस्ट, ऑक्यूपेशनल थेरेपिस्ट, डाइटिशियन के मिलने से ही टीम बन पाती है. इसके साथ नर्स और केयरटेकर की जरूरत तो होती ही है.

केयर सेंटर में कैसे लोग आते हैं?

इस नई व्यवस्था को लेकर अखिल शर्मा कहते हैं कि अब लोग बहुत प्रोफेशनल होते जा रहे हैं. सब मनी माइंडेड होते जा रहे हैं. अबकी जनरेशन को आजादी इतनी पसंद है कि वो फैमिली के टच में बिल्कुल भी नहीं रहना चाहते हैं. मेरे पास बहुत सारे ऐसे केस हैं, जिसमें वह अकेले ही रहना चाहते हैं. इस वजह से पेरेंट्स डिप्रेशन में चले जाते हैं. घरों में बुजुर्गों से बात करने वाला ही कोई नहीं बचा है. अगर घर में नौकर आते भी हैं तो उनसे कितनी देर बात कर सकते हैं.

विपिन चौहान बताते हैं कि सोसाइटी में हर तरीके के लोग होते हैं लेकिन बुजुर्गों को केयर सेंटर में रखने के लिए ज्यादातर बच्चे ही जिम्मेदार हैं. हमारे पास ज्यादातर ऐसे बुजुर्ग हैं, जिनके साथ कई तरह की समस्या है और उन्हें घर में मैनेज करने में बहुत मुश्किल होती है. कुछ बुजुर्गों को डिमेंशिया या अल्ज़ाइमर जैसी बीमारी हो जाती है. जिसकी वजह से वह अक्सर पूरे घर में घूमते रहते हैं. कई बार होता है कि वह अपने अटेंडेंट को ही नुकसान पहुंचाने की कोशिश करते हैं.

कैसे बनाया जाता है ये सेटअप

ऐसे सेटअप सेक्शन 8 की तरह ही रजिस्टर किए जाते हैं, जैसे सोसायटी, ट्रस्ट चलाए जाते हैं. अभी बहुत कम ऐसी कंपनी है, जो प्राइवेट लिमिटेड की तरह चलती है.


केयरटेकर का भी ध्यान रखा जाता है

डॉ. विपिन चौहान कहते हैं कि अधिकतर सेटअप में लोगों का फोकस केवल मरीजों पर होता है. जबकि हमें पेशेंट से ज्यादा उनकी सेवा करने वालों की भी कंडीशन देखनी होती है. एक कॉन्सेप्ट है कि Caregiver stress तो हमें उसे भी स्मार्टली मैनेज करना होता है.जुग जुग जिओ… तुम्हें मेरी उमर लग जाए… सौ साल जियो.. हिंदुस्तान में आशीर्वाद इसी दुआ के साथ दिया जाता है. तो वहीं बॉलीवुड की फिल्म आनंद में राजेश खन्ना का डायलॉग करोड़ों दिलों के करीब है, जब वो कहते हैं, बाबू मोशाय जिंदगी बड़ी होनी चाहिए, लंबी नहीं. जो मां-बाप अपने बच्चों में ये भाव जगाते हैं कि डरो नहीं मैं हूं उन्हीं मां-बाप बच्चों के बड़े होने के बाद इनसिक्योरिटी के डर के साए में जीने को मजबूर होते हैं..लेकिन बदलते वक्त की ज़रूरत में इस तरह के सीनियर केयर सेंटर इन तमाम इन्सिक्योरिटी का जवाब है, जो ज़िंदगी की लास्ट इनिंग्स के लिए भी पिच तैयार कर रहे हैं.


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