कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो का इस्तीफा भारत-कनाडा संबंधों पर क्या होगा असर?

कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो का इस्तीफा भारत-कनाडा संबंधों पर क्या होगा असर?


 कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो का इस्तीफा भारत-कनाडा संबंधों पर क्या होगा असर?

कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने आखिरकार अपने पद से इस्तीफा दे दिया है, और यह घटनाक्रम कनाडा और भारत के संबंधों के संदर्भ में कई अहम सवाल खड़े करता है। ट्रूडो का प्रधानमंत्री पद छोड़ना सिर्फ एक व्यक्तिगत राजनीतिक उथल-पुथल नहीं है, बल्कि यह दोनों देशों के बीच भविष्य के रिश्तों पर भी गहरा असर डालने वाला हो सकता है। इस लेख में हम विस्तार से यह समझेंगे कि जस्टिन ट्रूडो के इस्तीफे के पीछे की मुख्य वजहें क्या हैं और इसका भारत के साथ कनाडा के संबंधों पर क्या प्रभाव पड़ सकता है।

जस्टिन ट्रूडो का प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा 

जस्टिन ट्रूडो 2015 में कनाडा के प्रधानमंत्री बने थे, और उनका शासन बहुत कुछ बदलाव और सुधारों के साथ जुड़ा था। शुरुआत में ट्रूडो ने समावेशी समाज, महिलाओं के अधिकारों और पर्यावरण की दिशा में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए थे, जिससे उनकी लोकप्रियता बढ़ी थी। हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में उनकी छवि में गिरावट आई, और उनकी नीतियों पर सवाल उठने लगे।ट्रूडो की सरकार की आलोचना की मुख्य वजह उनकी पार्टी में बढ़ता विरोध, बिगड़ती अर्थव्यवस्था, और खासकर खालिस्तानी आतंकवादियों के समर्थन से जुड़ी विवादित नीतियां रही। विशेष रूप से, जब ट्रूडो ने खालिस्तानी आतंकवादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के बाद भारत पर आरोप लगाए, तो यह मामला काफी तूल पकड़ गया। भारत ने कई बार कनाडा से अपेक्षा की थी कि वह आतंकवादियों के खिलाफ ठोस कदम उठाए, लेकिन ट्रूडो ने इस मामले में नरम रुख अपनाया।इस स्थिति ने न केवल भारतीय समुदाय के बीच उनका समर्थन घटाया, बल्कि उनकी पार्टी में भी विरोध को जन्म दिया। उनकी कैबिनेट में कई मंत्रियों ने इस्तीफा दिया, और विपक्षी दलों ने उनकी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। इन सभी कारणों के चलते, ट्रूडो को अंततः प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा।

भारत और कनाडा के रिश्तों में खटास का कारण

भारत और कनाडा के रिश्तों में खटास उस समय आई जब जस्टिन ट्रूडो ने खालिस्तान आंदोलन के समर्थकों को अपनी राजनीतिक सहानुभूति दी। उन्होंने और उनकी सरकार ने खालिस्तानी आतंकियों के खिलाफ कोई सख्त कदम नहीं उठाए, जो भारत के लिए एक संवेदनशील मुद्दा है। यह स्थिति 2023 में और गंभीर हो गई जब हरदीप सिंह निज्जर, एक खालिस्तानी आतंकवादी, की हत्या के बाद ट्रूडो ने बिना प्रमाण के भारत पर आरोप लगाए।भारत ने कनाडा को कई बार सलाह दी कि उसे आतंकवादियों और कट्टरपंथियों के खिलाफ कठोर कदम उठाने चाहिए, लेकिन ट्रूडो ने इन सलाहों को नजरअंदाज किया। इसके कारण भारत और कनाडा के रिश्ते न केवल राजनीतिक बल्कि कूटनीतिक और सामाजिक स्तर पर भी प्रभावित हुए। कनाडा में भारतीय समुदाय के बीच ट्रूडो के प्रति नकारात्मक भावना का निर्माण हुआ, और कनाडा में भारतीयों की संख्या में गिरावट आई।

ट्रूडो के इस्तीफे का असर भारत-कनाडा संबंधों पर

अब जब जस्टिन ट्रूडो प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे चुके हैं, सवाल उठता है कि क्या इससे भारत और कनाडा के रिश्तों में सुधार होगा? यह कहना कठिन है कि क्या ट्रूडो के इस्तीफे के बाद रिश्तों में तुरंत सुधार होगा, लेकिन कनाडा की राजनीति में बदलाव की उम्मीद जरूर जगी है।अगर कंजरवेटिव पार्टी सत्ता में आती है, तो यह दोनों देशों के रिश्तों में सकारात्मक बदलाव ला सकती है। कंजरवेटिव पार्टी के नेता भारत के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण रखते हैं, और उनके प्रधानमंत्री बनने के बाद भारत और कनाडा के बीच व्यापार, कूटनीति और सुरक्षा संबंधों में एक नई दिशा मिल सकती है। कंजरवेटिव पार्टी की सरकार भारत के साथ सहयोग को बढ़ावा दे सकती है, जो कनाडा के हित में भी होगा।

क्या कनाडा की वीजा नीति में बदलाव होगा?

ट्रूडो के शासन के दौरान कनाडा की वीजा नीति सख्त हो गई थी, खासकर भारतीय नागरिकों के लिए। ट्रूडो के नेतृत्व में कनाडा ने भारतीय छात्रों और पेशेवरों के लिए वीजा पॉलिसी को कड़ा किया था, जिससे कनाडा में भारतीय छात्रों की संख्या में गिरावट आई थी।लेकिन अगर कंजरवेटिव पार्टी सत्ता में आती है, तो वीजा नीति में बदलाव की संभावना बन सकती है। भारतीय छात्रों के लिए कनाडा में शिक्षा के अवसर बढ़ सकते हैं, और पेशेवरों के लिए रोजगार के रास्ते भी खुल सकते हैं। इससे भारतीय समुदाय के लिए कनाडा एक और आकर्षक गंतव्य बन सकता है।

भारतीय समुदाय के लिए नई संभावनाएं

कनाडा में भारतीय समुदाय का बहुत बड़ा योगदान है, और यह कनाडा की सामाजिक और सांस्कृतिक पहचान का अहम हिस्सा है। कनाडा में करीब 10 लाख से ज्यादा भारतीय मूल के लोग रहते हैं, और यह संख्या लगातार बढ़ रही थी। ट्रूडो के शासन में इस समुदाय को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा था, लेकिन उनके इस्तीफे के बाद कनाडा में भारतीयों के लिए नए अवसर उत्पन्न हो सकते हैं।यह बदलाव भारतीयों के लिए रोजगार, शिक्षा, और अन्य क्षेत्रों में नई संभावनाएं खोल सकता है। साथ ही, कनाडा सरकार द्वारा भारतीयों के लिए नए कदम उठाए जा सकते हैं, जो उनके जीवन स्तर को बेहतर बना सकते हैं।

कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो का इस्तीफा सिर्फ उनके राजनीतिक जीवन का अंत नहीं है, बल्कि यह भारत और कनाडा के रिश्तों में एक नई दिशा के संकेत भी हो सकता है। ट्रूडो के शासन में जो विवाद और खटास आई थी, उसके बाद कनाडा में सत्ता परिवर्तन से दोनों देशों के बीच सहयोग और मित्रता बढ़ने की उम्मीदें जताई जा रही हैं।कंजरवेटिव पार्टी के सत्ता में आने से, भारत और कनाडा के रिश्ते में सुधार की संभावना है, और इससे दोनों देशों को आर्थिक, कूटनीतिक और सामाजिक लाभ हो सकता है। ट्रूडो के इस्तीफे के बाद यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि कनाडा का नया नेतृत्व भारतीय समुदाय और भारत के साथ किस प्रकार के रिश्ते स्थापित करता है, जो न केवल द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करेगा, बल्कि वैश्विक दृष्टिकोण से भी दोनों देशों के हितों को संतुलित करेगा।

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