नेपाल में Gen-Z क्रांति: सोशल मीडिया बैन से भड़का विद्रोह, भारत के लिए खतरे की घंटी


नेपाल में Gen-Z क्रांति: सोशल मीडिया बैन से भड़का विद्रोह, भारत के लिए खतरे की घंटी

अजय कुमार ,वरिष्ठ पत्रकार (उ.प्र)

नेपाल की राजधानी काठमांडू की सड़कों पर 8 सितंबर 2025 को एक ऐसी आग भड़की, जिसने न केवल नेपाल को हिलाकर रख दिया, बल्कि पूरे दक्षिण एशिया के लिए एक चेतावनी बन गई। हजारों Gen-Z युवा, स्कूल-कॉलेज की यूनिफॉर्म में, किताबें और राष्ट्रीय झंडे हाथ में लिए, संसद भवन की ओर बढ़े। उनके नारे गूंज रहे थे “सोशल मीडिया बैन हटाओ, भ्रष्टाचार बंद करो, नौकरी दो, हमें आजादी चाहिए।” यह आंदोलन, जिसे ‘Gen-Z रिवोल्यूशन’ का नाम दिया गया, अब सिर्फ सोशल मीडिया बैन के खिलाफ नहीं, बल्कि बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और सरकार की तानाशाही नीतियों के खिलाफ एक बड़े विद्रोह में बदल चुका है। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, इस हिंसक प्रदर्शन में कम से कम 6 लोगों की मौत हो चुकी है, और 80 से ज्यादा घायल हैं। कुछ स्रोत मृतकों की संख्या 16 तक बता रहे हैं। न्यू बानेश्वर में प्रदर्शनकारियों ने संसद भवन के गेट नंबर 2 को तोड़कर परिसर में प्रवेश किया, जिसके बाद पुलिस ने आंसू गैस, रबर बुलेट्स, पानी की बौछारें और लाइव फायरिंग का सहारा लिया। प्रदर्शनकारियों ने 14 इमारतों और 9 सरकारी वाहनों को आग के हवाले कर दिया। यह आग काठमांडू से पोखरा, विराटनगर, दमक, इटहरी, भरतपुर और बुटवल तक फैल चुकी है। सरकार ने काठमांडू के चार जिलों न्यू बानेश्वर, सिंह दरबार, राष्ट्रपति भवन और प्रधानमंत्री आवास बालुवाटर में कर्फ्यू लागू कर दिया, और नेपाली सेना को तैनात किया गया है। यह आंदोलन कैसे शुरू हुआ, इसके पीछे क्या कारण हैं, और क्या यह भारत जैसे पड़ोसी देश के लिए खतरे की घंटी है? 



सोशल मीडिया बैन: क्रांति की चिंगारी

4 सितंबर 2025 को नेपाल सरकार ने फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब, एक्स (पूर्व ट्विटर), व्हाट्सएप, रेडिट, लिंक्डइन, स्नैपचैट समेत 26 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर प्रतिबंध लगा दिया। सरकार का तर्क था कि ये कंपनियां 2023 की ‘सोशल मीडिया उपयोग नियमन निर्देशिका’ और सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन नहीं कर रही थीं। इस निर्देशिका के तहत, सभी सोशल मीडिया कंपनियों को नेपाल में स्थानीय कार्यालय खोलना, रजिस्ट्रेशन कराना, शिकायत निवारण अधिकारी नियुक्त करना और टैक्स चुकाना अनिवार्य था। 28 अगस्त को सरकार ने सात दिन का अल्टीमेटम दिया, लेकिन मेटा, अल्फाबेट, एक्स और रेडिट जैसी दिग्गज कंपनियों ने इसे नजरअंदाज किया। संचार मंत्री पृथ्वी सुब्बा गुरुंग ने कहा, “हमने पांच बार नोटिस दीं और डिप्लोमेटिक चैनलों से बात की, लेकिन ये कंपनियां नेपाल के संविधान को नहीं मानतीं। राष्ट्रीय संप्रभुता और कानून का सम्मान जरूरी है।” बैन रात 12 बजे लागू हुआ, और नेपाल टेलीकॉम व एनसेल ने तुरंत ब्लॉकिंग शुरू कर दी। इसके परिणामस्वरूप, नेपाल के 3 करोड़ की आबादी में से 90% इंटरनेट यूजर्स प्रभावित हुए। लाखों यूजर्स के मोबाइल पर “यह साइट पहुंच से बाहर है” जैसे मैसेज दिखने लगे।

इस बैन का असर सामाजिक और आर्थिक दोनों स्तरों पर पड़ा। नेपाल में 70 लाख प्रवासी मजदूर, जो व्हाट्सएप और फेसबुक के जरिए अपने परिवारों से जुड़े थे, अचानक कट गए। छोटे कारोबारी, जो इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर मार्केटिंग करते थे, और ऑनलाइन पढ़ाई करने वाले छात्रों की जिंदगी ठप हो गई। एक अनुमान के मुताबिक, सोशल मीडिया आधारित कारोबार से नेपाल में रोजाना 10 लाख डॉलर का व्यापार होता है, जो अब रुक गया। टिकटॉक, वाइबर, निम्बज और पोपो लाइव ने रजिस्ट्रेशन कराया, इसलिए वे चालू रहे, लेकिन बाकी प्लेटफॉर्म्स के बंद होने से जनता में गुस्सा भड़क उठा। जुलाई 2024 में सरकार ने ऑनलाइन धोखाधड़ी और मनी लॉन्ड्रिंग के हवाले से टेलीग्राम को ब्लॉक किया था, और अगस्त 2024 में टिकटॉक पर 9 महीने का बैन हटाया गया, क्योंकि उसने नियमों का पालन किया। लेकिन इस बार बैन का दायरा इतना बड़ा था कि यह युवाओं के लिए असहनीय हो गया।



Gen-Z का विद्रोह: बैन से सत्ता तक की जंग

नेपाल की 82% हिंदू बहुल आबादी में Gen-Z (1997-2012 में जन्मे) का बड़ा हिस्सा है। यह पीढ़ी डिजिटल नेटिव्स की है, जिसके लिए सोशल मीडिया मनोरंजन, शिक्षा, व्यापार और अभिव्यक्ति का मंच है। बैन को युवाओं ने अपनी आजादी पर हमला माना। 8 सितंबर को ‘हम नेपाल’ संगठन ने काठमांडू के मैतीघर मंडला से शांतिपूर्ण प्रदर्शन शुरू किया। सुबह 9 बजे राष्ट्रगान के साथ मार्च शुरू हुआ, जिसमें यूनिफॉर्म में युवा, किताबें और झंडे लिए शामिल थे। आयोजकों ने 28 साल से ज्यादा उम्र वालों को शामिल होने से मना किया, ताकि यह Gen-Z का आंदोलन बना रहे। प्रदर्शनकारी नारे लगा रहे थे“सोशल मीडिया बैन हटाओ, भ्रष्टाचार बंद करो, नौकरी दो, इंटरनेट एक्सेस दो।” लेकिन यह शांतिपूर्ण मार्च जल्द हिंसक हो गया। न्यू बानेश्वर में प्रदर्शनकारियों ने संसद के गेट नंबर 2 को तोड़कर परिसर में प्रवेश किया। पुलिस ने आंसू गैस, रबर बुलेट्स और पानी की बौछारों का इस्तेमाल किया। दमक में फायरिंग में कम से कम 6 लोगों की मौत और 80 से ज्यादा घायल हुए। नेशनल ट्रॉमा सेंटर, एवरेस्ट हॉस्पिटल और त्रिभुवन यूनिवर्सिटी टीचिंग हॉस्पिटल में मौतें दर्ज की गईं। कुछ स्रोतों ने मृतकों की संख्या 16 तक बताई, जिसमें कई पत्रकार भी घायल हुए।

24 वर्षीय छात्र युजन राजभंडारी ने कहा, “हमें सोशल मीडिया बैन ने झकझोरा, लेकिन हम सिर्फ इसके लिए नहीं आए। हम उस भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं जो नेपाल में संस्थागत हो चुका है।” 20 वर्षीय छात्रा इक्षमा तुमरोक ने जोड़ा, “हम सरकार के तानाशाही रुख के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। हम बदलाव चाहते हैं, पहले की पीढ़ियों ने इसे सहा, लेकिन अब इसे हमारी पीढ़ी में खत्म होना चाहिए।” टिकटॉक पर वायरल वीडियो में आम नेपाली नागरिकों की परेशानियों की तुलना नेताओं के बच्चों की ऐशोआराम वाली जिंदगी से की जा रही है। #RestoreOurInternet और #NepalAgainstCorruption जैसे हैशटैग ट्रेंड कर रहे हैं। प्रदर्शनकारी भूमिका भारती ने कहा, “दुनिया भर में भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन हुए हैं, और सरकार को डर है कि नेपाल में भी ऐसा हो सकता है।” यह आंदोलन अब बैन हटाने से आगे बढ़कर सत्ता परिवर्तन की मांग तक पहुंच गया है।





बांग्लादेश और श्रीलंका की राह पर नेपाल

नेपाल का यह आंदोलन बांग्लादेश और श्रीलंका की हालिया घटनाओं की याद दिलाता है। बांग्लादेश में जुलाई 2024 में नौकरी कोटे के खिलाफ आंदोलन ने शेख हसीना की सरकार को उखाड़ फेंका। श्रीलंका में 2022 में आर्थिक संकट और महंगाई के खिलाफ जनता ने राष्ट्रपति भवन घेर लिया। दोनों में सोशल मीडिया ने युवाओं को संगठित करने और आंदोलन को हवा देने में अहम भूमिका निभाई। नेपाल में भी टिकटॉक और वीपीएन के जरिए युवा जुड़े। इस आंदोलन को ‘नेपाल का अरब स्प्रिंग’ कहा जा रहा है, जो 2011 के मिस्र की क्रांति की याद दिलाता है, जहां फेसबुक और ट्विटर ने तानाशाही को उखाड़ फेंका था। मिस्र में बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और राजनीतिक स्वतंत्रता की कमी के खिलाफ युवाओं ने आवाज उठाई थी, और 18 दिनों बाद तत्कालीन राष्ट्रपति होस्नी मुबारक को इस्तीफा देना पड़ा।

काठमांडू के मेयर बालेन शाह, जो 2022 में ऑनलाइन कैंपेन से चुने गए, ने इस आंदोलन का समर्थन किया। उन्होंने कहा, “मैं उम्र की वजह से शामिल नहीं हो सकता, लेकिन मेरा पूरा समर्थन है।” विपक्षी राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी ने बैन को तानाशाही बताया, और राजतंत्र समर्थक नेता दुर्गा प्रसाई, जो जून 2025 में राजतंत्र बहाली के लिए प्रदर्शन कर चुके हैं, भी शामिल हुए। विशेषज्ञों का मानना है कि यह आंदोलन विपक्ष और राजतंत्र समर्थकों के लिए राजनीतिक हथियार बन सकता है। नेपाल के पूर्व विदेश मंत्री उपेंद्र यादव ने कहा, “नेपाल में बेरोजगारी चरम पर है, और सोशल मीडिया बैन ने युवाओं के गुस्से को हवा दी।



सोशल मीडिया: हथियार या खतरा?

सोशल मीडिया की दोहरी भूमिका पर बहस छिड़ी है। यह युवाओं को संगठित करने और आवाज उठाने का मंच देता है, लेकिन फेक न्यूज और भड़काऊ कंटेंट से अराजकता भी फैलती है। सरकार का कहना है कि बैन जरूरी था, क्योंकि इन कंपनियों ने स्थानीय कानूनों का पालन नहीं किया। ऑनलाइन धोखाधड़ी और मनी लॉन्ड्रिंग के मामले बढ़ रहे थे। लेकिन युवा इसे अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला मानते हैं। प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने बैन का बचाव करते हुए कहा, “किसी को भी देश की स्वतंत्रता और संप्रभुता से खिलवाड़ की इजाजत नहीं दी जाएगी।” कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार भ्रष्टाचार और नाकामियों की आलोचना दबाने के लिए बैन का सहारा ले रही है। नेपाल में बेरोजगारी दर 20% से ऊपर है, और ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के भ्रष्टाचार सूचकांक में नेपाल 110वें स्थान पर है। टिकटॉक पर वायरल वीडियो में नेताओं के बच्चों की लग्जरी लाइफ को आम जनता की तकलीफों से जोड़ा जा रहा है, जिसने जनाक्रोश को और बढ़ाया।

भारत पर प्रभाव: सतर्कता जरूरी

नेपाल का यह संकट भारत के लिए चेतावनी है। भारत ने 1,800 किलोमीटर लंबी नेपाल सीमा पर सशस्त्र सीमा बल (SSB) की तैनाती बढ़ा दी है। भारत में पढ़ने वाले 13 हजार से ज्यादा नेपाली छात्र इस बैन से प्रभावित हैं। शिक्षा मंत्रालय की 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 47 हजार विदेशी छात्रों में 28% नेपाली हैं। ये छात्र सोशल मीडिया के जरिए अपने परिवारों से जुड़े थे, और अब उनकी मुश्किलें बढ़ गई हैं।भारत में सोशल मीडिया का प्रभाव अपार है। 2021 के किसान आंदोलन और CAA-NRC विरोध में सोशल मीडिया ने युवाओं को संगठित किया। लेकिन फेक न्यूज और भड़काऊ कंटेंट से सामाजिक तनाव भी बढ़ा। कुछ लोग नेपाल के आंदोलन को बाहरी साजिश मानते हैं, जैसा कि बांग्लादेश और श्रीलंका में देखा गया। टिकटॉक और वाइबर पर वायरल पोस्ट्स में दावा किया गया कि विदेशी ताकतें नेपाल में अस्थिरता फैला रही हैं। भारत में भी ऐसी आशंकाएं रही हैं। अगस्त 2025 में जनकपुरधाम में गणेश मूर्ति विसर्जन के दौरान हिंदुओं पर पथराव की खबरें आईं, जिसे कुछ लोगों ने डेमोग्राफिक बदलाव और बाहरी साजिश से जोड़ा। हालांकि, ये दावे पुष्ट नहीं हैं।

भारत के लिए सबक

नेपाल का Gen-Z रिवोल्यूशन एक चेतावनी है कि सोशल मीडिया और युवा शक्ति को दबाना आसान नहीं है। यह आंदोलन सिर्फ बैन के खिलाफ नहीं, बल्कि भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और तानाशाही के खिलाफ है। सरकार को नियमों और आजादी के बीच संतुलन बनाना होगा। भारत को इससे सबक लेना होगा। सोशल मीडिया के दुरुपयोग पर लगाम लगानी होगी, लेकिन अभिव्यक्ति की आजादी का सम्मान भी जरूरी है। नेपाल की सड़कों पर उमड़ा जनसैलाब और संसद पर धावा बोलते युवा बता रहे हैं कि नई पीढ़ी चुप नहीं बैठेगी। भारत को सतर्क रहना होगा, क्योंकि पड़ोसी देशों की आग सीमा पार भी फैल सकती है।

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