भेड़ियों का बढ़ता खतरा बच्चों की सुरक्षा के लिए कौन जिम्मेदार है?


भेड़ियों का बढ़ता खतरा बच्चों की सुरक्षा के लिए कौन जिम्मेदार है?

दिल्ली से लगभग 500 किलोमीटर दूर उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले में एक गांव इन दिनों अत्यंत कठिन परिस्थितियों का सामना कर रहा है। यह गांव भेड़ियों के आतंक से जूझ रहा है जो रात के अंधेरे में ग्रामीणों पर हमला कर रहे हैं। बीते 20 दिनों में इन भेड़ियों ने करीब 10 लोगों की जान ले ली है और 50 से अधिक लोगों को घायल किया है। इस दहशत ने गांव के लोगों को रातभर जागकर पहरेदारी करने पर मजबूर कर दिया है, ताकि वे अपने परिवारों की सुरक्षा सुनिश्चित कर सकें।

इस स्थिति की गंभीरता को देखते हुए प्रशासन ने भी तुरंत कार्रवाई की है। सैकड़ों की संख्या में सुरक्षाकर्मी और वन विभाग के अधिकारी भेड़ियों की खोज में जुटे हैं। चार भेड़ियों को पकड़ लिया गया है, जबकि दो अभी भी फरार हैं। ड्रोन की मदद से इन भेड़ियों की खोज जारी है। हालांकि, इन भेड़ियों की पकड़ और उनके आतंक के बीच सवाल यह है कि क्या जंगली जानवरों के इंसानी बस्तियों की ओर बढ़ने का खतरा कम होगा? इसका सीधा सा जवाब है नहीं। इसके पीछे कई कारण हैं जो इस खतरे को बढ़ाते हैं।

जंगली जानवरों की शहरों की ओर बढ़ती प्रवृत्ति

हाल ही में गुजरात की सड़कों पर मगरमच्छ का घूमना, मेरठ में तेंदुआ का किसी घर में घुसना और दिल्ली की सड़कों पर तेंदुआ का मंडराना इन सभी घटनाओं ने जंगली जानवरों और इंसानों के बीच बढ़ते संघर्ष को उजागर किया है। जंगलों के किनारे बसे गांवों और शहरों में तेजी से हो रहे अंधाधुंध विकास और कंक्रीट के जंगल ने जंगली जानवरों के प्राकृतिक आवास को काफी प्रभावित किया है। शहरीकरण और विकास की इस लहर ने जानवरों के रहने की जगहों को घटा दिया है, जिसके परिणामस्वरूप जानवरों को इंसानी बस्तियों की ओर बढ़ने को मजबूर होना पड़ रहा है।इंडियन फ़ॉरेस्ट सर्विस के उत्तराखंड कैडर के अधिकारी और जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क के पूर्व डायरेक्टर सुरेंद्र मेहरा बताते हैं कि सबसे बड़ी समस्या यह है कि आबादी में वृद्धि के साथ सड़क पर गाड़ियों की संख्या में भी इजाफा हुआ है। पहले जहां एक रास्ते पर सौ गाड़ियां गुज़रा करती थीं, अब उसी रास्ते पर हजारों गाड़ियां गुज़र रही हैं। इससे जानवरों के सड़क पर आने और टकराने की संभावना बढ़ गई है।

इसके अलावा, बहुत से वाइल्डलाइफ एरिया में जानवरों के एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने का रास्ता भी घट गया है। जैसे महाराष्ट्र के फ़ॉरेस्ट एरिया में जंगलों के बीच का कनेक्शन टूट गया है और कॉरिडोर सिकुड़ गए हैं। पहले जंगल, खेत और आबादी के बीच एक बफर एरिया होता था, जिसे गोचर या वेटलैंड कहा जाता था। लेकिन अब यह एरिया भी घटता जा रहा है, जिससे सीधे खेतों के बाद जंगल आ गए हैं। इसका परिणाम यह है कि जंगली जानवर, जैसे कि बाघ और तेंदुआ, इन क्षेत्रों में आम हो गए हैं।

जिम्मेदारी किसकी है?

भेड़िया हो या तेंदुआ, भालू हो या मगरमच्छ, जंगली जानवरों के शहरों में भटकने के पीछे हम सभी बराबर जिम्मेदार हैं। ग्लोबल वार्मिंग, जंगलों की कटाई और जंगली जानवरों के रहने की जगहों पर अतिक्रमण इसके मुख्य कारण हैं। जानवर अपने भोजन और सुरक्षित ठिकाने की तलाश में इंसानी बस्तियों की ओर बढ़ रहे हैं। इसके अतिरिक्त, आसपास की सफाई की कमी भी इस समस्या को बढ़ा रही है। बचा हुआ खाना और मांसाहारी भोजन के अवशेष खुले में फेंक दिए जाते हैं, जो कुत्तों और सूअरों को आकर्षित करते हैं। ये जानवर तेंदुओं को भी आकर्षित करते हैं और फूड चेन का हिस्सा बनाते हैं।

जानकार क्या कहते हैं?

वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर और वाइल्डस्क्रीन पांडा पुरस्कार विजेता नरेश बेदी का कहना है कि हर जगह एनक्रोचमेंट तो है, लेकिन जंगल में भोजन की कमी भी एक बड़ा कारण है। उनका हरिद्वार के पास एक फार्म है, जिसका एक हिस्सा राजाजी नेशनल पार्क तक फैला हुआ है। गर्मियों में भोजन की कमी के कारण जानवर इंसानों के बीच आ जाते हैं। हालांकि बारिश के मौसम में घास और अन्य खाद्य स्रोतों की प्रचुरता रहती है, इसके बावजूद जानवर इंसानी बस्तियों की ओर बढ़ते हैं। पेड़-पौधों की कमी और घटते जंगल इस समस्या को और बढ़ाते हैं।

जानवरों और इंसानों के बीच टकराव क्यों बढ़ रहा है?

नरेश बेदी का कहना है कि इस बढ़ते संघर्ष के लिए सबसे बड़ी जिम्मेदारी इंसानों की है। हमारी बढ़ती आवश्यकताओं और पर्यावरण पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभावों ने जानवरों के प्राकृतिक आवास को बुरी तरह प्रभावित किया है। जब जंगल काटे जाते हैं, खनन होता है और ट्रक चलते हैं, तो इससे जानवरों के मूवमेंट पर बुरा असर पड़ता है। ट्रक के टकराने से कई जानवर मर जाते हैं और वे सड़कों को पार नहीं कर पाते हैं।

PETA इंडिया की राय

PETA इंडिया के मैनेजर ऑफ इमरजेंसी रिस्पांस टीम, दीपक चौधरी, बहराइच की घटनाओं की गंभीरता पर ध्यान दिलाते हैं। उनका कहना है कि पुलिस को इस मामले में गहराई से जांच करनी चाहिए, क्योंकि यह घटनाएं जंगली जानवरों के प्राकृतिक आवास में बढ़ते मानव अतिक्रमण के खतरनाक नतीजों को दर्शाती हैं। वन्यजीवों के पास रहने और अपने जीवन को शांतिपूर्ण तरीके से व्यतीत करने के लिए जगह नहीं बची है। इसलिए नगर नियोजन में वन संरक्षण को शामिल करना अत्यंत आवश्यक है।

जंगलों की कटाई के कारण

दुनिया भर में जंगलों की कटाई की मुख्य वजह मांस, अंडे और डेयरी के लिए पशुओं को पालने के लिए ज़मीन की जरूरत है। इन फसलों के लिए नई ज़मीन की आवश्यकता होती है। धरती का 45 फीसदी हिस्सा मांस, अंडे और डेयरी के लिए उपयोग किया जाता है, जिससे जंगल कट रहे हैं और जानवरों को उनके प्राकृतिक आवास से बेदखल किया जा रहा है। इससे जानवरों की विलुप्त होने का खतरा भी बढ़ जाता है।

जानवर इंसान से डरते हैं?

वन्यजीव विशेषज्ञ फैयाज खुदसर का कहना है कि जानवरों की संख्या बढ़ने के साथ वे नई जगहों की तलाश में निकलते हैं। इसके लिए वाइल्डलाइफ कॉरिडोर की आवश्यकता होती है, लेकिन इन कॉरिडोर में शहर बसे हुए हैं। इसी वजह से शहरों के आसपास जानवर नजर आने लगते हैं। जानवर इंसानों से डरते हैं और जब उनकी संख्या बढ़ती है, तो वे अपना आशियाना बनाने के लिए इंसानी बस्तियों की ओर बढ़ते हैं। सुरेंद्र मेहरा के अनुसार, जानवरों को इंसानों से कई गुना अधिक डर लगता है। जब किसी क्षेत्र में जानवर देखा जाता है, तो लोग भीड़ इकट्ठा कर लेते हैं, जिससे जानवर के आत्म-संरक्षण की प्रवृत्ति जागृत होती है और वह हमला कर देता है।

इन सभी बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए, यह स्पष्ट होता है कि जानवरों और इंसानों के बीच बढ़ते संघर्ष के लिए हम सभी जिम्मेदार हैं। जंगलों की कटाई, बढ़ती जनसंख्या और शहरीकरण ने जानवरों के प्राकृतिक आवासों को सीमित कर दिया है, जिसके परिणामस्वरूप जानवरों को इंसानी बस्तियों की ओर बढ़ना पड़ रहा है। यह स्थिति केवल हमारे पर्यावरणीय तंत्र को ही प्रभावित नहीं कर रही, बल्कि जानवरों और इंसानों के बीच बढ़ते संघर्ष का भी मुख्य कारण बन रही है। इस समस्या को सुलझाने के लिए हमें न केवल वन संरक्षण पर ध्यान देना होगा, बल्कि अपनी लापरवाहियों को भी सुधारना होगा ताकि भविष्य में ऐसे संघर्षों को कम किया जा सके।

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