अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव: अगर कोई उम्मीदवार 270 इलेक्टोरल वोट न हासिल कर पाए तो क्या होगा?


अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव: अगर कोई उम्मीदवार 270 इलेक्टोरल वोट न हासिल कर पाए तो क्या होगा?

 अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव: अगर कोई उम्मीदवार 270 इलेक्टोरल वोट न हासिल कर पाए तो क्या होगा?

अमेरिका में आज यानी 5 नवंबर को 47वें राष्ट्रपति के चुनाव के लिए मतदान हो रहा है, जहां रिपब्लिकन पार्टी के डोनाल्ड ट्रम्प और डेमोक्रेटिक पार्टी की कमला हैरिस के बीच सीधा मुकाबला देखने को मिल रहा है। अब तक आए सभी सर्वे और पोल्स के अनुसार, ट्रंप और हैरिस के बीच यह मुकाबला बेहद कांटे का है। एक प्रतिशत वोट भी इधर-उधर होने से नतीजे बदल सकते हैं, और यही वजह है कि यह चुनाव बेहद रोमांचक बना हुआ है।

राष्ट्रपति पद के लिए चुनावी प्रक्रिया

अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव आसान नहीं है, क्योंकि वहां का चुनावी तंत्र पारंपरिक से कुछ अलग है। अमेरिका में राष्ट्रपति बनने के लिए किसी भी उम्मीदवार को 270 इलेक्टोरल वोटों की आवश्यकता होती है। यह इलेक्टोरल वोट, जनमत संग्रह के माध्यम से नहीं, बल्कि इलेक्टोरल कॉलेज (Electoral College) द्वारा तय होते हैं। अमेरिका में कुल 538 इलेक्टोरल वोट होते हैं और राष्ट्रपति बनने के लिए कम से कम 270 इलेक्टोरल वोट हासिल करना अनिवार्य है।

क्या होगा अगर कोई उम्मीदवार 270 इलेक्टोरल वोट न हासिल कर पाए?

अमेरिकी चुनाव में यदि कोई भी उम्मीदवार 270 इलेक्टोरल वोट हासिल करने में विफल रहता है तो मामला अमेरिकी संसद, यानी कांग्रेस के पास चला जाता है। कांग्रेस के निचले सदन, हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स में राष्ट्रपति का चुनाव होता है। हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स में कुल 435 प्रतिनिधि होते हैं, लेकिन कंटिंजेंट इलेक्शन (वैकल्पिक चुनाव) की प्रक्रिया के दौरान हर राज्य को एक ही वोट मिलता है। इस तरह, कुल 50 राज्यों में से 50 वोट होते हैं, और जो उम्मीदवार 26 वोट हासिल कर लेता है, वह राष्ट्रपति बन जाता है।यह चुनाव प्रक्रिया अमेरिकी संविधान में कंटिंजेंट इलेक्शन के रूप में परिभाषित की गई है। वहीं, उपराष्ट्रपति को चुनने की प्रक्रिया सीनेट (संसद के उच्च सदन) के पास होती है, जिसमें 100 सीनेटर होते हैं।

इतिहास में कब हुआ ऐसा चुनाव?

अमेरिकी इतिहास में दो बार ऐसी स्थिति बनी, जब कोई उम्मीदवार बहुमत प्राप्त नहीं कर पाया और हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स को राष्ट्रपति का चुनाव करना पड़ा।

  1. 1800 का चुनाव: यह पहला उदाहरण था जब कंटिंजेंट इलेक्शन का इस्तेमाल हुआ। उस समय डेमोक्रेटिक-रिपब्लिकन पार्टी के थॉमस जेफरसन और आरोन बार के बीच राष्ट्रपति पद के लिए मुकाबला था। इस चुनाव में किसी भी उम्मीदवार को बहुमत नहीं मिला, जिसके बाद हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स ने थॉमस जेफरसन को राष्ट्रपति चुना।

  2. 1824 का चुनाव: दूसरा उदाहरण 1824 में हुआ, जब एंड्रयू जैक्सन, जॉन क्विंसी एडम्स, विलियम क्रॉफर्ड और हेनरी क्ले के बीच राष्ट्रपति पद की लड़ाई थी। जैक्सन को सबसे ज्यादा पॉपुलर वोट मिले थे और वह इलेक्टोरल वोट्स में भी आगे थे, लेकिन बहुमत से 32 इलेक्टोरल वोट पीछे थे। इस स्थिति में चुनाव हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स में गया और अंततः एडम्स को राष्ट्रपति चुना गया।

क्या मतदान में देरी हो सकती है?

यहां एक सवाल उठता है कि अगर हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स में राष्ट्रपति का चुनाव डेडलॉक (बराबरी की स्थिति) में पहुंचता है तो क्या होगा? अगर हाउस में 50 वोट पड़ते हैं, तो संभावित रूप से डेडलॉक की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। ऐसे में वोटिंग तब तक जारी रहती है जब तक कि किसी एक उम्मीदवार को बहुमत नहीं मिल जाता।अगर राष्ट्रपति चुनाव का फैसला 20 जनवरी 2025 तक नहीं हो पाता, तो सीनेट में जो भी उपराष्ट्रपति चुना गया होगा, वह अस्थायी रूप से राष्ट्रपति का कार्यभार संभालेगा। अगर उपराष्ट्रपति का चुनाव भी संपन्न नहीं हो पाता, तो Presidential Succession Act के तहत सदन के अध्यक्ष को कार्यवाहक राष्ट्रपति बना दिया जाता है।

क्या यह प्रक्रिया लोकतंत्र को प्रभावित कर सकती है?

इस चुनावी प्रक्रिया को लेकर कई विशेषज्ञों और नागरिकों के मन में सवाल उठते हैं कि क्या यह प्रणाली लोकतंत्र को प्रभावित करती है। खासकर जब कोई उम्मीदवार बहुमत के करीब पहुंचकर भी राष्ट्रपति बनने से चूक जाता है। हालांकि, संविधान की यह प्रक्रिया यह सुनिश्चित करती है कि राष्ट्रपति का चयन न्यायपूर्ण तरीके से और सभी राज्यों के प्रतिनिधित्व के साथ किया जाए।इसमें कोई शक नहीं कि राष्ट्रपति चुनाव में अगर कोई भी उम्मीदवार 270 इलेक्टोरल वोट हासिल नहीं कर पाता है, तो वह पूरी दुनिया की नजरों में चुनावी प्रक्रिया के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकता है। चुनाव के अंतिम परिणाम तक पहुंचने में देरी लोकतांत्रिक संस्थाओं की साख पर भी असर डाल सकती है।

अमेरिका में राष्ट्रपति का चुनाव जटिल और बेहद सख्त प्रक्रिया है। यदि कोई उम्मीदवार 270 इलेक्टोरल वोट नहीं हासिल कर पाता, तो यह मामला कांग्रेस में पहुंचता है, जहां से राष्ट्रपति का चुनाव होता है। इस प्रक्रिया के तहत यदि वोटिंग में देरी होती है या डेडलॉक की स्थिति बनती है, तो राष्ट्रपति का चुनाव स्थगित भी हो सकता है। इस स्थिति में कार्यवाहक राष्ट्रपति की भूमिका निभाने के लिए उपराष्ट्रपति या सदन के अध्यक्ष को चुना जाता है। अमेरिका में यह प्रक्रिया लोकतंत्र को सही तरीके से काम करने की गारंटी देती है, हालांकि इसके जरिए कभी-कभी चुनावी नतीजों में देरी हो सकती है।यह देखना दिलचस्प होगा कि इस बार के राष्ट्रपति चुनाव में क्या होता है, और कौन अमेरिका का अगला राष्ट्रपति बनता है।

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