
वन नेशन-वन इलेक्शन: मोदी सरकार के प्लान से राज्यों के चुनावी नियम कैसे बदलेंगे?
भारत का लोकतांत्रिक ताना-बाना हमेशा से विविधता और बहुलता का प्रतीक रहा है। लेकिन, एक देश-एक चुनाव की पहल, जिसे मोदी सरकार ने अपने तीसरे कार्यकाल में लागू करने की योजना बनाई है, यह एक महत्वपूर्ण और क्रांतिकारी बदलाव का संकेत देती है। इस योजना के अंतर्गत 2029 से लोकसभा चुनाव के साथ-साथ सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाने का प्रस्ताव है, और इससे भी आगे बढ़कर पंचायत और नगर पालिकाओं के चुनाव भी समायोजित किए जाने की संभावना है।
एक देश-एक चुनाव की अवधारणा
भारत में चुनाव एक जटिल और समय-लंबी प्रक्रिया है। अलग-अलग समय पर होने वाले लोकसभा और विधानसभा चुनाव न केवल प्रशासनिक और वित्तीय चुनौतियों का सामना कराते हैं, बल्कि राजनीतिक स्थिरता को भी प्रभावित कर सकते हैं। एक देश-एक चुनाव की अवधारणा का मुख्य उद्देश्य चुनावी प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करना, संसाधनों का बेहतर उपयोग करना और चुनावी खर्च को कम करना है।
कोविंद समिति की सिफारिशें
पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में गठित समिति ने एक देश-एक चुनाव पर अपनी विस्तृत रिपोर्ट 14 मार्च 2024 को राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू को सौंपा। इस रिपोर्ट में यह सुझाव दिया गया कि चुनावों को दो चरणों में आयोजित किया जाए: पहले चरण में लोकसभा और सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाएं, जबकि दूसरे चरण में नगर पालिकाओं और पंचायतों के चुनाव आयोजित किए जाएं। इस योजना के तहत 2029 से शुरुआत की जा सकती है, जिससे हर पांच साल में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ कराए जा सकेंगे।
संविधान में संशोधन की आवश्यकता
इस पहल को लागू करने के लिए संविधान में महत्वपूर्ण संशोधन करने की आवश्यकता होगी। समिति ने अनुच्छेद 82A जोड़ने की सिफारिश की है, जो लोकसभा और विधानसभा चुनावों को समकालिक करने के लिए एक संवैधानिक आधार प्रदान करेगा। इसके अतिरिक्त, अनुच्छेद 83 और 172 में भी संशोधन की आवश्यकता होगी। यदि यह संशोधन लागू होता है, तो सभी राज्यों की विधानसभाओं का कार्यकाल लोकसभा के कार्यकाल के साथ समाप्त हो जाएगा, जिससे चुनावी प्रक्रिया को समन्वित किया जा सकेगा।
चुनावी शेड्यूल में बदलाव
राज्यों के चुनावी शेड्यूल को एक साथ लाने के लिए उनके कार्यकाल में बदलाव किया जाएगा। इसका मतलब है कि कुछ राज्यों में विधानसभा का कार्यकाल वर्तमान में 5 साल से कम या ज्यादा हो सकता है। उदाहरण के लिए:
- 5 साल कार्यकाल: आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, ओडिशा और सिक्किम की विधानसभाओं का कार्यकाल लोकसभा के साथ समाप्त होगा।
- 4 साल कार्यकाल: झारखंड, बिहार और दिल्ली की विधानसभाओं का कार्यकाल 4 साल होगा।
- 3 साल कार्यकाल: पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, असम, केरल और पुडुचेरी की विधानसभाओं का कार्यकाल 3 साल होगा।
- 2 साल कार्यकाल: उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गुजरात, पंजाब, गोवा और मणिपुर की विधानसभाओं का कार्यकाल 2 साल होगा।
- 1 साल या उससे कम: हिमाचल प्रदेश, मेघालय, नागालैंड, त्रिपुरा, कर्नाटक, तेलंगाना, मिजोरम, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान की विधानसभाओं का कार्यकाल 1 साल या उससे कम होगा।
राजनीतिक और प्रशासनिक चुनौतियाँ
एक देश-एक चुनाव की पहल में कई राजनीतिक और प्रशासनिक चुनौतियाँ शामिल हैं। इसका प्रमुख मुद्दा यह है कि कई राज्य सरकारें और राजनीतिक पार्टियाँ विधानसभा के कार्यकाल को पहले भंग करने के लिए सहमत नहीं हो सकती हैं। कुछ पार्टियाँ इसे अपनी राजनीतिक स्वायत्तता और क्षेत्रीय मुद्दों को कमजोर करने के रूप में देख सकती हैं।
राजनीतिक दलों का समर्थन और विरोध इस पहल की सफलता को तय कर सकता है। फिलहाल, 62 राजनीतिक पार्टियों में से 32 ने इस पहल का समर्थन किया है, जबकि 15 पार्टियाँ इसके विरोध में हैं और 15 ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। विरोध करने वाली पार्टियों का कहना है कि इससे क्षेत्रीय मुद्दों की उपेक्षा हो सकती है और राष्ट्रीय मुद्दों को अधिक प्राथमिकता मिल सकती है।
ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
भारत में एक साथ चुनाव कराने की परंपरा पहले भी रही है। आजादी के बाद 1952, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ हुए थे। लेकिन, 1968 और 1969 में कुछ विधानसभाओं के समय से पहले भंग होने के कारण और फिर 1970 में लोकसभा के भंग होने के बाद यह परंपरा टूट गई। अब एक बार फिर से इसे लागू करने की योजना बनाई जा रही है।
संभावित लाभ
यदि यह पहल सफल होती है, तो इसके कई लाभ हो सकते हैं:
- खर्च में कमी: चुनावी खर्चों में कमी आएगी, जिससे सार्वजनिक धन की बचत होगी।
- प्रशासनिक सुविधा: चुनावी प्रक्रियाओं का समन्वय सरल होगा, जिससे प्रशासनिक कार्यों में आसानी होगी।
- राजनीतिक स्थिरता: एक साथ चुनाव कराने से राजनीतिक स्थिरता बनी रहेगी और चुनावों का समय निश्चित होगा।
संभावित समस्याएँ
हालांकि, इस योजना को लागू करने में कई समस्याएँ भी हो सकती हैं:
- राजनीतिक विरोध: कुछ राजनीतिक पार्टियों का विरोध और राज्य सरकारों का असंतोष इस पहल को चुनौती दे सकता है।
- संवैधानिक बदलाव: संविधान में संशोधन की प्रक्रिया लंबी और जटिल हो सकती है।
- स्थानीय मुद्दे: एक साथ चुनाव कराने से स्थानीय मुद्दों की उपेक्षा हो सकती है और राष्ट्रीय मुद्दों को अधिक प्राथमिकता मिल सकती है।
एक देश-एक चुनाव की पहल भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण बदलाव का संकेत देती है। यदि यह सफलतापूर्वक लागू होती है, तो यह चुनावी प्रक्रिया को अधिक सुव्यवस्थित, आर्थिक रूप से लाभकारी और स्थिर बना सकती है। हालांकि, इसके लिए आवश्यक संवैधानिक संशोधनों और राजनीतिक सहमति को प्राप्त करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य होगा। अंततः, इसका सफल कार्यान्वयन भारतीय लोकतंत्र और चुनावी प्रक्रिया में एक नई दिशा प्रदान कर सकता है, जिससे देश की राजनीतिक स्थिरता और प्रशासनिक दक्षता में सुधार हो सकता है।
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