संसद सत्र में आंबेडकर का मुद्दा कांग्रेस के लिए ‘भाग्य का मोड़’



संसद सत्र में आंबेडकर का मुद्दा कांग्रेस के लिए ‘भाग्य का मोड़’

20 दिसंबर को 18वीं लोकसभा का शीतकालीन सत्र समाप्त हुआ, लेकिन इस सत्र ने राजनीति के कुछ ऐसे मोड़ लिए, जो लंबे समय तक चर्चा का विषय बने रहेंगे। 25 नवंबर को शुरू हुआ यह सत्र शुरुआत से ही हंगामेदार रहा, लेकिन 19 दिसंबर को एक ऐसा घटनाक्रम हुआ, जिसने न केवल सरकार और विपक्ष के बीच तनाव को और बढ़ा दिया, बल्कि कांग्रेस के नेता राहुल गांधी की कानूनी मुश्किलों को भी और गंभीर बना दिया। इसके बावजूद, यह मुद्दा कांग्रेस के लिए एक राजनीतिक अवसर साबित हो सकता है, जो उन्हें आगामी चुनावों में फायदा दे सकता है।

आंबेडकर पर बयान से बवाल

यह सत्र शुरुआत में अडानी घोटाले और मणिपुर के मुद्दे को लेकर विपक्षी दलों द्वारा लगातार हंगामे से घिरा रहा। विपक्ष ने इन मुद्दों पर सरकार को घेरने की कोशिश की, लेकिन जिस मुद्दे ने संसद में सबसे ज्यादा गर्माहट पैदा की, वह था केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का भीमराव आंबेडकर पर दिया गया बयान। 16 दिसंबर को शाह ने आंबेडकर के योगदान और उनके विचारों को लेकर कुछ ऐसे बयान दिए, जिनसे आंबेडकर के अनुयायी और विपक्षी दल चिढ़ गए। कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने इसे आंबेडकर का अपमान करार दिया, और इसके खिलाफ प्रदर्शन शुरू कर दिए।कांग्रेस ने शाह से सार्वजनिक माफी की मांग की और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उनके खिलाफ कार्रवाई की अपील की। हालांकि, मोदी ने अपने मंत्रिमंडलीय सहयोगी का खुलकर समर्थन किया, जिससे विरोध और भी तेज हो गया। 19 दिसंबर को संसद में जमकर हंगामा हुआ, दोनों पक्षों के सांसदों के बीच तीखी बहस हुई, और धक्का-मुक्की तक की नौबत आ गई। स्थिति इतनी गंभीर हो गई कि यह मामला दिल्ली पुलिस तक पहुंच गया, और राहुल गांधी समेत कुछ नेताओं के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज हो गई।

राहुल गांधी की कानूनी मुश्किलें

राहुल गांधी के खिलाफ न केवल एफआईआर दर्ज हुई, बल्कि इस मामले में क्राइम ब्रांच भी जांच करने जा रही है। कांग्रेस ने जवाबी कार्रवाई करते हुए बीजेपी के सांसदों के खिलाफ क्रॉस एफआईआर दर्ज कराई। इसके अलावा, संसद में भी विशेषाधिकार हनन के नोटिस दिए गए। राहुल गांधी के खिलाफ यह नोटिस राज्यसभा के विपक्षी नेता मल्लिकार्जुन खड़गे और टीएमसी नेता डेरेक ओ'ब्रायन की ओर से दिए गए थे। दोनों ही नेताओं ने आरोप लगाया कि राहुल गांधी को अपमानित किया गया है और उनके अधिकारों का हनन हुआ है।दूसरी ओर, बीजेपी के सांसद निशिकांत दुबे ने भी राहुल गांधी के खिलाफ विशेषाधिकार हनन का नोटिस दिया और उन्हें सदन का अपमान करने का दोषी ठहराया। इससे मामला और भी जटिल हो गया, क्योंकि यह न केवल कानूनी मोर्चे पर लड़ा जा रहा था, बल्कि संसद के भीतर भी दोनों पक्ष एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने लगे थे।

विपक्ष का आंबेडकर पर एकजुट होना

आंबेडकर के नाम पर उठे इस विवाद ने विपक्ष को एकजुट करने का काम किया। तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी), जो आमतौर पर कांग्रेस से दूरी बनाकर चलती रही है, अब इस मुद्दे पर कांग्रेस का समर्थन करती नजर आई। ममता बनर्जी की पार्टी ने भी अमित शाह के बयान पर तीखा विरोध किया और इसे आंबेडकर के सम्मान का अपमान बताया। वहीं, मायावती की बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) ने भी इस मुद्दे पर बीजेपी को घेरा, हालांकि, मायावती ने राहुल गांधी की टी-शर्ट के रंग पर भी आपत्ति जताते हुए कांग्रेस की "सस्ती राजनीति" की आलोचना की।समाजवादी पार्टी (सपा) ने भी इस मुद्दे पर कांग्रेस का समर्थन किया और संसद परिसर में विरोध प्रदर्शन किए। इस प्रदर्शन में सपा के महासचिव रामगोपाल यादव भी शामिल थे। दिलचस्प यह था कि जब राहुल गांधी सपा सांसदों से मिलने पहुंचे, तो वे भी कांग्रेस के साथ मिलकर विरोध प्रदर्शन में शामिल हो गए। यह एक राजनीतिक संदेश था कि विपक्षी दल अब एकजुट हो रहे थे और बीजेपी के खिलाफ खड़े हो रहे थे।

अरविंद केजरीवाल का दखल

दिलचस्प बात यह है कि अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी (AAP) भी इस मुद्दे पर सक्रिय हो गई। केजरीवाल ने अपनी पार्टी के वीडियो में आंबेडकर से आशीर्वाद लेने की बात कही और बीजेपी पर हमला किया। उन्होंने तृणमूल कांग्रेस, जेडीयू, और टीडीपी जैसे दलों को भी पत्र लिखकर अमित शाह के बयान को लेकर सरकार की आलोचना करने के लिए प्रेरित किया। केजरीवाल का मानना था कि शाह के बयान से लाखों भारतीयों की भावनाएँ आहत हुई हैं और इससे आंबेडकर की विरासत को नुकसान पहुँच रहा है।अरविंद केजरीवाल ने एनडीए के दो महत्वपूर्ण सहयोगी नेताओं नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू को भी इस मामले में बीजेपी के खिलाफ खड़े होने के लिए पत्र लिखा। यह कदम इस बात का संकेत था कि विपक्ष के पास अब एक नया मुद्दा है, जो बीजेपी को चुनावी नुकसान पहुँचा सकता है।

बीजेपी के लिए खतरा

अमित शाह के बयान ने बीजेपी के लिए एक नई चुनौती खड़ी कर दी। विपक्षी दलों ने इस मुद्दे पर एकजुट होकर बीजेपी की राजनीति को घेर लिया। अगर यह मुद्दा चुनावी मैदान में पहुँचा, तो बीजेपी को इससे नुकसान हो सकता है, खासकर उन राज्यों में जहाँ दलितों और पिछड़े वर्गों की संख्या महत्वपूर्ण है। विपक्षी दल इस मुद्दे को भावनात्मक रूप से जोड़कर वोटबैंक को अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रहे हैं।इसके अलावा, विपक्षी दलों के एकजुट होने से बीजेपी के लिए यह मुश्किल हो सकता है कि वह आगामी लोकसभा चुनावों में इस गठबंधन को कमजोर कर सके। खासकर, यदि विपक्षी दलों ने आंबेडकर के मुद्दे पर एक व्यापक जन आंदोलन खड़ा किया, तो बीजेपी को इससे राजनीतिक नुक्सान हो सकता है।

कांग्रेस के लिए रणनीतिक अवसर

कांग्रेस के लिए यह मुद्दा एक रणनीतिक अवसर बन सकता है। राहुल गांधी की कानूनी मुश्किलों के बावजूद, आंबेडकर के सम्मान का मुद्दा उनके लिए एक मंच प्रदान कर सकता है, जिससे वह समाज के विभिन्न वर्गों को अपने पक्ष में ला सकते हैं। विपक्षी दलों के साथ मिलकर कांग्रेस इस मुद्दे को आगामी चुनावों में एक चुनावी हथियार के रूप में इस्तेमाल कर सकती है।साथ ही, यह एक संकेत है कि कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों के बीच के मतभेदों को पीछे छोड़ते हुए एक व्यापक विपक्षी गठबंधन की संभावनाएँ बन सकती हैं। आंबेडकर का मुद्दा उन दलों को जोड़ने का काम कर सकता है, जो अन्यथा अलग-अलग चुनावी रणनीतियों पर काम कर रहे थे।

आंबेडकर के नाम पर उठे विवाद ने संसद के शीतकालीन सत्र के अंतिम दिनों में राजनीति की दिशा बदल दी। यह सिर्फ एक बयान का मामला नहीं है, बल्कि यह विपक्ष और कांग्रेस के लिए एक बड़ा राजनीतिक अवसर बन सकता है। राहुल गांधी की कानूनी मुश्किलें जहां एक तरफ उनके लिए चुनौती बनीं, वहीं आंबेडकर का मुद्दा कांग्रेस के लिए एक रणनीतिक लाभ भी बन सकता है। इस घटनाक्रम ने यह साबित कर दिया है कि विपक्षी एकजुटता और सही मुद्दे पर संघर्ष करने से सरकार को न केवल राजनीतिक नुकसान हो सकता है, बल्कि यह आगामी चुनावों में कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों को नया शक्ति केंद्र दे सकता है। 

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