स्टीफन हार्पर का कार्यकाल: भारत-कनाडा रिश्तों में नई शुरुआत, खालिस्तानी मुद्दे के बावजूद दोस्ती और सहयोग का नया अध्याय।
भारत और कनाडा के बीच संबंध एक जटिल और ऐतिहासिक परंपरा का प्रतिनिधित्व करते हैं। हाल के वर्षों में इन रिश्तों की तुलना पाकिस्तान से की जा रही है, और कुछ विश्लेषकों का कहना है कि यह स्थिति दिल्ली-इस्लामाबाद संबंधों से भी बदतर है। इस संदर्भ में यह समझना महत्वपूर्ण है कि क्या यह स्थिति हमेशा से ऐसी थी या यदि समय के साथ कुछ बदलाव हुए हैं।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
भारत और कनाडा के रिश्ते कभी भी बहुत गर्मजोशी भरे नहीं रहे हैं। लेकिन एक समय ऐसा था जब ये संबंध दोस्ताना थे। भारत के परमाणु परीक्षण (1974, 1998), एयर इंडिया की फ्लाइट में हुए बम धमाके (1985) और हाल में हरदीप सिंह निज्जर की हत्या (2023) जैसे घटनाक्रमों ने इन रिश्तों को प्रभावित किया है। हालांकि, दोनों देशों के बीच एक ऐसा भी दशक था जब निकटता बढ़ी थी।
स्टीफन हार्पर का कार्यकाल
जस्टिन ट्रूडो से पहले, कनाडा के प्रधानमंत्री स्टीफन हार्पर (2006-2015) के कार्यकाल में भारत-कनाडा संबंधों में एक नया मोड़ आया। हार्पर ने भारत के साथ आर्थिक और राजनीतिक संबंधों को मजबूत करने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए। उनके समय में 19 मंत्री स्तर के दौरे हुए, और खुद हार्पर ने 2009 और 2012 में भारत का दौरा किया।
आर्थिक साझेदारी की दिशा में कदम
2000 के दशक में, कनाडा ने भारत के साथ आर्थिक साझेदारी को फिर से स्थापित करने का प्रयास किया। हार्पर के प्रधानमंत्री बनने के बाद, दोनों देशों के बीच व्यापार और निवेश में वृद्धि हुई। नवंबर 2009 में, हार्पर की भारत यात्रा के दौरान, दोनों देशों ने व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते (CEPA) की संभावना पर चर्चा की। यह कदम दोनों देशों के बीच आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देने का प्रयास था।
एयर इंडिया का मामला
1985 में एयर इंडिया की फ्लाइट 182 में हुए बम धमाके ने भारत-कनाडा के रिश्तों में गहरा खटास पैदा किया। इस घटना में 329 लोग मारे गए, जिनमें अधिकांश कनाडाई नागरिक थे। लेकिन 23 जून, 2010 को हार्पर ने इस घटना के 25 साल बाद टोरंटो में एक स्मारक पर जाकर माफी मांगी। यह कदम भारतीय समुदाय के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर था और इससे दोनों देशों के बीच रिश्तों में सुधार की संभावना बढ़ी।
मनमोहन सिंह का दौरा
स्टीफन हार्पर के कार्यकाल के दौरान, भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 2010 में जी-20 शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए कनाडा का दौरा किया। यह किसी भारतीय प्रधानमंत्री का 1973 के बाद पहला दौरा था। इस यात्रा के दौरान, भारत और कनाडा के बीच परमाणु सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर हुए, जो दोनों देशों के रिश्तों में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ।
नरेंद्र मोदी का योगदान
2015 में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कनाडा का दौरा किया, जहां उन्होंने कई समझौतों पर हस्ताक्षर किए, जिसमें अंतरिक्ष, रेलवे और नागरिक उड्डयन जैसे क्षेत्रों में सहयोग शामिल था। इस यात्रा के दौरान, कनाडा ने भारत को 3,000 टन यूरेनियम सप्लाई करने का वादा किया। यह कदम भारत और कनाडा के बीच के रिश्तों को और मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था।
वर्तमान स्थिति
हालांकि, जस्टिन ट्रूडो के कार्यकाल में कनाडा में खालिस्तानी मुद्दे को उठाने के कारण भारत-कनाडा के रिश्तों में एक बार फिर खटास आ गई है। हाल के विवादों ने दोनों देशों के बीच संवाद को और जटिल बना दिया है। पहले की गर्मजोशी और दोस्ताना संबंध अब तल्ख हो गए हैं।
खालिस्तानी मुद्दा
ट्रूडो की सरकार ने खालिस्तानी आंदोलन का समर्थन किया है, जिसने भारत में चिंता और असहमति पैदा की है। भारत ने कनाडा से इस मुद्दे पर स्पष्टता मांगी है, लेकिन दोनों देशों के बीच की बर्फ अभी तक नहीं पिघली है। इस विषय पर विचार-विमर्श और संवाद की आवश्यकता है ताकि भविष्य में संबंधों को सुधारने का मार्ग प्रशस्त हो सके।
भारत-कनाडा रिश्तों का भविष्य
आपसी संवाद और सहयोग
भारत और कनाडा के रिश्तों को सुधारने के लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं:
संवाद का विस्तार: दोनों देशों के नेताओं को आपसी संवाद को बढ़ावा देना चाहिए। नियमित उच्च स्तरीय वार्ताएँ और मंत्री स्तर के दौरे संबंधों को सुधारने में मदद करेंगे।
संयुक्त कार्य समूह: एक संयुक्त कार्य समूह का गठन किया जा सकता है, जिसमें दोनों देशों के मुद्दों पर चर्चा की जा सके। यह समूह द्विपक्षीय मुद्दों का समाधान खोजने में सहायक हो सकता है।
संस्कृतिक आदान-प्रदान: सांस्कृतिक आदान-प्रदान कार्यक्रमों को बढ़ावा देकर दोनों देशों के नागरिकों के बीच समझ बढ़ाई जा सकती है। इससे लोगों के बीच संबंध और मजबूत होंगे।
आर्थिक सहयोग: व्यापार और निवेश के नए क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ावा देना आवश्यक है। विशेष रूप से, सूचना प्रौद्योगिकी, विज्ञान और अनुसंधान में सहयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
शैक्षिक और तकनीकी सहयोग
भारत और कनाडा के बीच शिक्षा और तकनीकी सहयोग को बढ़ावा देने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं:
छात्रों का आदान-प्रदान: कनाडा और भारत के विश्वविद्यालयों के बीच छात्र आदान-प्रदान कार्यक्रमों को स्थापित करना चाहिए। इससे छात्रों को एक-दूसरे की संस्कृति और शिक्षा प्रणाली को समझने का अवसर मिलेगा।
संयुक्त अनुसंधान परियोजनाएं: दोनों देशों के शिक्षण संस्थानों को संयुक्त अनुसंधान परियोजनाओं में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। यह न केवल शैक्षणिक स्तर पर सहयोग को बढ़ाएगा, बल्कि विज्ञान और तकनीकी विकास में भी मदद करेगा।
व्यावसायिक प्रशिक्षण: कनाडा में भारतीय छात्रों को व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रमों में भाग लेने का अवसर प्रदान किया जाना चाहिए। इससे उन्हें वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धा करने के लिए आवश्यक कौशल प्राप्त होगा।
भारत और कनाडा के रिश्तों में कई उतार-चढ़ाव आए हैं। एक समय था जब दोनों देशों के बीच संबंधों में गर्मजोशी थी, लेकिन वर्तमान में खालिस्तानी मुद्दे और अन्य विवादों ने इसे प्रभावित किया है। दोनों देशों के नेताओं को चाहिए कि वे आपसी संबंधों को सुधारने के लिए संवाद को आगे बढ़ाएं और उन मुद्दों पर ध्यान दें जो दोनों देशों के लिए महत्वपूर्ण हैं।यदि दोनों देशों के नेता और नागरिक मिलकर प्रयास करें, तो वे न केवल अपने संबंधों को सुधार सकते हैं, बल्कि एक मजबूत और स्थायी साझेदारी की दिशा में भी अग्रसर हो सकते हैं। इस प्रकार, भारत और कनाडा के रिश्तों को बेहतर बनाने के लिए लगातार प्रयास किए जाने चाहिए।भारत और कनाडा के संबंधों की एक मजबूत नींव रखने के लिए दोनों देशों को सामूहिक हितों को ध्यान में रखते हुए कार्य करना होगा। यह न केवल द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करेगा, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी एक सकारात्मक संदेश भेजेगा।इस प्रकार, भारत-कनाडा के संबंधों को सुधारने के लिए एक संयुक्त प्रयास की आवश्यकता है, जो दीर्घकालिक सहयोग की ओर ले जा सके। केवल इस तरह ही दोनों देश एक दूसरे के साथ अपने संबंधों को और मजबूत बना सकते हैं।
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