ममता बनर्जी बनाम मोदी सरकार: राष्ट्रपति शासन से बंगाल की राजनीति पर क्या असर होगा?



ममता बनर्जी बनाम मोदी सरकार: राष्ट्रपति शासन से बंगाल की राजनीति पर क्या असर होगा?

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने हाल ही में महिलाओं के खिलाफ अपराधों की बढ़ती घटनाओं पर गहरी चिंता जताई है। उनका बयान कोलकाता में एक महिला डॉक्टर के साथ हुए रेप और हत्या की घटना के बाद आया, जिसने पूरे देश को हिला कर रख दिया। राष्ट्रपति ने इस मुद्दे पर अपनी गंभीर चिंता व्यक्त की और कहा कि पश्चिम बंगाल में लोकतंत्र की स्थिति चिंताजनक है। ममता बनर्जी की सरकार पर आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा कि सरकार ने लोगों की उम्मीदों पर खरा उतरने में विफल रही है और अपराधियों को बचाने में संलिप्त है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि पुलिस ने सुरक्षा देने में पूरी तरह से नाकाम साबित हुई है और पुलिस कमिश्नर को तुरंत हटाया जाना चाहिए।वहीं, बंगाल के राज्यपाल सीवी आनंद बोस ने भी इस मुद्दे पर सख्त टिप्पणी की है। उन्होंने कहा कि अगर बंगाल में हालात बिगड़े, तो इसके असर असम, पूर्वोत्तर, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, ओडिशा और दिल्ली तक फैल सकते हैं। उनके मुताबिक, मोदी सरकार अपनी पार्टी का इस्तेमाल आग लगाने के लिए कर रही है और इस स्थिति के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए। राज्यपाल बोस ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और गृहमंत्री अमित शाह से दिल्ली में मुलाकात की और मामले की गंभीरता पर चर्चा की।

ममता बनर्जी के बयान ने राजनीतिक माहौल में एक बड़ा उबाल पैदा कर दिया है। भाजपा के नेताओं ने ममता के खिलाफ तीखे बयानों की बौछार की है। असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने ममता पर आरोप लगाया कि उन्होंने असम को धमकाने की कोशिश की है और उनकी राजनीति भारत को जलाने की कोशिश कर रही है। भाजपा के वरिष्ठ नेता और झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने भी ममता के बयान को निंदनीय और दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया। उन्होंने कहा कि ममता बनर्जी झारखंड समेत अन्य राज्यों में अराजकता फैलाने की धमकी दे रही हैं और राष्ट्रपति शासन की अनुशंसा की जानी चाहिए।इन बयानों की तल्खी ने यह चर्चा छेड़ दी है कि क्या पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है। मोदी सरकार के लिए राष्ट्रपति शासन लगाना कितना आसान है और अगर ऐसा हुआ तो ममता को फायदा हो सकता है या भाजपा को? इस सवाल पर विचार करते हुए, यह जानना महत्वपूर्ण है कि राष्ट्रपति शासन किस स्थिति में लागू किया जा सकता है।

संविधान के आर्टिकल 355 और 356 में राष्ट्रपति शासन की परिस्थितियों का उल्लेख है। आर्टिकल 355 केंद्र सरकार को राज्यों को बाहरी आक्रमण और आंतरिक अशांति से बचाने की शक्ति देता है, जबकि आर्टिकल 356 यह व्यवस्था करता है कि अगर राज्य शासन को सुचारू रूप से चलाने में असफल रहता है, तो वहां राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है। इसके लिए राज्यपाल की सिफारिश होना आवश्यक है, हालांकि कई मामलों में केंद्र सरकार खुद भी सिफारिश कर सकती है अगर उसे लगता है कि राज्य का संवैधानिक तंत्र विफल हो चुका है।राष्ट्रपति शासन की प्रारंभिक अवधि अधिकतम 6 महीने के लिए होती है और इसकी सिफारिश पर दोनों सदनों की मंजूरी आवश्यक होती है। यदि लोकसभा अस्तित्व में नहीं है, तो इसे राज्यसभा से पारित किया जा सकता है और लोकसभा के गठन के बाद एक महीने के भीतर इसे पारित कराना आवश्यक है। राष्ट्रपति शासन की अधिकतम अवधि 3 साल तक हो सकती है।

मोदी सरकार ने अब तक 9 बार राष्ट्रपति शासन की सिफारिश की है, जिनमें जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड, महाराष्ट्र और अरुणाचल जैसे राज्य शामिल हैं। कांग्रेस सरकारों ने 90 से ज्यादा बार राष्ट्रपति शासन लागू किया है, और पूर्व पीएम इंदिरा गांधी ने सबसे अधिक 50 बार इसका उपयोग किया था।अब बात करते हैं कि ममता बनर्जी और मोदी सरकार के लिए बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाने के संभावित लाभ और नुकसान क्या हो सकते हैं।ममता बनर्जी के लिए, राष्ट्रपति शासन एक विक्टिम कार्ड के रूप में काम कर सकता है। वे खुद को केंद्रीय हस्तक्षेप के खिलाफ पीड़ित मानकर पेश करेंगी और किसी भी संभावित चुनाव में इसका लाभ उठा सकती हैं। मोदी सरकार का डर दिखाकर अल्पसंख्यक समुदाय को एकजुट कर सकती हैं और अपनी शहादत को भुनाने का प्रयास करेंगी। इससे उनकी लोकप्रियता बढ़ सकती है, खासकर जब भाजपा का वोट प्रतिशत बंगाल में घट रहा है। भाजपा के लिए यह रिस्क लेने की स्थिति हो सकती है कि वे टीएमसी के वोट बैंक को और मजबूत कर दें।

राष्ट्रपति शासन लगाने पर मोदी सरकार को सहयोगी दलों और विपक्ष से विरोध का सामना करना पड़ सकता है। चंद्रबाबू नायडु और नीतीश कुमार जैसे सहयोगी दल केंद्र के ज्यादा हस्तक्षेप के खिलाफ हैं, और विपक्षी दल भी इस कदम का विरोध कर सकते हैं। इससे मोदी सरकार की स्थिति और पेचीदा हो सकती है, खासकर जब सरकार के पास पूर्ण बहुमत नहीं है।कानूनी और संवैधानिक दिक्कतें भी राष्ट्रपति शासन के रास्ते में आ सकती हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक के पूर्व सीएम बोम्मई केस में राष्ट्रपति शासन को समीक्षा योग्य माना था और कहा था कि केंद्र सरकार को यह साबित करना होगा कि उसके पास पर्याप्त आधार है। यदि राष्ट्रपति शासन को कोर्ट ने पलटा, तो सरकार की छवि को नुकसान हो सकता है। सरकार पहले भी अरुणाचल और उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन को कोर्ट द्वारा रद्द करवाने के मामले में किरकिरी कर चुकी है।

संवैधानिक मानदंडों के अनुसार, राष्ट्रपति शासन लगाने के लिए संवैधानिक मशीनरी की विफलता या कानून और व्यवस्था की खराब स्थिति का होना जरूरी है। हालांकि, बंगाल के राज्यपाल ने ममता सरकार के खिलाफ टिप्पणी की है, लेकिन राष्ट्रपति शासन की सिफारिश केंद्र को नहीं भेजी है जिसमें राज्य की स्थिति की गंभीरता का उल्लेख हो। इस तरह की एक्सट्रीम कार्रवाई करने की स्थिति में सरकार अभी नजर नहीं आ रही है।अभी बंगाल में ममता बनर्जी के खिलाफ लोगों का आक्रोश बढ़ा हुआ है और लोग सरकार को पूरी तरह से विफल मान रहे हैं। भाजपा इस स्थिति का फायदा उठाकर ममता सरकार को बैकफुट पर ढकेलने की कोशिश कर रही है। अगर राष्ट्रपति शासन लागू होता है, तो जिम्मेदारी मोदी सरकार पर आ जाएगी, जो किसी भी सरकार के लिए एक मुश्किल स्थिति हो सकती है।तो अंततः, बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाने का मामला फिलहाल एक जटिल स्थिति में है। शेक्सपियर की प्रसिद्ध लाइन "To be or not to be" बंगाल की स्थिति पर पूरी तरह से फिट बैठती है। हालांकि, अभी यह कहना मुश्किल है कि इस सवाल का जवाब जल्दी मिलेगा या नहीं। स्थिति की जटिलता को देखते हुए, फिलहाल यथास्थिति ही बनी रहने की संभावना अधिक है।

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