कोलकाता रेप केस पर देश में गुस्सा: निर्भया कांड के बाद बलात्कार के मामलों में वृद्धि या कमी?


निर्भया कांड से 12 साल पहले और बाद में रेप के मामले बढ़े या घटे? अब कोलकाता मामले पर गुस्से में देश

कोलकाता रेप केस पर देश में गुस्सा: निर्भया कांड के बाद बलात्कार के मामलों में वृद्धि या कमी?

कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज में नौ अगस्त को जूनियर डॉक्टर के साथ हुए रेप और उसकी बेरहमी से हत्या का मामला अब व्यापक ध्यान आकर्षित कर रहा है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इस घटना पर गहरी चिंता जताते हुए निर्भया कांड की याद दिलाई और समाज की सामूहिक भूलने की आदत की आलोचना की। उन्होंने कहा कि निर्भया कांड के बाद भी रेप की घटनाओं में कमी नहीं आई है और समाज इन घटनाओं को भुला देता है, जो घृणित है। इस घटना ने एक बार फिर से सवाल उठाया है कि निर्भया कांड के बाद देश में रेप के मामलों की स्थिति कैसी रही है और क्या कानूनों में किए गए बदलाव प्रभावी हुए हैं या नहीं।

भारत में महिलाओं के खिलाफ अपराधों की स्थिति चिंताजनक बनी हुई है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़े बताते हैं कि हर साल महिलाओं के खिलाफ अपराध से जुड़े चार लाख से ज्यादा मामले दर्ज होते हैं। इनमें रेप के साथ-साथ छेड़छाड़, दहेज हत्या, अपहरण, महिलाओं की तस्करी और एसिड अटैक जैसे अपराध शामिल हैं। 2012 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 2.44 लाख मामले दर्ज हुए थे, जो 2022 में बढ़कर 4.45 लाख से ज्यादा हो गए। इसका मतलब है कि औसतन हर दिन 1200 से ज्यादा मामले दर्ज किए गए।

2012 की 16 दिसंबर को दिल्ली में चलती बस में युवती के साथ हुए गैंगरेप और अत्यंत बर्बरता ने पूरे देश को हिला दिया था। निर्भया कांड के नाम से प्रसिद्ध इस घटना ने कानून में सुधार की दिशा में बड़ा कदम उठाया। रेप के मामलों में सख्ती के साथ-साथ मौत की सजा का प्रावधान किया गया। इसके अलावा, जुवेनाइल कानून में भी संशोधन किया गया ताकि जघन्य अपराधों में शामिल किशोरों को वयस्क अपराधियों की तरह सजा दी जा सके। हालांकि, इन कानूनों में बदलाव के बावजूद रेप के मामलों में कमी नहीं आई।

दरअसल, निर्भया कांड के बाद रेप के मामलों में कमी के बजाय वृद्धि देखी गई। एक कारण यह भी बताया गया है कि निर्भया कांड के बाद रेप के मामलों की रिपोर्टिंग में वृद्धि हुई और इन्हें दर्ज किया जाने लगा। एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि 2012 से पहले हर साल देश में औसतन 25 हजार रेप मामले दर्ज होते थे। 2001 में 16,075 मामले सामने आए थे, जो 2009 में 21,397, 2010 में 22,172, और 2011 में 24,206 तक पहुंच गए थे। निर्भया कांड के बाद यह आंकड़ा 30 हजार के ऊपर पहुंच गया और 2013 में 33 हजार से ज्यादा मामले दर्ज किए गए। 2016 में यह आंकड़ा 39 हजार के करीब पहुंच गया था।

2022 में भी रेप के मामलों में वृद्धि देखी गई। एनसीआरबी की रिपोर्ट के मुताबिक, 2012 में रेप के 24,923 मामले दर्ज हुए थे, जबकि 2022 में यह आंकड़ा 31,516 तक पहुंच गया। इसका मतलब है कि हर दिन औसतन 86 रेप के मामले दर्ज हुए। हालांकि, कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि रेप के मामलों की संख्या में बढ़ोतरी का एक कारण इनकी रिपोर्टिंग में वृद्धि भी हो सकती है, जो पहले से अधिक पारदर्शी हो गई है।

भारत के विभिन्न राज्यों में रेप के मामलों में अंतर देखा गया है। 2022 में राजस्थान में सबसे ज्यादा 5,399 रेप के मामले दर्ज हुए। इसके बाद उत्तर प्रदेश (3,690 मामले), मध्य प्रदेश (3,029 मामले), महाराष्ट्र (2,904 मामले), हरियाणा (1,787 मामले), और ओडिशा (1,464 मामले) का स्थान रहा। ये आंकड़े दिखाते हैं कि कुछ राज्यों में महिलाओं के खिलाफ अपराध की दर अपेक्षाकृत अधिक है।

साथ ही, कुछ राज्यों में महिलाओं के खिलाफ अपराध की घटनाओं में कमी आई है। नगालैंड, उदाहरण के लिए, महिलाओं के खिलाफ अपराधों में गिरावट देखने को मिली है। 2021 में महिला अपराधों में 38.46 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी, जबकि 2022 में इसमें 9 प्रतिशत से अधिक की कमी आई। 2022 में नगालैंड में महिलाओं के खिलाफ अपराध की दर एक लाख की आबादी पर 4.6 थी, जबकि राष्ट्रीय औसत 66.2 था। लद्दाख और लक्षद्वीप जैसे केंद्र शासित प्रदेशों में भी महिलाओं के खिलाफ अपराध की दर काफी कम रही, जो क्रमशः 1.3 और 0.3 थी।

इन आंकड़ों के माध्यम से यह स्पष्ट होता है कि हालांकि कानून में सुधार और कड़े प्रावधानों के बावजूद, महिलाओं के खिलाफ अपराधों की संख्या में कमी नहीं आ रही है। यह दर्शाता है कि केवल कानूनी प्रावधानों से समाज में बदलाव लाना संभव नहीं है। इसके लिए समाज के हर स्तर पर जागरूकता, शिक्षा, और मजबूत कार्यान्वयन की आवश्यकता है। निर्भया कांड के बाद बने कानूनों की प्रभावशीलता पर सवाल उठाना भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि अपराधों की रिपोर्टिंग और सामाजिक प्रतिक्रियाएं केवल एक हिस्सा हैं, जबकि सच्चे परिवर्तन के लिए संपूर्ण प्रणाली और समाज को बदलने की जरूरत है।

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