आजम खान को इलाहाबाद हाईकोर्ट से मिली जमानत, 2027 चुनाव से पहले राजनीतिक चर्चाओं का केंद्र



आजम खान को इलाहाबाद हाईकोर्ट से मिली जमानत, 2027 चुनाव से पहले राजनीतिक चर्चाओं का केंद्र

समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता और उत्तर प्रदेश के पूर्व कैबिनेट मंत्री मोहम्मद आजम खान को इलाहाबाद हाईकोर्ट से बड़ी राहत मिली है। रामपुर के चर्चित डूंगरपुर मामले में कोर्ट ने उनकी जमानत याचिका स्वीकार कर ली है। इस मामले में सह-आरोपी ठेकेदार बरकत अली को भी जमानत मिली है। हालांकि, आजम खान के लिए जेल से बाहर आने का रास्ता अभी पूरी तरह साफ नहीं हुआ है, क्योंकि उनके खिलाफ अन्य आपराधिक मामलों में न्यायिक प्रक्रिया अब भी जारी है। इस फैसले ने न केवल आजम खान के समर्थकों में उम्मीद की किरण जगाई है, बल्कि उत्तर प्रदेश की सियासत में भी एक नई चर्चा को जन्म दिया है।

यह मामला रामपुर के गंज थाने में अगस्त 2019 में दर्ज हुआ था, जब अबरार नाम के एक व्यक्ति ने आजम खान, रिटायर्ड सीओ आले हसन खान और ठेकेदार बरकत अली के खिलाफ गंभीर आरोप लगाए। अबरार ने अपनी शिकायत में कहा था कि दिसंबर 2016 में इन तीनों ने उनके साथ मारपीट की, उनके घर में तोड़फोड़ की और जान से मारने की धमकी दी। इतना ही नहीं, शिकायतकर्ता ने यह भी आरोप लगाया कि उनके मकान को जेसीबी से ढहा दिया गया। इस मामले ने उस समय खूब सुर्खियां बटोरी थीं, क्योंकि डूंगरपुर बस्ती के निवासियों ने कॉलोनी को जबरन खाली कराने के नाम पर कुल 12 मुकदमे दर्ज कराए थे। इनमें लूट, चोरी, मारपीट और धमकी जैसी संगीन धाराएं शामिल थीं।

रामपुर की एमपी-एमएलए विशेष अदालत ने इस मामले में 30 मई 2024 को अपना फैसला सुनाया। कोर्ट ने आजम खान को 10 साल की सजा और बरकत अली को 7 साल की सजा सुनाई। इस फैसले के खिलाफ आजम खान ने इलाहाबाद हाईकोर्ट का रुख किया। उनकी ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता इमरान उल्लाह और मोहम्मद खालिद ने पैरवी की। कोर्ट में दलील दी गई कि शिकायत घटना के तीन साल बाद दर्ज की गई और आजम खान के घटनास्थल पर मौजूद होने का कोई ठोस सबूत नहीं है। इसके अलावा, उनकी उम्र और स्वास्थ्य का हवाला देते हुए जमानत की मांग की गई। दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद 12 अगस्त 2025 को न्यायमूर्ति समीर जैन की एकल पीठ ने फैसला सुरक्षित रख लिया था। बुधवार, 10 सितंबर 2025 को कोर्ट ने आजम खान और बरकत अली की जमानत अर्जी स्वीकार कर ली, जिससे उनके समर्थकों में खुशी की लहर दौड़ गई।

हालांकि, यह राहत आजम खान के लिए आंशिक ही साबित हुई है। उनके खिलाफ दर्ज अन्य मामलों में जमानत अभी बाकी है, जिसके चलते वे फिलहाल सीतापुर जेल से बाहर नहीं आ सकेंगे। आजम खान पर कुल मिलाकर 100 से ज्यादा मुकदमे दर्ज हैं, जिनमें से ज्यादातर 2017 में समाजवादी पार्टी की सरकार जाने के बाद दर्ज किए गए। इनमें से कुछ मामलों में उन्हें राहत मिल चुकी है, लेकिन कई मामले अभी भी कोर्ट में लंबित हैं। डूंगरपुर मामले में जमानत मिलना उनके लिए एक बड़ी जीत मानी जा रही है, क्योंकि यह मामला रामपुर में उनके खिलाफ दर्ज सबसे चर्चित मामलों में से एक है।

डूंगरपुर प्रकरण की बात करें तो यह मामला उस समय का है, जब आजम खान उत्तर प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री थे। आरोप है कि 2016 में डूंगरपुर बस्ती के मकानों को जबरन खाली कराने के लिए जेसीबी से तोड़ा गया था। इसके बाद वहां आसरा कॉलोनी बनाई गई। शिकायतकर्ताओं का कहना था कि इस दौरान उनके साथ मारपीट की गई, उनके घरों में तोड़फोड़ हुई और उन्हें धमकियां दी गईं। इस मामले ने न केवल स्थानीय स्तर पर, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी खूब सुर्खियां बटोरीं। समाजवादी पार्टी के शासनकाल के बाद जब 2017 में योगी आदित्यनाथ की सरकार बनी, तो आजम खान और उनके परिवार के खिलाफ कई मुकदमे दर्ज हुए। इनमें से कुछ मामलों में उन्हें बरी किया जा चुका है, लेकिन डूंगरपुर जैसे कुछ मामले अभी भी उनके लिए चुनौती बने हुए हैं।

इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह फैसला आजम खान के लिए एक नई उम्मीद लेकर आया है। उनके समर्थकों का मानना है कि यह जमानत उनके खिलाफ दर्ज अन्य मामलों में भी राहत का रास्ता खोल सकती है। कोर्ट में उनकी ओर से दी गई दलीलों में यह भी कहा गया कि शिकायतकर्ता के मकान के दावे वाली जगह पर उनका कोई मकान था ही नहीं। इसके अलावा, घटना के समय आजम खान के मौके पर मौजूद होने का कोई प्रत्यक्ष साक्ष्य नहीं है। इन दलीलों ने कोर्ट का ध्यान खींचा और जमानत मंजूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

आजम खान उत्तर प्रदेश की सियासत में एक बड़ा नाम हैं। रामपुर से 10 बार विधायक रह चुके आजम खान ने अपने राजनीतिक करियर में कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। वे समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के करीबी नेताओं में से एक रहे हैं। उनके समर्थक उन्हें रामपुर का मसीहा मानते हैं, तो वहीं उनके विरोधी उन पर कई गंभीर आरोप लगाते रहे हैं। 2019 के एक भड़काऊ भाषण के मामले में उन्हें विधानसभा से अयोग्य घोषित किया गया था। इसके अलावा, उनके बेटे अब्दुल्ला आजम को भी एक मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद विधानसभा की सदस्यता से अयोग्य घोषित किया गया था। इन सभी घटनाओं ने आजम खान के राजनीतिक करियर पर गहरा असर डाला है।

हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं में उत्साह का माहौल है। कई समर्थकों ने सोशल मीडिया पर अपनी खुशी जाहिर की है। उनका कहना है कि आजम खान के खिलाफ ज्यादातर मामले सियासी बदले की भावना से दर्ज किए गए हैं। वहीं, विरोधी पक्ष का कहना है कि कोर्ट का यह फैसला केवल जमानत तक सीमित है और उनकी सजा पर अंतिम निर्णय अभी बाकी है। हाईकोर्ट में उनकी आपराधिक अपील पर सुनवाई जारी है, जिसका फैसला इस मामले की दिशा तय करेगा।

आजम खान की जमानत का यह मामला न केवल कानूनी, बल्कि सियासी दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। उत्तर प्रदेश में 2027 के विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं, और समाजवादी पार्टी इस फैसले को अपने पक्ष में भुनाने की कोशिश कर सकती है। आजम खान के समर्थक मानते हैं कि अगर वे जेल से बाहर आते हैं, तो रामपुर में पार्टी को मजबूती मिलेगी। दूसरी ओर, उनके खिलाफ दर्ज अन्य मामलों का भविष्य अभी अनिश्चित है।

कुल मिलाकर, इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह फैसला आजम खान के लिए एक महत्वपूर्ण पड़ाव है। हालांकि, जेल से उनकी रिहाई का रास्ता अभी पूरी तरह साफ नहीं है, लेकिन इस जमानत ने उनके समर्थकों में एक नई ऊर्जा का संचार किया है। अब सभी की निगाहें हाईकोर्ट में चल रही उनकी आपराधिक अपील के अंतिम फैसले पर टिकी हैं। यह फैसला न केवल आजम खान के भविष्य को तय करेगा, बल्कि उत्तर प्रदेश की सियासत में भी एक नया मोड़ ला सकता है।

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