प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीन की विस्तारवादी नीति पर फिर से तंज कसा



प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीन की विस्तारवादी नीति पर फिर से तंज कसा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीन की विस्तारवादी नीति पर एक बार फिर सख्त टिप्पणी की है। उन्होंने चीन का नाम लिए बिना कहा कि भारत विकास की नीति को प्राथमिकता देता है, विस्तारवाद की नहीं। यह बयान उन्होंने ब्रुनेई के सुल्तान हाजी हसनल बोल्कैया के साथ एक बैठक के दौरान दिया। मोदी का यह बयान चीन के लिए एक कड़ा संदेश माना जा रहा है, खासकर तब जब चीन का दक्षिण चीन सागर के साथ विवाद है और ब्रुनेई भी इसी विवाद का हिस्सा है।

'विकासवाद' बनाम 'विस्तारवाद': पीएम मोदी की टिप्पणी का संदर्भ

यह पहली बार नहीं है जब प्रधानमंत्री मोदी ने चीन की विस्तारवादी नीति पर टिप्पणी की है। जुलाई 2020 में, जब पीएम मोदी लद्दाख में थे, उन्होंने चीन को चेतावनी देते हुए कहा था कि विस्तारवाद का युग समाप्त हो चुका है। उन्होंने कहा था, “जो लोग विस्तारवाद से प्रेरित हैं, उन्होंने हमेशा दुनिया के लिए खतरा पैदा किया है। इतिहास गवाह है कि ऐसी ताकतें या तो नष्ट हो गईं या वापस लौटने के लिए मजबूर हो गईं।”इससे पहले, फरवरी 2014 में पीएम मोदी ने अरुणाचल प्रदेश के संदर्भ में चीन की विस्तारवादी नीति पर हमला किया था। उन्होंने कहा था, “चीन को अपनी विस्तारवादी नीति छोड़नी चाहिए और दोनों देशों के बीच शांति, प्रगति और समृद्धि के लिए द्विपक्षीय संबंध बनाने चाहिए।” इसके अलावा, 2014 में जापान के दौरे के दौरान मोदी ने विस्तारवादी नीति को 18वीं सदी की मानसिकता बताया था और कहा था कि 21वीं सदी में ऐसी प्रवृत्तियों से कोई फायदा नहीं होगा।

चीन की विस्तारवादी नीति: एक ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य

चीन को विस्तारवादी इसलिए कहा जाता है क्योंकि उसने पिछले कुछ दशकों में धीरे-धीरे अपनी सीमाओं को बढ़ाया है। आज चीन की सीमाएं 14 देशों से लगती हैं, और इनमें से लगभग सभी के साथ उसकी सीमा पर विवाद है। चीन का कुल क्षेत्रफल 97 लाख वर्ग किलोमीटर से अधिक है, जो भारत से लगभग तीन गुना बड़ा है।चीन ने अपने विस्तारवादी रवैये के तहत पूर्वी तुर्किस्तान, तिब्बत, इनर मंगोलिया, ताइवान, हॉन्गकॉन्ग और मकाउ पर कब्जा किया है। इसके अलावा, हाल ही में चीन ने एक नया नक्शा जारी किया जिसमें भारत के अक्साई चिन और अरुणाचल प्रदेश को भी अपने हिस्से के रूप में दिखाया गया।

चीन ने कैसे किया कब्जा: एक विश्लेषण

  • पूर्वी तुर्किस्तान: 1949 से चीन ने इस क्षेत्र पर कब्जा कर लिया है और इसे ‘शिनजियांग प्रांत’ के रूप में जाना जाता है। यहां की आबादी में उइगर मुसलमान और हान चीनी शामिल हैं। शिनजियांग को भी चीन ने स्वायत्त क्षेत्र घोषित किया है।
  • तिब्बत: 23 मई 1950 को चीन ने तिब्बत पर हमला कर उसे अपने कब्जे में ले लिया। तिब्बत को चीन ‘शिजांग प्रांत’ के रूप में मानता है। यहाँ की अधिकांश आबादी बौद्ध धर्म को मानती है।
  • इनर मंगोलिया: दूसरे विश्व युद्ध के बाद चीन ने इस क्षेत्र पर कब्जा कर लिया। 1947 में इसे स्वायत्त घोषित किया गया। यहां की आबादी में मंगोलियाई और चीनी लोग शामिल हैं।
  • ताइवान: 1911 में चीन में राजशाही के पतन के बाद, ताइवान पर कुओमिंतांग सरकार ने कब्जा किया। 1949 में जब चीन का नाम ‘पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना’ पड़ा, ताइवान ने ‘रिपब्लिक ऑफ चाइना’ के रूप में अपनी स्वतंत्रता का दावा किया।
  • हॉन्गकॉन्ग और मकाउ: हॉन्गकॉन्ग पर ब्रिटेन ने 1842 में कब्जा किया और 1997 में इसे चीन को सौंप दिया। मकाउ पर पुर्तगालियों ने 450 साल तक शासन किया और दिसंबर 1999 में इसे चीन को सौंप दिया। दोनों क्षेत्रों को चीन ने 50 साल तक विशेष राजनैतिक आजादी दी है।

भारत पर चीन का अवैध कब्जा

भारत के साथ चीन की 3,488 किमी लंबी सीमा है। चीन अरुणाचल प्रदेश के 90 हजार वर्ग किमी क्षेत्र पर अपना दावा करता है, जबकि भारत का कहना है कि यह हमेशा से भारतीय क्षेत्र रहा है और रहेगा। इसके अलावा, लद्दाख का करीब 38 हजार वर्ग किमी हिस्सा भी चीन के कब्जे में है। 1963 के एक समझौते के तहत पाकिस्तान ने पीओके की 5,180 वर्ग किमी जमीन चीन को दे दी थी।

समंदर में भी विवाद: दक्षिण चीन सागर

चीन का सीमा विवाद केवल भूमि तक सीमित नहीं है; इसका समुद्री विवाद भी कई देशों से है। दक्षिण चीन सागर एक ऐसा क्षेत्र है जो चीन, फिलीपींस, ताइवान, वियतनाम, मलेशिया और ब्रुनेई के बीच विवादित है। चीन ने यहां कृत्रिम द्वीप बनाकर सैन्य अड्डे स्थापित किए हैं और दावा किया है कि दक्षिण चीन सागर पर उसका दो हजार साल पुराना अधिकार है। इस क्षेत्र में हाल के वर्षों में तनाव बढ़ा है, जिससे क्षेत्रीय शक्तियों के बीच तनाव और प्रतिस्पर्धा बढ़ गई है।

समापन विचार

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की टिप्पणियों का संदेश स्पष्ट है: भारत विस्तारवाद की नीति का विरोध करता है और विकास की नीति को प्राथमिकता देता है। चीन के विस्तारवादी रवैये की आलोचना कर मोदी ने यह संकेत दिया है कि भारत अपनी संप्रभुता की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है और किसी भी प्रकार की विस्तारवादी गतिविधियों को स्वीकार नहीं करेगा। इस संदर्भ में, वैश्विक राजनीति और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में बदलाव की संभावना बनी रहती है, जो आने वाले समय में और भी स्पष्ट हो सकती है।

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