पितृ पक्ष तर्पण: चरण-दर-चरण विधि और महत्वपूर्ण मंत्र, जानें किस तरह से करें पितरों का सही तरीके से तर्पण।

 

पितृ पक्ष तर्पण: चरण-दर-चरण विधि और महत्वपूर्ण मंत्र, जानें किस तरह से करें पितरों का सही तरीके से तर्पण।

पितृ पक्ष तर्पण: चरण-दर-चरण विधि और महत्वपूर्ण मंत्र, जानें किस तरह से करें पितरों का सही तरीके से तर्पण।

पितृपक्ष, जो इस वर्ष 17 सितंबर से शुरू होकर 2 अक्टूबर तक चलेगा, हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण समय है। यह वह अवधि है जब श्रद्धालु अपने पूर्वजों को याद करते हैं और उनकी आत्मा की शांति के लिए तर्पण एवं श्राद्ध करते हैं। इस दौरान मान्यता है कि पूर्वजों की आत्माएं धरती पर आती हैं और अपने वंशजों से तर्पण की अपेक्षा करती हैं। पितृपक्ष का यह अवसर न केवल श्रद्धांजलि अर्पित करने का समय है, बल्कि यह परिवार में सुख-समृद्धि और शांति का संदेश भी लाता है।

तर्पण का महत्व

तर्पण की प्रक्रिया में जल अर्पण करना और विशेष मंत्रों का जाप करना शामिल है। इस विधि के माध्यम से पितरों को प्रसन्न किया जाता है, और मान्यता है कि उनके आशीर्वाद से परिवार में खुशहाली बनी रहती है। यह समय अपने पूर्वजों के प्रति कर्तव्यों का पालन करने का भी होता है। पितृपक्ष के दौरान तर्पण करने से व्यक्ति को अपने पूर्वजों के प्रति सम्मान और कृतज्ञता प्रकट करने का अवसर मिलता है।

तर्पण की विधि

पितृपक्ष में तर्पण करने की सही विधि का पालन करना आवश्यक है। यहाँ हम इसे विस्तार से समझते हैं:

1. तिथि और शुभ मुहूर्त

अगर किसी पितृ का विशेष तिथि ज्ञात है, तो उसी दिन तर्पण करना चाहिए। पितृपक्ष में तर्पण के लिए शुभ मुहूर्त का चुनाव करना भी महत्वपूर्ण होता है। इस दौरान, तर्पण विशेष फलदायक माना जाता है।

2. स्नान और शुद्धि

तर्पण करने से पहले स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए। यदि संभव हो तो किसी पवित्र नदी में स्नान करें। तर्पण करने वाले स्थान की सफाई करें और गंगा जल का छिड़काव करें। यह शुद्धि के लिए आवश्यक होता है।

3. दक्षिण दिशा का महत्व

तर्पण करते समय दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके बैठना चाहिए। यह दिशा पितरों के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती है।

4. पितरों की तस्वीर और दीपक

तर्पण के समय जिनका तर्पण किया जा रहा है, उनकी तस्वीर स्थापित करें और दीपक एवं धूप जलाएं। यह प्रक्रिया पितरों के प्रति श्रद्धा प्रकट करती है।

5. तर्पण का जल तैयार करें

तर्पण के लिए एक लोटे में जल लें और उसमें जौ, चावल, काले तिल, कुश की जूडी, सफेद फूल, गंगाजल, दूध, दही और घी मिलाएं। इस जल के साथ भोजन का भी अर्पण करें।

6. मंत्र जाप और तर्पण

दक्षिण दिशा की ओर मुख करके घुटनों के बल बैठें। जल में कुश डुबोकर "ॐ पितृ देवतायै नमः" मंत्र का जाप करते हुए सीधे हाथ के अंगूठे से जल अर्पित करें। यह प्रक्रिया 11 बार करें और पितरों का ध्यान करें। फिर पूर्व की ओर मुख करके चावल से देवताओं का तर्पण करें। इसके बाद, उत्तर दिशा की ओर मुंह करके जौ लेकर ऋषियों का तर्पण करें।

7. पितरों का नाम लेकर तर्पण

तीन-तीन अंजुली लेकर पितरों का तर्पण करें और उनके नाम तथा गोत्र का उच्चारण करें। जिनका नाम नहीं पता है, उन्हें याद करके तर्पण करें।

8. भोजन अर्पित करें

इसके बाद, गाय के गोबर के उपले को जलाएं और उसमें खीर तथा पूड़ी अर्पित करें। इसके बाद भोजन के पांच अंश देवताओं, गाय, कुत्ते, कौवे और चींटी के लिए निकालें और उन्हें अर्पित करें।

9. ब्राह्मण को भोजन

पितरों का तर्पण करने के बाद, ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए। इसके साथ ही, सामर्थ्य के अनुसार वस्त्र और दक्षिणा देकर विदा करना चाहिए। ऐसा करने से पितृ प्रसन्न होते हैं और परिवार में शुभ आशीर्वाद देते हैं।

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