बच्चों में धूम्रपान की बढ़ती प्रवृत्ति AIIMS डॉक्टर ने स्वास्थ्य जोखिमों और रोकथाम के उपायों पर चर्चा की


कम उम्र में ही बीड़ी-सिगरेट क्यों पीने लगते हैं बच्चे? AIIMS  के डॉक्टर ने बताई चौंकाने वाली वजह

बच्चों में धूम्रपान की बढ़ती प्रवृत्ति AIIMS डॉक्टर ने स्वास्थ्य जोखिमों और रोकथाम के उपायों पर चर्चा की

हाल के वर्षों में, 13 से 15 साल के बच्चों में सिगरेट या बीड़ी पीने की प्रवृत्ति में आश्चर्यजनक वृद्धि देखी गई है। जब हम ऐसे बच्चों को देखते हैं, तो अक्सर मन में विचार आता है कि यह किस दिशा में जा रहा है। यह मान लेना आसान है कि इसके पीछे गलत संगत या बदलता सामाजिक परिवेश है, लेकिन यह हमेशा सच नहीं होता। कई मामलों में, कम उम्र में स्मोकिंग की लत मनोवैज्ञानिक कारणों से भी विकसित हो सकती है। इसमें एक प्रमुख कारण है अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर (एडीएचडी)।

एडीएचडी क्या है?

एडीएचडी एक न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है, जो जन्म से ही हो सकता है। इससे प्रभावित बच्चों को ध्यान केंद्रित करने, शांत रहने और अपने व्यवहार को नियंत्रित करने में समस्याएं होती हैं। ऐसे बच्चे सामान्य बच्चों की तुलना में अधिक सक्रिय होते हैं और किसी एक काम में ध्यान नहीं लगा पाते हैं। यदि इस समस्या का समय पर समाधान न किया जाए, तो यह जीवनभर बनी रह सकती है और बच्चे को कई प्रकार की सामाजिक और शैक्षणिक समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।

एडीएचडी और स्मोकिंग का संबंध

दिल्ली के एम्स में नेशनल ड्रग डिपेंडेंस ट्रीटमेंट सेंटर के प्रोफेसर डॉ. प्रभु दयाल बताते हैं कि एडीएचडी से पीड़ित बच्चों में निकोटीन की तरफ आकर्षित होने की संभावना सामान्य बच्चों की तुलना में अधिक होती है। रिसर्च के अनुसार, एडीएचडी से पीड़ित 1 से 2 फीसदी युवा धूम्रपान करने लगते हैं।सिगरेट में मौजूद निकोटिन, डोपामाइन के स्तर को बढ़ाता है, जो एक फील-गुड हार्मोन है। जब बच्चे धूम्रपान करते हैं, तो उनके शरीर में डोपामाइन का स्तर बढ़ता है, जिससे उन्हें खुशी का अनुभव होता है। इस खुशी की अनुभूति के कारण वे बार-बार स्मोकिंग की ओर आकर्षित होते हैं।

एडीएचडी से प्रभावित बच्चों में स्मोकिंग के कारण

  1. डोपामाइन का स्तर: एडीएचडी से पीड़ित बच्चों में अक्सर डोपामाइन का स्तर कम होता है। स्मोकिंग से डोपामाइन का स्तर बढ़ता है, जिससे बच्चे को अच्छा महसूस होता है और वह ध्यान केंद्रित करने में सक्षम होते हैं।

  2. सेल्फ मेडिकेशन: एडीएचडी वाले बच्चे अक्सर बेचैन होते हैं और उन्हें लगता है कि स्मोकिंग उन्हें राहत देगी। इस तरह, वे इसे सेल्फ मेडिकेशन के रूप में अपनाते हैं, जिससे वे खुद को शांत और अधिक केंद्रित महसूस करते हैं।

  3. मानसिक तनाव: एडीएचडी से पीड़ित बच्चों में मानसिक तनाव और चिंता का स्तर बढ़ जाता है। इस तनाव को कम करने के लिए वे स्मोकिंग का सहारा लेते हैं।

स्मोकिंग के स्वास्थ्य पर प्रभाव

धूम्रपान करने वाले बच्चों में हृदय रोग, स्ट्रोक, और फेफड़ों के कैंसर जैसी गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का जोखिम अधिक होता है। अध्ययन दर्शाते हैं कि एडीएचडी वाले युवा जो धूम्रपान करते हैं, वे शराब और अन्य नशों की तरफ भी बढ़ सकते हैं। यह नशा एक चक्र में बदल सकता है, जहां स्मोकिंग से शुरुआत होती है और फिर अन्य नशों की ओर रुख किया जाता है।

स्मोकिंग छोड़ने में कठिनाई

जब एडीएचडी वाले लोग स्मोकिंग छोड़ने की कोशिश करते हैं, तो उन्हें विभिन्न शारीरिक और मानसिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इसे विड्रॉल सिंड्रोम कहा जाता है, जिसमें चिड़चिड़ापन, चिंता, बेचैनी, और अत्यधिक थकान जैसे लक्षण दिखाई देते हैं। एडीएचडी वाले व्यक्तियों में यह लक्षण सामान्य लोगों की तुलना में अधिक गंभीर होते हैं।

एडीएचडी का बचाव और उपचार

प्रोफेसर डॉ. दयाल की सलाह है कि अगर माता-पिता को लगता है कि उनका बच्चा सामान्य बच्चों की तुलना में अलग व्यवहार कर रहा है, तो उन्हें तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। सही समय पर पहचान और उपचार से एडीएचडी को नियंत्रित किया जा सकता है, जिससे भविष्य में स्मोकिंग और अन्य नशों की आदतों का खतरा कम हो जाता है।

समाज में जागरूकता की आवश्यकता

सिर्फ डॉक्टरों का ही नहीं, बल्कि समाज का भी यह कर्तव्य है कि वह एडीएचडी और इसके प्रभावों के बारे में जागरूकता फैलाए। स्कूलों में शिक्षा के साथ-साथ मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ाना जरूरी है। इससे न केवल बच्चों को सहायता मिलेगी, बल्कि समाज में धूम्रपान की प्रवृत्ति को भी कम किया जा सकेगा।कम उम्र में स्मोकिंग की बढ़ती प्रवृत्ति केवल गलत संगत का परिणाम नहीं है, बल्कि यह कई मनोवैज्ञानिक कारणों से भी संबंधित हो सकती है। एडीएचडी जैसे डिसऑर्डर के बारे में जागरूकता और समय पर इलाज से इस समस्या को नियंत्रित किया जा सकता है। स्मोकिंग की आदत से न केवल स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न होती हैं, बल्कि यह नशे की अन्य आदतों की ओर भी ले जा सकती है। इसलिए, बच्चों की मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल अत्यंत आवश्यक है।इस प्रकार, एडीएचडी और स्मोकिंग के बीच के संबंध को समझना और इसके उपचार की दिशा में कदम उठाना बेहद महत्वपूर्ण है। यदि हम इस दिशा में सही प्रयास करें, तो हम बच्चों को एक स्वस्थ और नशामुक्त भविष्य की ओर अग्रसर कर सकते हैं।

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