अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव: खर्च और चुनावी राजनीति का विस्तृत विश्लेषण

Explainer: अमेरिका, ब्रिटेन के चुनावों में भारत के मुकाबले कितना खर्च होता है?

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव: खर्च और चुनावी राजनीति का विस्तृत विश्लेषण

अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव अपने अंतिम चरण में है, जिसमें डोनाल्ड ट्रंप और कमला हैरिस प्रमुख उम्मीदवार हैं। वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में, चुनावी अनुमान भले ही भिन्न हों, लेकिन यह स्पष्ट है कि 2024 का चुनाव अमेरिका के इतिहास में सबसे महंगा साबित होने जा रहा है। आगामी चुनाव में खर्च लगभग 16 बिलियन डॉलर (लगभग 1 लाख 36 हजार करोड़ रुपये) होने का अनुमान है, जो कि लोकतंत्र की ताकत और चुनावी प्रक्रिया की जटिलता को दर्शाता है।

चुनावी खर्च का महत्व

चुनावी खर्च एक महत्वपूर्ण तत्व है जो न केवल राजनीतिक अभियानों को संचालित करता है, बल्कि यह उम्मीदवारों की जीत और हार को भी प्रभावित कर सकता है। अधिक खर्च करने वाले उम्मीदवारों को मीडिया कवरेज, प्रचार सामग्री और जनता तक पहुँच बनाने में अधिक सुविधा होती है। अमेरिका में, एक उम्मीदवार के लिए यह आवश्यक है कि वह प्रभावी रूप से धन जुटाए, ताकि वह अपने प्रतिद्वंद्वियों के मुकाबले में टिक सके।

भारतीय चुनावों की तुलना में खर्च का अंतर

हाल के लोकसभा चुनावों में, भारत में सभी राजनीतिक दलों ने लगभग 1 लाख करोड़ रुपये खर्च किए। यह आंकड़ा भारतीय चुनावी इतिहास में सबसे महंगा चुनाव माना गया। भारतीय चुनावों में खर्च की सीमाएँ निर्धारित की गई हैं। उदाहरण के लिए, लोकसभा चुनाव में छोटे राज्यों के लिए कैंडिडेट्स के खर्च की सीमा 75 लाख रुपये है, जबकि बड़े राज्यों के लिए यह सीमा 95 लाख रुपये है। विधानसभा चुनावों में, बड़े राज्यों के प्रत्याशियों के लिए खर्च की सीमा 40 लाख रुपये और छोटे राज्यों के लिए 28 लाख रुपये है।

इसकी तुलना में, ब्रिटेन में एक राजनीतिक दल एक सीट पर अधिकतम 60 लाख रुपये खर्च कर सकता है। यहां, चुनावी खर्च की कुल सीमा 35 मिलियन पाउंड (लगभग 380 करोड़ रुपये) है। ब्रिटेन में कैंडिडेट्स को चुनाव प्रचार के लिए 5 महीने में अधिकतम 53 लाख रुपये खर्च करने की अनुमति है। यदि चुनाव जल्दी घोषित किया जाता है, तो खर्च की सीमा 22 लाख रुपये तक सीमित हो जाती है।

अमेरिका में चुनावी खर्च की अनियंत्रित स्थिति

अमेरिका में चुनावी खर्च पर कोई स्पष्ट सीमा नहीं है। अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने कई फैसलों में यह स्पष्ट किया है कि राजनीतिक पार्टियों के खर्च पर कोई पाबंदी नहीं है। यह व्यवस्था उस समय से चली आ रही है जब अमेरिका में डोनर डेमोक्रेसी की अवधारणा को मान्यता दी गई। वर्तमान में, यह देखा जा रहा है कि लगभग 5.5 बिलियन डॉलर खर्च होने की उम्मीद है, जो कि डेमोक्रेट और रिपब्लिकन पार्टियों द्वारा जुटाए गए फंड्स के माध्यम से प्राप्त होगा। अगर इस खर्च को कांग्रेस चुनाव के खर्च से जोड़ा जाए, तो यह आंकड़ा 16 बिलियन डॉलर को पार कर सकता है।

चुनावी धन का स्रोत

अमेरिकी चुनावों में धन का स्रोत मुख्य रूप से व्यक्तिगत दान, कॉरपोरेट दान, और राजनीतिक क्रियाकलापों से जुड़ी सुपर पीएसी (पॉलिटिकल एक्सट्राऑर्डिनरी कमेटी) से आता है। इन सुपर पीएसीs को किसी भी राजनीतिक दल को समर्थन देने के लिए असीमित धन जुटाने की अनुमति होती है। यह प्रणाली चुनावी प्रक्रिया को भारी मात्रा में धन की आवश्यकता बनाती है, जिससे कुछ उम्मीदवार अधिक प्रतिस्पर्धी और प्रभावशाली बन जाते हैं।

चुनावी खर्च और लोकतंत्र

चुनावी खर्च की इस उच्च मात्रा पर कई आलोचनाएं भी की जाती हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि जब चुनावी खर्च इतना अधिक होता है, तो यह लोकतंत्र की बुनियादी अवधारणा को प्रभावित कर सकता है। कुछ लोग इसे "धन आधारित लोकतंत्र" मानते हैं, जहां धन की शक्ति अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है बनिस्बत योग्यताओं और विचारों के। इस स्थिति में, आम जनता की आवाजें कमजोर पड़ सकती हैं, और चुनावी प्रक्रिया में असमानता बढ़ सकती है।

अमेरिका, भारत और ब्रिटेन के चुनावी खर्च के स्तर और नियमों में स्पष्ट अंतर हैं। जबकि भारतीय और ब्रिटिश चुनावों में खर्च की सीमाएं निर्धारित हैं, अमेरिकी चुनावों में खर्च की कोई पाबंदी नहीं है। यह स्थिति राजनीतिक प्रभावों और संस्थागत डोनेशन के कारण अत्यधिक महंगी बन गई है, जो चुनावी प्रक्रिया की स्वच्छता और पारदर्शिता पर सवाल उठाती है।आगे के महीनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि ये चुनावी खर्च किस दिशा में जाता है और इसके परिणाम क्या होंगे। क्या अमेरिका के चुनावी खर्च की इस स्थिति को नियंत्रित करने के लिए कोई उपाय निकाला जाएगा? क्या आम जनता की आवाजें चुनावी प्रक्रिया में फिर से सुनाई देंगी? इन सभी सवालों के जवाब 2024 के चुनावी परिणामों में मिलेंगे, और यह देखना होगा कि अमेरिका का लोकतंत्र इस चुनौती का सामना कैसे करता है।

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