अमेरिकी झुकाव पाकिस्तान की ओर, अधर में लटका भारत के साथ व्यापार समझौता
भारत और अमेरिका के बीच लंबे समय से प्रस्तावित व्यापार समझौता अब गंभीर संकट की ओर बढ़ता दिख रहा है। हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर को व्हाइट हाउस में लंच पर आमंत्रित करना और उनके प्रति खुले तौर पर प्रेम जताना इस दिशा में बड़ा संकेत माना जा रहा है। ट्रंप ने इस मुलाकात के दौरान यह तक कह दिया कि वह पाकिस्तान से बहुत प्यार करते हैं। इतना ही नहीं, उन्होंने यह दावा भी कर दिया कि भारत और पाकिस्तान के बीच हुए 'ऑपरेशन सिंदूर' को उन्होंने खुद रुकवाया था। इस बयान ने भारत के साथ अमेरिका के रिश्तों में एक नई उलझन खड़ी कर दी है। भारत सरकार ने ट्रंप के इस बयान को पूरी तरह खारिज करते हुए स्पष्ट किया है कि भारत और पाकिस्तान के बीच किसी भी संघर्ष को रोकने में किसी तीसरे देश की कोई भूमिका नहीं थी। भारत ने हमेशा अपने सामरिक मामलों में आत्मनिर्भरता का परिचय दिया है और किसी प्रकार की मध्यस्थता की आवश्यकता नहीं समझी है। विदेश मंत्रालय की ओर से यह भी कहा गया कि भारत की संप्रभुता और राष्ट्रीय हित सर्वोपरि हैं और ऐसे किसी भी दावे का कोई आधार नहीं है।
इस पूरे घटनाक्रम के बीच अमेरिका और भारत के बीच प्रस्तावित व्यापार समझौता अधर में लटका हुआ नजर आता है। अमेरिका की ओर से भारत पर दबाव डाला जा रहा है कि वह अमेरिकी कृषि उत्पादों जैसे मक्का, सोयाबीन और आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) खाद्य पदार्थों पर टैरिफ कम करे और उनके आयात की अनुमति दे। लेकिन भारत ने इस मांग को पूरी तरह नकार दिया है। भारत का मानना है कि इन मांगों को स्वीकार करने से देश के करोड़ों किसानों की आजीविका और देश की खाद्य सुरक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।भारत के किसान पहले से ही जलवायु परिवर्तन, बढ़ती लागत और बुनियादी ढांचे की कमी जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं। ऐसे में यदि अमेरिकी जीएम फसलों को भारत में अनुमति दी जाती है, तो यह स्थानीय कृषि व्यवस्था के लिए घातक साबित हो सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि जीएम खाद्य पदार्थों का अनियंत्रित आयात न केवल जैव विविधता को नुकसान पहुंचा सकता है, बल्कि ऐसे देशों के साथ भारत के व्यापार को भी प्रभावित कर सकता है जो जीएम उत्पादों को स्वीकार नहीं करते।
भारत सरकार का रुख इस पूरे मामले में बेहद स्पष्ट है। वह 140 करोड़ उपभोक्ताओं और देश के लाखों किसानों के हितों की रक्षा को प्राथमिकता दे रही है। अमेरिका द्वारा प्रस्तावित 10 प्रतिशत बेस टैरिफ सभी देशों पर लागू होगा, जो भारत को विशेष लाभ नहीं देगा। भारत चाहता है कि उसके कपड़ा, चमड़ा, फार्मास्यूटिकल्स, इंजीनियरिंग और ऑटो-पार्ट्स जैसे क्षेत्रों को अमेरिका शून्य टैरिफ की छूट दे। लेकिन ट्रंप प्रशासन ने साफ कर दिया है कि वह अभी ऐसी कोई छूट नहीं देने वाला।इसके अतिरिक्त, भारत ने अमेरिका से यह भी मांग की है कि भविष्य में किसी भी टैरिफ परिवर्तन से उसे छूट दी जाए ताकि उसके निर्यातकों की स्थिरता बनी रहे। भारत का कहना है कि वह किसी भी ऐसे समझौते का हिस्सा नहीं बन सकता जो असंतुलित हो और जिसमें केवल एक पक्ष को लाभ मिले। भारत चाहता है कि यदि कोई समझौता हो, तो वह दोनों पक्षों के हितों को ध्यान में रखते हुए संतुलित रूप में हो।
9 जुलाई को अमेरिका द्वारा भारत पर अतिरिक्त टैरिफ लगाने की समयसीमा समाप्त हो रही है। यदि तब तक कोई समझौता नहीं होता, तो भारत को 26 प्रतिशत अतिरिक्त टैरिफ का सामना करना पड़ सकता है। इसका सीधा असर भारत के मछली, मांस और समुद्री उत्पादों के निर्यात पर पड़ेगा, जो अमेरिका के बड़े बाजारों में पहुंचते हैं। लेकिन भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि वह ट्रंप प्रशासन की एकतरफा मांगों के आगे झुकेगा नहीं, चाहे इसके लिए उसे कठिन रास्ता ही क्यों न अपनाना पड़े।भारत अब केवल अमेरिका पर निर्भर नहीं रहना चाहता। वह यूरोपीय संघ, आसियान और अफ्रीकी देशों के साथ भी व्यापारिक वार्ताएं तेज़ कर रहा है। क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) जैसे समझौतों से बाहर रहकर भारत ने यह संकेत दिया है कि वह केवल दिखावटी डील के लिए तैयार नहीं है, बल्कि उसे ऐसे समझौते चाहिए जो दीर्घकालिक रूप से देश के हितों को सुरक्षित रखें।
ट्रंप का पाकिस्तान प्रेम भारत में चर्चा और चिंता का विषय बना हुआ है। पाकिस्तान, जिसकी वैश्विक मंच पर छवि एक आतंकी पनाहगाह के रूप में बनी हुई है, उसके सेना प्रमुख को व्हाइट हाउस में आमंत्रित करना और उसके साथ व्यापार डील की बातें करना भारत के लिए राजनीतिक और रणनीतिक दृष्टि से असहज करने वाला है। भारत ने कई बार दुनिया को बताया है कि पाकिस्तान अपनी धरती से आतंकवाद को बढ़ावा देता है, ऐसे में अमेरिका का उससे निकटता बढ़ाना भारत के लिए चिंताजनक संकेत है।अमेरिका यदि यह सोचता है कि वह पाकिस्तान और भारत दोनों के साथ एक समान व्यापारिक रिश्ता बना सकता है, तो यह उसकी बड़ी भूल हो सकती है। भारत एक उभरती हुई वैश्विक शक्ति है और वह अब अपने हितों को ताक पर रखकर किसी भी समझौते का हिस्सा नहीं बनेगा। उसने यह स्पष्ट कर दिया है कि व्यापार हो या कूटनीति, वह अब दबाव में आकर फैसले नहीं करेगा।
भारत की यह दृढ़ता उसकी आर्थिक और राजनीतिक परिपक्वता को दर्शाती है। आज का भारत वह नहीं है जो अंतरराष्ट्रीय दबाव में अपने हितों से समझौता कर ले। आज का भारत आत्मनिर्भरता, आत्मविश्वास और दृढ़ इच्छाशक्ति से संचालित होता है। वह अब ऐसे समझौतों की तलाश में है, जो उसकी जनता, खासकर किसानों, श्रमिकों और छोटे व्यापारियों के हितों की रक्षा करें।ट्रंप प्रशासन को यह समझना होगा कि भारत कोई ऐसा देश नहीं है जिसे लालच या दबाव से झुकाया जा सकता है। यदि अमेरिका वास्तव में भारत के साथ दीर्घकालिक और स्थायी व्यापारिक संबंध बनाना चाहता है, तो उसे भारत की संवेदनशीलताओं को समझना और उनका सम्मान करना होगा। केवल अपने कृषि उत्पादों को भारत में बेचने की नीति अब नहीं चलेगी। व्यापार में संतुलन, परस्पर सम्मान और दीर्घकालिक दृष्टिकोण जरूरी है।
यदि ट्रंप प्रशासन ने समय रहते अपनी नीतियों में बदलाव नहीं किया, तो यह तय है कि भारत अपने लिए अन्य मार्ग तलाश लेगा और उन देशों के साथ गठजोड़ करेगा जो उसके हितों का सम्मान करते हैं। यह बदलते भारत की नई पहचान है जो अब आत्मनिर्भर भारत बनने की दिशा में कदम बढ़ा चुका है और जो अब केवल बराबरी की शर्तों पर ही रिश्ते बनाता है।इस पूरे घटनाक्रम ने भारत की विदेश नीति और उसके आर्थिक दृष्टिकोण को एक नई दिशा दी है। भारत ने यह दिखा दिया है कि वह अब किसी भी कीमत पर अपनी संप्रभुता और हितों से समझौता नहीं करेगा। अमेरिका को यदि भारत के साथ व्यापारिक रिश्ते बनाए रखने हैं, तो उसे अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करना ही होगा। वरना वह दिन दूर नहीं जब भारत अपनी शर्तों पर ही दुनिया के साथ व्यापार करेगा और अमेरिका पीछे छूट जाएगा।
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