इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश के पुलिसकर्मियों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई पर लगाई रोक

 

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश के पुलिसकर्मियों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई पर लगाई रोक

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश के पुलिसकर्मियों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई पर लगाई रोक

इलाहाबाद, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद, मेरठ, वाराणसी, मैनपुरी, सिद्धार्थनगर, बस्ती, आगरा, गोरखपुर, और प्रयागराज में तैनात पुलिसकर्मियों के खिलाफ जारी विभागीय कार्रवाई पर अग्रिम आदेश तक रोक लगा दी है। यह आदेश न्यायमूर्ति जेजे मुनीर ने दीवानी न्यायालय में सुधीर कुमार सिंह, गौरव सिंह, यशवीर सिंह, हरीश कुमार, योगेश कुमार, राजीव चौधरी, दीपक कुमार सिंह, इमरान खान और अन्य पुलिसकर्मियों की याचिकाओं पर पारित किया।

कोर्ट ने इस मामले में वरिष्ठ अधिवक्ता विजय गौतम और अधिवक्ता अतिप्रिया गौतम की दलीलें सुनीं। अधिवक्ताओं ने तर्क दिया कि पुलिसकर्मियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है, और इन ही आरोपों के आधार पर विभागीय कार्रवाई की जा रही है। उनका कहना था कि पुलिस रेगुलेशन के तहत, जब किसी पुलिसकर्मी के खिलाफ क्रिमिनल केस चल रहा हो, तो विभागीय कार्यवाही केवल तब की जा सकती है जब क्रिमिनल केस का ट्रायल पूरा हो जाए या आरोपी बरी हो जाए। सर्वोच्च न्यायालय ने जसवीर सिंह केस में पुलिस रेगुलेशन का पालन अनिवार्य माना है।

इस मामले में, पुलिसकर्मियों के खिलाफ भ्रष्टाचार और अन्य मामलों में एफआईआर दर्ज की गई है। इन्हीं आरोपों के संबंध में उप्र पुलिस अधीनस्थ श्रेणी के पुलिस अधिकारियों की (दंड एवं अपील) नियमावली 1991 के नियम 14(1) के तहत विभागीय कार्यवाही शुरू की गई थी। आरोपियों ने इस विभागीय कार्यवाही को चुनौती देते हुए याचिकाएं दायर की हैं।

कोर्ट ने पुलिस विभाग के उच्च अधिकारियों को नोटिस जारी करते हुए उनसे जवाब मांगा है। साथ ही, न्यायालय ने निर्देश दिया है कि इस प्रकार की सभी याचिकाओं को एक साथ सुनवाई के लिए कनेक्ट किया जाए। यह निर्णय न्यायिक प्रक्रिया में निष्पक्षता और विधि सम्मतता को सुनिश्चित करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है।

यह आदेश पुलिसकर्मियों को राहत प्रदान करता है, जो विभागीय कार्रवाई के खिलाफ कानूनी सुरक्षा की उम्मीद कर रहे थे। इस आदेश से यह स्पष्ट होता है कि न्यायालय ने विभागीय कार्रवाई की वैधता और कानूनी प्रावधानों की समीक्षा करने की जरूरत महसूस की है।इस फैसले के बाद, यह देखना होगा कि पुलिस विभाग और संबंधित अधिकारी इस आदेश के प्रति अपनी प्रतिक्रिया किस प्रकार देते हैं और विभागीय कार्यवाही की प्रक्रिया पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है।

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