हजरतबल विवाद: अशोक चिह्न पर हमला कश्मीर की शांति और राष्ट्रीय एकता के खिलाफ साजिश
ग्लोबल हिंदी न्यूज़
श्रीनगर की हजरतबल दरगाह, जो डल झील के किनारे अपनी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्ता के लिए जानी जाती है, हाल ही में एक विवाद का केंद्र बन गई। 3 सितंबर 2025 को जम्मू-कश्मीर वक्फ बोर्ड की अध्यक्ष और बीजेपी नेता डॉ. दरख्शां अंद्राबी ने दरगाह के सौंदर्यीकरण के बाद एक शिलापट्ट का उद्घाटन किया, जिस पर भारत का राष्ट्रीय प्रतीक अशोक चिह्न अंकित था। लेकिन 5 सितंबर को, ईद-ए-मिलाद के अवसर पर जुमे की नमाज के बाद, एक उत्तेजित भीड़ ने इस शिलापट्ट पर पत्थरबाजी कर अशोक चिह्न को क्षतिग्रस्त कर दिया। इस घटना ने न केवल कश्मीर की शांति को चुनौती दी, बल्कि धार्मिक संवेदनशीलता, राष्ट्रीय एकता और क्षेत्रीय राजनीति के बीच एक जटिल तनाव को उजागर किया। हजरतबल दरगाह कश्मीर की सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह पैगंबर मोहम्मद के पवित्र बाल (रौ-ए-मुबारक) के लिए प्रसिद्ध है, जिसे असर-ए-शरीफ या दरगाह शरीफ के नाम से भी जाना जाता है। 1968 में शुरू हुआ और 1979 में पूरा हुआ इस दरगाह का निर्माण मुस्लिम औकाफ ट्रस्ट के तहत शेख मोहम्मद अब्दुल्ला की देखरेख में हुआ था। यह स्थल मुस्लिम समुदाय के लिए एक पवित्र तीर्थस्थल है, जो दुनिया भर से श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है।1963 में पवित्र बाल की चोरी ने भारत और तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) में व्यापक दंगे भड़काए थे, जिसके परिणामस्वरूप लगभग दो लाख हिंदू शरणार्थी भारत आए। इस घटना के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने सीबीआई की विशेष टीम गठित की, जिसने 4 जनवरी 1964 को बाल बरामद किया। इसके बाद से हजरतबल की सुरक्षा केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF) और जम्मू-कश्मीर पुलिस की संयुक्त टीमें संभालती हैं। 1993 में जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (JKLF) के आतंकी हमले ने इस स्थल की सुरक्षा को और सख्त किया। इन ऐतिहासिक घटनाओं ने हजरतबल को एक संवेदनशील स्थान बना दिया है, जहां कोई भी विवाद बड़े पैमाने पर अशांति का कारण बन सकता है।
जम्मू-कश्मीर वक्फ बोर्ड ने केंद्र सरकार की PRASAD योजना के तहत 40 करोड़ रुपये से अधिक की लागत से हजरतबल दरगाह का सौंदर्यीकरण किया। इस परियोजना में कश्मीरी शिल्प को बढ़ावा देने के लिए स्थानीय कारीगरों की विशेषज्ञता का उपयोग किया गया। शुद्ध सोने की नक्काशी, खतमबंद, पेपर माची, पिंजराकारी, सुलेख, और कांच की कला से दरगाह को भव्य रूप दिया गया। कुरान की आयतों से सजे झूमर, पूर्ण एयर कंडीशनिंग, डिजिटल इलेक्ट्रिसिटी सेटअप, और आधुनिक साउंड सिस्टम ने इसे और आकर्षक बनाया।3 सितंबर 2025 को डॉ. दरख्शां अंद्राबी ने इस परियोजना का उद्घाटन किया और एक शिलापट्ट लगाया, जिस पर अशोक चिह्न अंकित था। यह शिलापट्ट केंद्र सरकार की योजना का हिस्सा था, लेकिन 5 सितंबर को जुमे की नमाज के बाद कुछ लोगों ने इसे इस्लामी सिद्धांतों के खिलाफ बताते हुए पत्थरों से हमला कर क्षतिग्रस्त कर दिया। भीड़ का तर्क था कि इस्लाम में मूर्ति पूजा या प्रतीकों की स्थापना निषिद्ध है, और अशोक चिह्न को धार्मिक स्थल पर लगाना उनकी भावनाओं को ठेस पहुंचाता है।पुलिस ने त्वरित कार्रवाई करते हुए सीसीटीवी फुटेज और वीडियो सबूतों के आधार पर 26 से 50 लोगों को हिरासत में लिया। भारतीय दंड संहिता की धारा 300, 352, 191(2), 324(4), 196, और 61(2) के साथ-साथ राष्ट्रीय सम्मान अपमान निवारण अधिनियम, 1971 के तहत मामला दर्ज किया गया। यह अधिनियम राष्ट्रीय प्रतीकों के अपमान को गंभीर अपराध मानता है, जिसके लिए कम से कम छह महीने की सजा हो सकती है। जम्मू-कश्मीर वक्फ बोर्ड की अध्यक्ष दरख्शां अंद्राबी ने इस घटना को "आतंकी हमला" करार देते हुए जन सुरक्षा अधिनियम (PSA) के तहत सख्त कार्रवाई की मांग की। उन्होंने इसे संविधान और राष्ट्रीय सम्मान पर हमला बताया और कहा, "यह मेरे दिल पर दाग है।"
इस घटना ने कश्मीर की राजनीति को गरमा दिया। मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा, "राष्ट्रीय चिह्न सरकारी समारोहों और कार्यालयों के लिए हैं, धार्मिक स्थलों के लिए नहीं। हजरतबल में इसे लगाने की क्या जरूरत थी? यह कश्मीरियों की धार्मिक भावनाओं के साथ छेड़छाड़ है।" पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती ने इसे "ईशनिंदा" करार देते हुए वक्फ बोर्ड को भंग करने की मांग की। उन्होंने कहा, "इस्लाम में मूर्ति पूजा या प्रतीकों की पूजा निषिद्ध है।" नेशनल कॉन्फ्रेंस के विधायक तनवीर सादिक ने इसे इस्लामी एकेश्वरवाद (तौहीद) के खिलाफ बताया।दूसरी ओर, बीजेपी और वक्फ बोर्ड ने इसे राष्ट्रविरोधी कृत्य करार दिया। दरख्शां अंद्राबी ने नेशनल कॉन्फ्रेंस पर इस घटना के लिए उकसाने का आरोप लगाया और कहा, "जिन्हें अशोक चिह्न से दिक्कत है, वे प्रतीक वाले नोट भी न रखें।" बीजेपी नेता कविंद्र गुप्ता और गुरु प्रकाश पासवान ने इसे राष्ट्रीय एकता पर हमला बताया। इस बीच, द रेजिस्टेंस फ्रंट (TRF) ने अंद्राबी को जान से मारने की धमकी दी, जिससे मामला और गंभीर हो गया।
अनुच्छेद 370 के हटने के बाद कश्मीर में शांति और पर्यटन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। ऑपरेशन सिंदूर ने आतंकी गतिविधियों पर लगाम लगाई, और 2024 में कश्मीर ने रिकॉर्ड पर्यटकों का स्वागत किया। लेकिन इस तरह की घटनाएं शांति की इस प्रगति को खतरे में डाल सकती हैं। बीजेपी और वक्फ बोर्ड का दावा है कि यह तोड़फोड़ एक सुनियोजित साजिश थी, जिसका मकसद कश्मीर में अशांति फैलाना और पर्यटन को प्रभावित करना है।1963 की घटना ने दिखाया था कि हजरतबल से जुड़ा कोई भी विवाद व्यापक अशांति का कारण बन सकता है। वर्तमान घटना में उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती के बयानों ने धार्मिक भावनाओं को उभारकर तनाव को और बढ़ाया। उनके बयानों ने भीड़ की कार्रवाई को अप्रत्यक्ष रूप से औचित्य प्रदान किया, जिससे कश्मीर को राष्ट्रीय मुख्यधारा से अलग-थलग करने का खतरा बढ़ गया।इस घटना ने धार्मिक संवेदनशीलता और राष्ट्रीय एकता के बीच टकराव को उजागर किया। इस्लाम में मूर्ति पूजा या प्रतीकों की स्थापना को लेकर सख्त नियम हैं, और स्थानीय नेताओं ने इसे आधार बनाकर वक्फ बोर्ड की आलोचना की। लेकिन सवाल यह है कि जब दरगाह का सौंदर्यीकरण केंद्र सरकार के बैनर तले हुआ, और इसकी सुरक्षा केंद्रीय बलों के जिम्मे है, तो राष्ट्रीय प्रतीक को नकारना कितना उचित है? अशोक चिह्न भारत की संप्रभुता और एकता का प्रतीक है, और इसे क्षतिग्रस्त करना संविधान के अनुच्छेद 51A का उल्लंघन है, जो राष्ट्रीय प्रतीकों का सम्मान करने की अपेक्षा करता है।
हजरतबल दरगाह में अशोक चिह्न को तोड़ने की घटना केवल एक शिलापट्ट की बर्बादी नहीं, बल्कि कश्मीर की नाजुक सामाजिक-राजनीतिक संरचना पर एक गहरा प्रहार है। यह घटना धार्मिक संवेदनशीलता और राष्ट्रीय गौरव के बीच संतुलन की आवश्यकता को रेखांकित करती है। वक्फ बोर्ड को धार्मिक स्थलों पर राष्ट्रीय प्रतीकों के उपयोग में संवेदनशीलता बरतनी चाहिए थी, ताकि अनावश्यक विवाद से बचा जा सके। साथ ही, उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती जैसे नेताओं को अपने बयानों में संयम बरतना चाहिए था, ताकि धार्मिक उन्माद को बढ़ावा न मिले।कश्मीर, जो अनुच्छेद 370 के हटने के बाद शांति और विकास की राह पर है, ऐसी घटनाओं से प्रभावित हो सकता है। जरूरत है संवाद और समझ की, ताकि धार्मिक भावनाओं और राष्ट्रीय सम्मान के बीच संतुलन बनाया जा सके। केंद्र और राज्य सरकारों को मिलकर ऐसी नीतियां बनानी होंगी जो स्थानीय समुदाय की भावनाओं का सम्मान करें और राष्ट्रीय एकता को मजबूत करें। हजरतबल दरगाह जैसे पवित्र स्थल को राजनीति का अखाड़ा बनने से रोकना होगा, ताकि कश्मीर शांति और समृद्धि की ओर बढ़ सके।
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