अल्मोड़ा की जेल में 14 साल से बंद प्रेम प्रकाश पांडेय उर्फ पीपी: कुख्यात बदमाश से महात्मा बनने की यात्रा


छोटा राजन का 'राइट हैंड', हत्या- रंगदारी सहित 60 से अधिक केस, कौन है प्रेम प्रकाश जो जेल में बैठे-बैठे बना महामंडलेश्वर?

अल्मोड़ा की जेल में 14 साल से बंद प्रेम प्रकाश पांडेय उर्फ पीपी: कुख्यात बदमाश से महात्मा बनने की यात्रा

उत्तराखंड के अल्मोड़ा की जेल में पिछले 14 वर्षों से बंद कुख्यात अपराधी प्रेम प्रकाश पांडेय उर्फ पीपी ने हाल ही में एक अनोखी और विवादित यात्रा पूरी की है। पीपी ने इस साल मार्च में नेपाल के प्रसिद्ध नाथ सम्प्रदायाचार्य दंडीनाथ जी महाराज से गुरु दीक्षा ली थी, और हाल ही में श्रीपंचदशनाम जूना अखाड़े के थानापति राजेंद्र गिरि जी महाराज से भी दीक्षा प्राप्त की है। इसके साथ ही उसे जूना अखाड़े के कई मंदिरों का महंत भी घोषित किया गया है। इस परिवर्तन ने बड़े विवाद को जन्म दिया है, और यह सवाल उठाया जा रहा है कि एक कुख्यात अपराधी कैसे अचानक महात्मा बन गया।

अपराधी से महात्मा की यात्रा

पीपी की कहानी 1992 में शुरू होती है, जब नैनीताल कोतवाली पुलिस ने उसे मोस्ट वांटेड अपराधी घोषित किया था। उस समय, नैनीताल में पीपी पर शराब तस्करी और जानलेवा हमले जैसे गंभीर आरोप थे। संयोगवश, मुंबई क्राइम ब्रांच का एक अफसर छुट्टियों के दौरान नैनीताल आया था और उसने इस पोस्टर को देखा। जब उसने कोतवाली में पूछताछ की, तो पता चला कि पीपी, जिसे वह जानता था, दरअसल छोटा राजन का राइट हैंड बंटी पांडेय उर्फ पीपी था। यह जानकारी कोतवाल के लिए चौंकाने वाली थी क्योंकि यह बदमाश पहले ही मुंबई की आर्थर जेल से फरार हो चुका था।

छोटा राजन गैंग में शामिल होना

बॉम्बे बम ब्लास्ट के बाद, छोटा राजन और दाऊद इब्राहीम के बीच संघर्ष हुआ और दोनों ने अपने-अपने रास्ते अलग कर लिए। इस दौरान, पीपी ने छोटा राजन की गैंग में शामिल होकर बहुत जल्दी अपने को स्थापित किया और सेकेंड ओहदेदार बन गया। हालांकि, उसकी गिरफ्तारी कुछ समय बाद ही हो गई, लेकिन उसने आर्थर जेल से फरार होकर अपनी गर्लफ़्रेंड के साथ वियतनाम पहुंच गया। बाद में उसे वियतनाम से गिरफ्तार किया गया और फिर अल्मोड़ा लाया गया।

बचपन की कठिनाइयों से विद्रोही बनने की कहानी

प्रेम प्रकाश पांडे का जन्म अल्मोड़ा के खनौइया गांव में हुआ था। उसकी मां का देहांत बचपन में ही हो गया था और उसके फौजी पिता ने दूसरी शादी कर ली थी। सौतेली मां के प्रताड़ना से परेशान होकर प्रकाश ने गांव छोड़ दिया और मामा के घर में रहने लगा। इस कठिन समय ने उसे विद्रोही बना दिया और उसके पहले अपराध की शुरुआत हो गई।

एक बड़े बदमाश के रूप में उभरना

18 की उम्र तक आते-आते, पीपी का नाम अल्मोड़ा और आसपास के जिलों में बदमाशों की सूची में शामिल हो चुका था। उसने अवैध शराब, ब्लैक-मार्केटिंग और रंगदारी का कारोबार किया। नैनीताल जेल से फरार होकर मुंबई पहुंचने के बाद, उसने गैंगस्टर विक्की मल्होत्रा और पुनीत तानाशाह से दोस्ती की और छोटा राजन से मिलकर इंटरनेशनल डॉन बनने का सपना देखा।

दाऊद इब्राहीम की हत्या की योजना

पीपी ने विक्की मल्होत्रा और पुनीत तानाशाह के साथ मिलकर दाऊद इब्राहीम की हत्या की योजना बनाई। हालांकि उनकी पहली कोशिश असफल रही, लेकिन दो साल बाद उन्होंने एक और प्रयास किया, जो भी विफल हो गया। पीपी की कुख्याति तब बढ़ी जब उसने 2007 में शाहरुख खान से रंगदारी मांगी और महाराष्ट्र के शिव सागर रेस्टोरेंट में फायरिंग की, जिसमें सिक्योरिटी गार्ड की हत्या कर दी। इसके बाद उसने दिल्ली क्राइम ब्रांच के एसीपी राजबीर सिंह की दिनदहाड़े हत्या कर दी।

जेल में साधना और गुरु दीक्षा

अंततः, पीपी पिछले 17 वर्षों से जेल में है। नेपाल के नाथ सम्प्रदायाचार्य दंडीनाथ जी महाराज ने बताया कि जेल में रहते हुए प्रकाश ने अपने बुरे कर्मों की प्रायश्चित की और साधना की। मार्च में उन्होंने उसे गुरु दीक्षा दी और उसका नामकरण प्रकाशनाथ किया। इस दीक्षा के बाद, जब उसके पिता का निधन हुआ, तो वह गेरुआ वस्त्र पहनकर हल्द्वानी आया।

जूना अखाड़े से महंत की उपाधि

हाल ही में, जूना अखाड़े के थानापति राजेंद्र गिरी जी महाराज ने जेल में जाकर पीपी को गुरु दीक्षा दी और उसका नामकरण प्रकाशानंद गिरी के रूप में किया। इसके साथ ही, उसे जूना अखाड़े के गंगोत्री भैरव मंदिर, गंगोलीहाट के लंबकेश्वर महादेव मंदिर, मुनस्यारी में कालिका माता मंदिर और काला मुनि मंदिर जैसे आधा दर्जन मंदिरों का महंत भी घोषित किया गया।

विवाद और प्रतिक्रिया

इस घटनाक्रम ने समाज और धार्मिक समुदाय में बड़ा विवाद खड़ा कर दिया है। कई लोग इस बात से हैरान और नाराज हैं कि एक कुख्यात अपराधी को धार्मिक और आध्यात्मिक उपाधियां दी जा रही हैं। जूना अखाड़े के थानापति राजेंद्र गिरी महाराज का कहना है कि दीक्षा के बाद की प्रक्रिया 2025 में प्रयागराज में कुंभ में पूरी होगी, जो इस विवाद को और भी बढ़ा सकता है।यह पूरा मामला कई सवाल उठाता है: क्या किसी के बुरे कर्मों की प्रायश्चित पूरी तरह से स्वीकार कर ली जाती है? एक अपराधी को अचानक धार्मिक प्रतिष्ठा और महंत का पद देने से समाज में क्या संदेश जाएगा? इन सवालों का जवाब समाज और धार्मिक संगठनों को देना होगा। 

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