नवारो का भारत पर जातिगत हमला रूस से तेल खरीद पर विवाद
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के व्यापार सलाहकार पीटर नवारो इन दिनों भारत को लेकर लगातार तीखे और विवादास्पद बयान दे रहे हैं। रूस से तेल खरीदने के मुद्दे पर भारत को निशाना बनाते हुए उन्होंने अब जातिगत कार्ड खेलने की कोशिश की है, जो न केवल भारत की सामाजिक संरचना पर हमला है, बल्कि दोनों देशों के रिश्तों में नई कड़वाहट घोल रहा है। हाल ही में फॉक्स न्यूज को दिए एक साक्षात्कार में नवारो ने दावा किया कि भारत रूस से सस्ता तेल खरीदकर ‘लॉन्ड्रोमैट’ (धन शोधन केंद्र) बन गया है और इस सौदे से ‘ब्राह्मण’ भारी मुनाफा कमा रहे हैं, जबकि इसका बोझ आम भारतीयों को उठाना पड़ रहा है। उन्होंने कहा, “भारतीय रिफाइनर रूस से सस्ता कच्चा तेल खरीद रहे हैं, उसे प्रोसेस करके ऊंची कीमत पर निर्यात कर रहे हैं। खास तौर पर ब्राह्मण अपने देश के लोगों की कीमत पर मुनाफाखोरी कर रहे हैं।” नवारो ने यह भी दोहराया कि ट्रंप का भारत पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगाने का फैसला पूरी तरह सही है और इससे रूस को यूक्रेन युद्ध के लिए मिलने वाली फंडिंग रोकी जा सकती है। इस बयान ने भारत में भारी हंगामा मचा दिया है। कई राजनीतिक नेता, सामाजिक संगठन और विशेषज्ञ इसे ‘जातिवादी’, ‘भड़काऊ’ और ‘खतरनाक’ करार दे रहे हैं, क्योंकि यह न केवल भारत की आर्थिक नीति पर हमला है, बल्कि सामाजिक सद्भाव को बिगाड़ने की साजिश के रूप में देखा जा रहा है।
ट्रंप प्रशासन की यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है, जब अमेरिका और भारत के बीच व्यापारिक तनाव चरम पर है। ट्रंप ने भारत के रूसी तेल आयात को सीधे यूक्रेन युद्ध से जोड़ते हुए भारतीय निर्यात पर भारी-भरकम टैरिफ लगाए हैं। अमेरिका का दावा है कि भारत का रूसी तेल आयात मॉस्को को यूक्रेन युद्ध के लिए आर्थिक मदद दे रहा है, जिससे युद्ध लंबा खिंच रहा है। ट्रंप ने कई मौकों पर दावा किया है कि वे इस युद्ध को घंटों में खत्म कर सकते हैं, लेकिन भारत जैसी उभरती शक्तियों की स्वतंत्र नीतियां उनके लिए चुनौती बनी हुई हैं। नवारो ने पहले भी यूक्रेन युद्ध को ‘मोदी का युद्ध’ कहकर विवाद खड़ा किया था, और अब जातिगत कोण जोड़कर उन्होंने नई बहस छेड़ दी है। इस बयान का समय भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक में हिस्सा लिया, जहां उन्होंने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात की। यह मुलाकात भारत की बहुपक्षीय विदेश नीति को दर्शाती है, जो अमेरिका को रास नहीं आ रही। विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप प्रशासन भारत की रूस-चीन के साथ बढ़ती नजदीकियों से घबरा गया है, और नवारो जैसे बयान इसी हताशा का नतीजा हैं। इतिहास गवाह है कि अमेरिका ने हमेशा अपने हितों को प्राथमिकता दी है, और विरोधी देशों की नीतियों को तोड़ने के लिए सामाजिक-राजनीतिक हथकंडे अपनाए हैं। भारत के मामले में, जब मोदी सरकार पर सीधा दबाव काम नहीं कर रहा, तो अब जातिगत विभाजन को भड़काने की कोशिश की जा रही है।
नवारो के इस बयान पर भारत में तीखी और व्यापक प्रतिक्रियाएं आई हैं। शिवसेना सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने इसे ‘शर्मनाक और खतरनाक’ बताया। उन्होंने कहा, “भारत में किसी खास जाति का नाम लेकर अपनी बात रखना निंदनीय है। भले ही अमेरिकी संदर्भ में ‘ब्राह्मण’ का मतलब एलीट हो, लेकिन यह जानबूझकर भारतीय समाज को भड़काने की कोशिश है।” तृणमूल कांग्रेस की सांसद सागरिका घोष ने स्पष्ट किया कि अमेरिका में ‘बोस्टन ब्राह्मण’ शब्द 19वीं सदी से न्यू इंग्लैंड के धनी और शिक्षित श्वेत परिवारों के लिए इस्तेमाल होता है, जो शुरुआती अंग्रेजी उपनिवेशवादियों के वंशज थे। लेकिन नवारो का इशारा स्पष्ट रूप से भारतीय ब्राह्मण समुदाय की ओर था, जिसे परंपरागत रूप से उच्च जाति माना जाता है। प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के सदस्य संजीव सान्याल ने कहा, “यह बयान औपनिवेशिक मानसिकता को दर्शाता है, जो भारत को गलत तरीके से पेश करता है। यह 19वीं सदी के जेम्स मिल जैसे विचारों की तरह है, जहां भारत को जातीय आधार पर विभाजित देखा जाता था।” कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने कहा, “अमेरिका को भारत की सामाजिक संरचना में दखल देने का कोई हक नहीं। ऐसे आधारहीन बयान द्विपक्षीय रिश्तों को कमजोर करते हैं।”
अमेरिका में भी नवारो की आलोचना हो रही है। सेंटर फॉर नेशनल अमेरिकन सिक्योरिटी (सीएनएएस) के इंडो-पैसिफिक एनालिस्ट डेरेक जे ग्रॉसमैन ने एक्स पर लिखा, “भारत में जातिगत अशांति को बढ़ावा देना कभी भी अमेरिकी विदेश नीति का हिस्सा नहीं होना चाहिए।” कुछ विश्लेषकों का मानना है कि नवारो का बयान भारत में जातीय विभाजन को भड़काने की सोची-समझी साजिश है, ताकि भारत की आंतरिक स्थिरता को कमजोर किया जा सके और मोदी सरकार पर अप्रत्यक्ष दबाव बनाया जा सके। एक्स अकाउंट ‘द स्किन डॉक्टर’ ने लिखा, “या तो कोई आत्म-घृणा करने वाला भारतीय नवारो को भारत की कमजोरियों पर हमला करने के लिए गाइड कर रहा है, या वे उन ताकतों के साथ मिले हैं जो भारत में जातिगत युद्ध भड़काकर सत्ता हथियाना चाहते हैं।” यह बयान न केवल आर्थिक मुद्दे से जुड़ा है, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक विभाजन पैदा करने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है। भारत में जाति एक संवेदनशील मुद्दा है, और हाल के वर्षों में जाति जनगणना जैसे विषयों पर राजनीतिक बहस तेज हुई है। नवारो का बयान विपक्षी दलों के लिए ईंधन का काम कर सकता है, जो मोदी सरकार को जातीय आधार पर घेरने की कोशिश करते रहे हैं।
नवारो का दावा कि रूसी तेल से सिर्फ ‘ब्राह्मण’ मुनाफा कमा रहे हैं, भारत की सामाजिक और आर्थिक संरचना की गहरी अज्ञानता को उजागर करता है। प्राचीन हिंदू समाज में ब्राह्मणों को ज्ञान, शिक्षा और धार्मिक कार्यों का प्रतीक माना गया, लेकिन धन-संपत्ति और व्यापार से उन्हें दूर रखा गया। भारत का अर्थतंत्र, खासकर व्यापार, वाणिज्य और ऊर्जा क्षेत्र, परंपरागत रूप से वैश्य समुदाय के नियंत्रण में रहा है। आज भी रिलायंस इंडस्ट्रीज जैसी बड़ी कंपनियां मुकेश अंबानी के नेतृत्व में हैं, जो वैश्य समुदाय से जुड़े हैं। रूस से तेल आयात में मुख्य रूप से रिलायंस, ओएनजीसी, और इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन (आईओसी) जैसी कंपनियां शामिल हैं। नायरा एनर्जी, जो रूसी कंपनी रोसनेफ्ट की सहायक है, भी वैश्य व्यवसायियों द्वारा संचालित है। सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियां सरकार और उपभोक्ताओं को लाभ पहुंचाती हैं, न कि किसी खास जाति को। नवारो का ‘ब्राह्मण’ शब्द संभवतः अमेरिकी संदर्भ में ‘बोस्टन ब्राह्मण’ (धनी एलीट) से प्रेरित है, लेकिन उनका इशारा भारतीय ब्राह्मणों की ओर था, जो सामाजिक विभाजन भड़काने की कोशिश लगती है। विशेषज्ञों का कहना है कि नवारो को भारत की जटिल सामाजिक व्यवस्था का कोई ज्ञान नहीं, और उनका बयान ट्रंप प्रशासन की मूर्खता को साबित करता है।
अमेरिका की यह रणनीति नई नहीं है। इतिहास में अमेरिका ने अपने विरोधी नेताओं को सत्ता से हटाने के लिए सामाजिक अशांति, आर्थिक प्रतिबंध और यहां तक कि सैन्य हस्तक्षेप जैसे तरीके अपनाए हैं। लेकिन मोदी सरकार पर इसका कोई असर नहीं पड़ रहा। भारत ने रूस से तेल खरीदना जारी रखा है, क्योंकि इससे देश को बड़ा आर्थिक फायदा हुआ है। 2022 से पहले भारत का रूसी तेल आयात नगण्य था, लेकिन यूक्रेन युद्ध के बाद यह 35-40 प्रतिशत तक पहुंच गया। रूसी तेल डिस्काउंटेड रेट पर, यानी 60-70 डॉलर प्रति बैरल, उपलब्ध था, जबकि वैश्विक बाजार में कीमतें 100 डॉलर से ऊपर थीं। इससे भारत में पेट्रोल-डीजल की कीमतें स्थिर रहीं, परिवहन, कृषि और उद्योग जैसे क्षेत्र प्रभावित नहीं हुए। अगर भारत मध्य पूर्व से महंगा तेल खरीदता, तो ईंधन की कीमतें बढ़तीं, जिसका सबसे ज्यादा नुकसान गरीब और मध्यम वर्ग को होता। रिफाइनिंग सेक्टर को बढ़ावा मिला, जो भारत की औद्योगिक अर्थव्यवस्था का अहम हिस्सा है। सस्ते तेल से बने उत्पादों को निर्यात कर विदेशी मुद्रा अर्जित की गई, जिसने रुपये को स्थिर रखा। अगर रुपये का अवमूल्यन होता, तो महंगाई बढ़ती और आम आदमी पर इसका बोझ पड़ता। व्यापार घाटा कम हुआ, जो अप्रत्यक्ष रूप से जनता को लाभ पहुंचाता है। नवारो का दावा कि सिर्फ एक खास वर्ग को फायदा हो रहा है, पूरी तरह गलत है। रूसी तेल आयात ने भारत की ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित की और मुद्रास्फीति को नियंत्रित रखा, जिसका फायदा पूरे देश को मिला।
हैरानी की बात यह है कि कांग्रेस नेता उदित राज ने नवारो के बयान से सहमति जताई। उन्होंने एक्स पर लिखा, “मैं पीटर नवारो से पूरी तरह सहमत हूं। भारत की प्राइवेट रिफाइनरियां ऊंची जातियों के हाथों में हैं। रूस से सस्ता तेल खरीदकर रिफाइन करने के बाद उसे विदेशों में बेचा जा रहा है, लेकिन भारतीयों को कोई फायदा नहीं हो रहा।” उदित राज, जो दलित समुदाय से हैं, पहले भी विवादित बयान दे चुके हैं। उन्होंने पीएम मोदी और हिंदू परंपराओं पर सवाल उठाए हैं, जिससे कांग्रेस को असहज स्थिति का सामना करना पड़ा है। उनका यह बयान कांग्रेस को राजनीतिक रूप से नुकसान पहुंचा सकता है। राहुल गांधी भी रूस से भारत के रिश्तों पर सवाल उठाते रहे हैं, जिसे देखते हुए विपक्ष अमेरिकी लाइन पर चलता दिख रहा है।
अमेरिका में भी ट्रंप और नवारो की नीतियों की आलोचना हो रही है। विपक्षी डेमोक्रेट्स ने ट्रंप को ‘डेड इकोनॉमी’ का जिम्मेदार ठहराया है, क्योंकि उनकी नीतियों से वैश्विक अर्थव्यवस्था प्रभावित हुई है। भारत ने हमेशा अपनी ऊर्जा सुरक्षा को प्राथमिकता दी है। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने मॉस्को में कहा, “हम रूसी तेल के सबसे बड़े खरीदार नहीं हैं, वह चीन है। रूसी एलएनजी के सबसे बड़े खरीदार यूरोपीय संघ हैं।” अमेरिकी दूतावास ने भारत-अमेरिका रिश्तों को मजबूत बताया और नवाचार, उद्यमिता और रक्षा साझेदारी पर जोर दिया।नवारो के बयान अमेरिका की हताशा को उजागर करते हैं, लेकिन भारत अपनी स्वतंत्र विदेश नीति पर अडिग है। जातिगत विभाजन की कोशिशें नाकाम होंगी, क्योंकि भारत एकजुट है। ट्रंप को समझना चाहिए कि धमकियों से नहीं, बल्कि संवाद से रिश्ते मजबूत होते हैं। भारत की अर्थव्यवस्था मजबूत है, और रूसी तेल ने इसमें अहम योगदान दिया है। नवारो की अज्ञानता और भड़काऊ बयान ट्रंप प्रशासन को ही कमजोर साबित कर रहे हैं। भारत अपनी राह पर चलेगा, चाहे अमेरिका की नीतियां कुछ भी हों।
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