
योगी राज के उपचुनाव बीजेपी को झटका, सपा को मिली संजीवनी क्या बदलेंगे राजनीतिक समीकरण? जानें पिछले चुनावों का हाल!
उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक नई हलचल देखी जा रही है, क्योंकि राज्य की 9 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव का ऐलान किया गया है। इसे 2027 के विधानसभा चुनावों का सेमीफाइनल माना जा रहा है। प्रमुख राजनीतिक दल, जैसे बीजेपी, सपा और बसपा, अपनी-अपनी रणनीतियों के साथ इस चुनावी रण में उतरने के लिए तैयार हैं। सपा ने 6 सीटों पर अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है, जबकि बसपा ने सभी 9 सीटों पर अपने प्रत्याशियों का ऐलान किया है। बीजेपी ने मीरापुर सीट छोड़कर बाकी 8 सीटों पर चुनाव लड़ने की योजना बनाई है।
उपचुनाव की सीटें और वोटिंग की तारीख
इन 9 विधानसभा सीटों में मीरापुर, मझवां, गाजियाबाद, खैर, कुंदरकी, करहल, सीसामऊ, फूलपुर और कटेहरी शामिल हैं। वोटिंग की तारीख 13 नवंबर तय की गई है। मिल्कीपुर सीट पर अभी चुनाव की घोषणा नहीं की गई है। बीजेपी अपने प्रभाव को बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रही है, जबकि सपा और बसपा अपने गढ़ों को मजबूत करने के लिए पूरी कोशिश कर रही हैं।
बीजेपी का ट्रैक रिकॉर्ड
योगी आदित्यनाथ की सरकार के कार्यकाल में हुए पिछले उपचुनावों का ट्रैक रिकॉर्ड बीजेपी के लिए बहुत अच्छा नहीं रहा है। 2017 से 2022 तक, बीजेपी ने विधानसभा और लोकसभा की 23 सीटों पर चुनाव लड़ा। इनमें से 17 सीटें बीजेपी ने जीतीं, जबकि सहयोगी दल अपना दल (एस) ने एक सीट जीती और सपा ने 5 सीटों पर कब्जा जमाया। इस प्रकार, बीजेपी की सीटों की संख्या 19 से घटकर 17 हो गई, जिससे उसे दो सीटों का नुकसान उठाना पड़ा।2018 में, गोरखपुर और फूलपुर की लोकसभा सीटों पर उपचुनाव हुए, जहां बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा। ये दोनों सीटें पहले बीजेपी के कब्जे में थीं। उपचुनाव में सपा ने इन सीटों पर जीत दर्ज की थी, जो उसकी बढ़ती ताकत का संकेत थी। इसी प्रकार, 2019 में कानपुर और लखनऊ कैंट विधानसभा सीटों पर भी बीजेपी ने जीत हासिल की थी, लेकिन अन्य कई सीटें हार गईं।
सपा और बसपा की रणनीति
सपा ने उपचुनावों के लिए अपनी रणनीति को लेकर पूरी तैयारी कर ली है। उसने 6 सीटों पर अपने उम्मीदवारों का ऐलान किया है, जिसमें अनुभवी नेता और युवा चेहरे दोनों शामिल हैं। सपा की कोशिश है कि वह अपने पुराने गढ़ों को फिर से स्थापित कर सके और नए क्षेत्रों में भी अपनी उपस्थिति बढ़ा सके।वहीं, बसपा ने सभी 9 सीटों पर अपने प्रत्याशियों की घोषणा की है। मायावती की पार्टी, जो पिछले कुछ समय से सत्ता के प्रभाव से बाहर रही है, अब अपने खोए हुए वोट बैंक को फिर से हासिल करने की कोशिश कर रही है। बसपा की रणनीति अब जातिगत समीकरणों पर आधारित है, जिससे वह सवर्ण और पिछड़े वोटरों को एकजुट कर सके।
राजनीतिक माहौल
इस उपचुनाव का राजनीतिक माहौल भी बेहद दिलचस्प है। बीजेपी, जो सत्ता में रहते हुए अपनी छवि को बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रही है, को अपने पिछले ट्रैक रिकॉर्ड से निपटना होगा। वहीं, सपा और बसपा दोनों के लिए यह एक सुनहरा अवसर है, जिससे वे अपनी ताकत को फिर से स्थापित कर सकें।सपा के नेता कहते हैं कि पिछले चुनावों में हार के बाद, पार्टी ने अपनी रणनीतियों में बदलाव किया है और अब वे अपने आधार वोटरों के बीच वापसी की कोशिश कर रहे हैं। उनका कहना है कि कार्यकर्ताओं की मेहनत और जनता की प्रतिक्रियाएं अब बेहतर हो रही हैं।
पिछले उपचुनावों का विश्लेषण
योगी सरकार के पहले कार्यकाल में हुए उपचुनावों की बात करें, तो कई ऐसे अवसर आए जब बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा। 2018 में कैराना लोकसभा और नूरपुर विधानसभा सीट पर उपचुनाव हुए थे, जहां बीजेपी को हार मिली। कैराना में बीजेपी आरएलडी से हार गई, और नूरपुर सीट पर सपा ने जीत दर्ज की।इसके बाद, 2019 में हमीरपुर विधानसभा सीट पर बीजेपी ने जीत हासिल की, लेकिन प्रतापगढ़ में अपना दल ने जीत दर्ज की। 2020 में नवगांव सादात, बुलंदशहर, टुंडला, बंगरामऊ, घटमपुर, देवरिया और मल्हानी विधानसभा सीट पर उपचुनाव हुए, जिसमें बीजेपी ने अधिकांश सीटों पर जीत हासिल की। हालांकि, मल्हानी सीट सपा ने जीत ली, जिससे यह संकेत मिलता है कि सपा की स्थिति में सुधार हो रहा है।
योगी सरकार का दूसरा कार्यकाल
योगी सरकार के दूसरे कार्यकाल में 2022 से 2024 तक, यूपी की 7 विधानसभा और 3 लोकसभा सीटों पर उपचुनाव हुए। इन 10 सीटों में से चार पर बीजेपी और दो पर अपना दल ने जीत दर्ज की है, जबकि सपा ने 3 और आरएलडी ने 1 सीट पर विजय प्राप्त की।आरएलडी ने सपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा, लेकिन अब आरएलडी ने बीजेपी के साथ हाथ मिला लिया है। यह राजनीतिक समीकरण उपचुनाव में काफी महत्वपूर्ण साबित हो सकता है, क्योंकि आरएलडी का प्रभाव विशेषकर पश्चिमी यूपी में है।
सपा की वापसी की उम्मीद
2022 के विधानसभा चुनाव के बाद, रामपुर और आजमगढ़ लोकसभा सीट पर उपचुनाव हुए थे, जहां सपा को हार का सामना करना पड़ा। हालांकि, खतौली और गोला गोकरननाथ विधानसभा सीट पर सपा ने अपनी स्थिति को मजबूत किया। मैनपुरी लोकसभा सीट पर भी सपा ने जीत हासिल की।सपा का मानना है कि अगर वह अपनी संगठनात्मक क्षमता को मजबूत कर सके, तो वह इन उपचुनावों में अच्छा प्रदर्शन कर सकती है। पार्टी के नेता जनता के बीच जाकर उनकी समस्याओं को समझने और उनके समाधान के लिए काम कर रहे हैं।
बीजेपी का फोकस
बीजेपी की कोशिश होगी कि वह अपनी खोई हुई सीटों को वापस पाकर अपनी स्थिति को मजबूत करे। इसके लिए पार्टी ने कई जमीनी कार्यकर्ताओं को सक्रिय किया है, जो मतदाताओं के बीच जाकर उन्हें अपनी नीतियों और योजनाओं के बारे में जानकारी देंगे।बीजेपी का मानना है कि योगी सरकार के विकास कार्यों और योजनाओं के आधार पर वे लोगों का समर्थन हासिल कर सकते हैं। पार्टी का फोकस अब स्थानीय मुद्दों पर भी है, जिससे वह मतदाताओं के बीच अपनी प्रासंगिकता बनाए रख सके।
उपचुनावों की तैयारी में सभी राजनीतिक दलों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। यह चुनाव न केवल स्थानीय राजनीति पर असर डालेगा, बल्कि 2027 के विधानसभा चुनावों की दिशा भी तय करेगा। बीजेपी, सपा और बसपा सभी अपने-अपने गढ़ों को बनाए रखने और विस्तार करने की कोशिश कर रहे हैं। 13 नवंबर को होने वाली वोटिंग के परिणाम निश्चित रूप से राज्य की राजनीतिक धारा को प्रभावित करेंगे।
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