
कश्मीर का ऐतिहासिक सफर संत से सम्राट अशोक तक की यात्रा
जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव की तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं। आगामी चुनाव 18 सितंबर से एक अक्टूबर तक तीन चरणों में होंगे, जिसमें 90 विधानसभा सीटों के लिए मतदान किया जाएगा। चुनाव के परिणाम 8 अक्टूबर को घोषित किए जाएंगे। इस चुनावी महासंग्राम के बीच, जम्मू-कश्मीर के समृद्ध और विविध ऐतिहासिक परिदृश्य पर एक नजर डालना महत्वपूर्ण है, ताकि हम समझ सकें कि इस क्षेत्र ने किस प्रकार से कई शासकों के अधीन आकर आज की स्थिति तक का सफर तय किया है।
महर्षि कश्यप का कश्मीर
कश्मीर का इतिहास प्राचीन काल से ही मिलता है। कश्मीर का पहला राजा महर्षि कश्यप था, जिन्होंने अपने ख्वाबों का कश्मीर बसाया था। यह क्षेत्र महर्षि कश्यप के नाम पर बसाया गया था, और कश्यप समाज ने सबसे पहले कश्मीर घाटी में निवास किया। महाभारत काल में गणपतयार और खीर भवानी मंदिरों का जिक्र मिलता है, जो आज भी कश्मीर में स्थित हैं और श्रद्धालुओं की आस्था का बड़ा केंद्र हैं।
बौद्ध धर्म का प्रचार और हिंदू धर्म की वापसी
श्रीनगर के उत्तर पश्चिम में स्थित बुर्जहोम पुरातात्विक स्थल की खुदाई से कश्मीर के सांस्कृतिक इतिहास का पता चलता है। इस खुदाई से पता चलता है कि कश्मीर 3000 ई.पू. से 1000 ई.पू. तक एक विकसित सांस्कृतिक क्षेत्र रहा। तीसरी शताब्दी में कश्मीर महान सम्राट अशोक के साम्राज्य का हिस्सा रहा और इस दौरान बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार हुआ। छठवीं शताब्दी में उज्जैन के महाराज विक्रमादित्य के शासनकाल में कश्मीर में हिंदू धर्म की वापसी हुई थी।
नागवंश और ललितादित्य का शासन
नागवंश के क्षत्रिय सम्राट ललितादित्य ने 697 से 738 ईस्वी तक कश्मीर पर शासन किया। उनके उत्तराधिकारी अवंती वर्मन ने श्रीनगर के पास अवंतीपुर बसाया था। अवंती वर्मन की राजधानी रहे अवंतीपुर के अवशेष आज भी देखने को मिलते हैं और इनका ऐतिहासिक महत्व बरकरार है।
मुगल साम्राज्य की शुरुआत
1589 में मुगल शासक अकबर के शासनकाल में कश्मीर पर मुगलों का राज शुरू हुआ। इसके बाद पठानों ने कश्मीर पर कब्जा कर लिया। साल 1814 में पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने पठानों को हराकर कश्मीर में सिख साम्राज्य की स्थापना की। हालांकि, साल 1846 में अंग्रेजों ने सिखों को हराया और लाहौर संधि के तहत महाराजा गुलाब सिंह को कश्मीर का स्वतंत्र शासक नियुक्त किया गया।
ब्रिटिश राज और कश्मीर का विलय
साल 1925 में महाराजा गुलाब सिंह के पौत्र महाराजा हरि सिंह ने कश्मीर की गद्दी संभाली और देश की आजादी तक शासन किया। 1947 में देश के विभाजन के समय, महाराजा हरि सिंह ने खुद को स्वाधीन घोषित किया और कहा कि कश्मीर न तो भारत का हिस्सा होगा और न ही पाकिस्तान का। इसके बावजूद, सरदार वल्लभभाई पटेल ने 13 सितंबर 1947 को कश्मीर को भारत में शामिल करने का निर्णय लिया। पाकिस्तान के हमले के बाद, महाराजा हरि सिंह ने भारत सरकार से मदद मांगी और 26 अक्टूबर 1947 को कश्मीर भारत का हिस्सा बन गया। इस युद्ध के दौरान पाकिस्तान ने गिलगिट-बाल्टिस्तान पर कब्जा कर लिया, जिसे आज पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (POK) कहा जाता है।
पहले चुने गए प्रधानमंत्री शेख अब्दुल्ला
भारत में जम्मू-कश्मीर के विलय के बाद, 15 अक्टूबर 1947 से 5 मार्च 1948 तक मेहरचंद महाजन राज्य के प्रधानमंत्री रहे। इसके बाद, शेख मोहम्मद अब्दुल्ला को नया प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया। अगस्त-सितंबर 1951 में, जम्मू-कश्मीर में पहली बार संविधान सभा के लिए चुनाव हुए और शेख अब्दुल्ला की नेशनल कांफ्रेंस ने सभी 75 सीटों पर जीत हासिल की। हालांकि, कुछ समय बाद शेख अब्दुल्ला को जेल भेज दिया गया और बख्शी गुलाम मोहम्मद ने राज्य की बागडोर संभाली।
1960 के दशक में बदलाव
1957 में जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा को विधानसभा में बदल दिया गया था। 1962 में नेशनल कांफ्रेंस ने 70 सीटें जीतीं। हालांकि, अगले ही साल बख्शी गुलाम मोहम्मद को पद से हटा दिया गया और ख्वाजा शम्सुद्दीन को प्रधानमंत्री बनाया गया। मार्च 1965 में प्रधानमंत्री का पद मुख्यमंत्री में बदल दिया गया और जीएम सादिक पहले मुख्यमंत्री बने। 1967 में जीएम सादिक के नेतृत्व में कांग्रेस ने 61 सीटें जीतकर पूर्ण बहुमत हासिल किया। 12 दिसंबर 1971 को जीएम सादिक के निधन के बाद, सैयद मीर कासिम राज्य के मुख्यमंत्री बने।
आधुनिक युग में राजनीतिक बदलाव
1975 में, इंदिरा गांधी और शेख अब्दुल्ला के बीच हुए समझौते के बाद, सैयद मीर कासिम की जगह शेख अब्दुल्ला को मुख्यमंत्री बनाया गया। 1982 में शेख अब्दुल्ला के निधन के बाद, उनके बेटे फारूक अब्दुल्ला मुख्यमंत्री बने। 1983 में, फारूक अब्दुल्ला ने नेशनल कांफ्रेंस की अगुवाई की, लेकिन एक साल बाद उनके बहनोई गुलाम मोहम्मद शाह ने कांग्रेस के समर्थन से मुख्यमंत्री पद संभाला। 1987 में, फारूक अब्दुल्ला फिर मुख्यमंत्री बने और 1996 में भी सत्ता में रहे।
2000 के दशक में सत्ता परिवर्तन
साल 2002 में, पीडीपी-कांग्रेस गठबंधन ने मुफ्ती मोहम्मद सईद को मुख्यमंत्री बनाया। इसके बाद, कांग्रेस के गुलाम नबी आजाद मुख्यमंत्री बने और पीडीपी ने समर्थन लिया। 2008 के चुनाव के बाद कांग्रेस ने उमर अब्दुल्ला को समर्थन दिया और 5 जनवरी 2009 को वह मुख्यमंत्री बने। 2014 में भाजपा-पीडीपी ने मिलकर सरकार बनाई और महबूबा मुफ्ती मुख्यमंत्री बनीं। 2018 में भाजपा के समर्थन से सरकार गिर गई, और तब से कश्मीर में चुनाव हो रहे हैं।
2024 विधानसभा चुनाव की चुनौतियाँ और संभावनाएँ
जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव 2024 का महत्व सिर्फ इस क्षेत्र की वर्तमान राजनीति तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भारतीय राजनीति के व्यापक परिदृश्य को भी प्रभावित करेगा। इस चुनाव में विभिन्न राजनीतिक दल अपनी ताकत का प्रदर्शन करेंगे और यह देखा जाएगा कि किस दल को जनसमर्थन प्राप्त होता है।
इस चुनावी माहौल में, जम्मू-कश्मीर के इतिहास की गहराई को समझना न केवल वर्तमान स्थिति की विश्लेषणात्मक दृष्टि प्रदान करता है, बल्कि यह भविष्य की संभावनाओं के लिए भी एक मार्गदर्शन का काम करता है। कश्मीर का ऐतिहासिक यात्रा, सांस्कृतिक धरोहर और राजनीतिक परिवर्तन इस क्षेत्र के विकास और समृद्धि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव 2024 के माध्यम से, इस क्षेत्र की राजनीतिक दिशा का निर्धारण होगा। चुनावी प्रक्रिया का यह ऐतिहासिक दौर जम्मू-कश्मीर की सुसंगठित और बहुपरकारी राजनीति की एक झलक प्रस्तुत करता है। इस चुनावी परिदृश्य में, कश्मीर की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर की समझ एक महत्वपूर्ण संदर्भ बिंदु साबित होती है, जो भविष्य के लिए नीतिगत दिशा-निर्देशों का निर्धारण करेगी।
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