प्रशांत किशोर ने गांधी की तरह बेल न लेकर बीपीएससी आंदोलन को राजनीतिक रूप से मजबूत किया
बिहार की राजनीति में इन दिनों एक नया नाम चर्चा में है, और वह नाम है प्रशांत किशोर। जनसुराज पार्टी के संस्थापक और चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने हाल ही में एक ऐसा कदम उठाया है, जिसने न केवल बिहार, बल्कि पूरे देश के राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है। उन्होंने जेल जाने के बाद बेल लेने से मना कर दिया और अपने इस फैसले से एक ऐतिहासिक संदेश दिया है। यह फैसला महात्मा गांधी के सिद्धांतों से प्रेरित है, जिन्होंने चंपारण सत्याग्रह के दौरान कोर्ट में बेल लेने से इंकार कर दिया था। गांधीजी के इस कदम ने उन्हें एक राष्ट्रीय नेता बना दिया था। अब प्रशांत किशोर ने भी गांधीजी की राह पर चलते हुए संघर्ष करने का फैसला किया है, जो उनके राजनीतिक भविष्य को न केवल नई दिशा दे सकता है, बल्कि बिहार की राजनीति में भी एक बड़ा बदलाव ला सकता है।प्रशांत किशोर का यह फैसला बीपीएससी (बिहार लोक सेवा आयोग) परीक्षा को लेकर छात्रों के आंदोलन के संदर्भ में आया। छात्रों ने पेपर लीक और परीक्षा में गड़बड़ी की वजह से बिहार सरकार से बीपीएससी परीक्षा को रद्द करने की मांग की थी। छात्रों का यह आंदोलन धीरे-धीरे जोर पकड़ने लगा और कई प्रमुख नेता इसे हाईजैक करने की कोशिश करने लगे। इस बीच प्रशांत किशोर ने छात्रों के आंदोलन का समर्थन किया और एक तरह से उसे राष्ट्रीय स्तर पर लाने की कोशिश की।
कुछ दिन पहले, उन्होंने "छात्र संसद" का आयोजन किया, जिसमें बड़ी संख्या में छात्रों ने भाग लिया। छात्र संसद के बाद, छात्र मुख्यमंत्री आवास का घेराव करने निकले थे, लेकिन पुलिस ने उन पर लाठीचार्ज किया और वाटर कैनन का इस्तेमाल किया। इस कार्रवाई ने आंदोलन को और हवा दी और प्रशांत किशोर ने इसे लेकर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की। उन्होंने इसे छात्रों के आंदोलन को कुचलने की कोशिश करार दिया। साथ ही, उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार ने जानबूझकर छात्रों को हिंसा की ओर धकेला, ताकि आंदोलन को कमजोर किया जा सके।जब पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार किया, तो प्रशांत किशोर पर एक नई तरह की राजनीति करने का आरोप लगने लगा। बिहार के प्रमुख विपक्षी नेता तेजस्वी यादव और पप्पू यादव ने उन पर आंदोलन को हाईजैक करने का आरोप लगाया। तेजस्वी यादव ने कहा कि प्रशांत किशोर ने पहले छात्रों को भड़काया और जब लाठीचार्ज हुआ तो वे मौके से भाग गए। पप्पू यादव ने भी कहा कि प्रशांत किशोर का अनशन सिर्फ एक "नौटंकी" है, जो मीडिया को आकर्षित करने के लिए किया गया है।
इन आलोचनाओं के बावजूद प्रशांत किशोर ने अपनी रणनीति को स्पष्ट किया। उन्होंने कहा कि उनका उद्देश्य किसी व्यक्तिगत लाभ के लिए आंदोलन में शामिल होना नहीं था, बल्कि उनका उद्देश्य बिहार की शिक्षा व्यवस्था में सुधार और छात्रों के अधिकारों की रक्षा करना था। उनके अनुसार, उन्होंने छात्रों का समर्थन किया क्योंकि यह उनका कर्तव्य था। उनका यह बयान बिहार की राजनीति में उनके प्रति गहरी सम्मान की भावना को पैदा कर रहा था, क्योंकि अब उनकी छवि एक संघर्षशील नेता के रूप में स्थापित हो रही थी। गिरफ्तारी के बाद प्रशांत किशोर ने यह साफ किया कि उन्होंने बेल से मना किया क्योंकि उन्होंने गांधीजी की राह पर चलने का संकल्प लिया था। गांधीजी ने चंपारण सत्याग्रह के दौरान कोर्ट में बेल लेने से इंकार कर दिया था, और उसी तरह उन्होंने भी आंदोलन के उद्देश्य को सर्वोपरि रखते हुए बेल लेने से मना कर दिया। उनका यह निर्णय न केवल उनकी राजनीतिक निष्ठा को दिखाता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि वह किसी भी कीमत पर अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं करेंगे।
प्रशांत किशोर का यह कदम सिर्फ बिहार की राजनीति में ही नहीं, बल्कि देश की राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ लाने वाला साबित हो सकता है। गांधीजी की राह पर चलते हुए उन्होंने यह साबित किया कि राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं होता, और अगर उद्देश्य सही है तो संघर्ष के रास्ते पर कोई भी बलिदान स्वीकार किया जा सकता है। उनके इस कदम ने यह साबित किया कि आज भी ऐसे नेता मौजूद हैं जो समाज के लिए संघर्ष करते हैं और अपने सिद्धांतों से कोई समझौता नहीं करते। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि उनका यह कदम बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों पर क्या असर डालता है। बिहार में अगले कुछ वर्षों में विधानसभा चुनाव होने हैं और प्रशांत किशोर का यह कदम उन्हें एक प्रमुख नेता के रूप में स्थापित कर सकता है। इसके साथ ही, उनके इस कदम ने तेजस्वी यादव और पप्पू यादव जैसे नेताओं को एक नई चुनौती दी है, क्योंकि दोनों नेता अब समझ रहे हैं कि प्रशांत किशोर ने राजनीतिक मैदान पर उन्हें पछाड़ दिया है।
यहां पर यह भी महत्वपूर्ण है कि प्रशांत किशोर का यह संघर्ष सिर्फ राजनीतिक नहीं, बल्कि सामाजिक भी है। बिहार के छात्र लंबे समय से शिक्षा व्यवस्था में सुधार की मांग कर रहे थे, और प्रशांत किशोर ने इसे अपनी आवाज दी। छात्रों का आंदोलन बिहार की राजनीति में बदलाव की एक और शुरुआत हो सकता है, जैसा कि 1974 में हुआ था। 1974 का छात्र आंदोलन बिहार में बहुत बड़ा आंदोलन बन गया था, जो बाद में संपूर्ण क्रांति का रूप ले लिया। उस समय बिहार में भ्रष्टाचार और कुशासन के खिलाफ छात्रों ने विरोध किया था और बिहार की राजनीति में एक बड़ा बदलाव हुआ था। गांधीजी ने चंपारण सत्याग्रह के दौरान अपने संघर्ष से यह साबित किया था कि अगर उद्देश्य सच्चा हो, तो कोई भी आंदोलन सफलता हासिल कर सकता है। प्रशांत किशोर ने यह सिद्धांत आज के समय में लागू किया है, और उनके द्वारा किया गया यह संघर्ष उन सभी नेताओं के लिए एक उदाहरण बन सकता है जो केवल सत्ता के लिए राजनीति करते हैं। उनका यह कदम छात्रों के आंदोलन को दिशा देने के लिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह साबित करता है कि राजनीति में कभी भी सत्य और न्याय से समझौता नहीं किया जा सकता।
आज के बिहार में छात्र आंदोलन का स्वरूप कुछ अलग है, लेकिन इसका उद्देश्य वही है जो 1974 में था बिहार की राजनीति को भ्रष्टाचार और कुशासन से मुक्ति दिलाना। प्रशांत किशोर ने इस आंदोलन के माध्यम से एक बार फिर से साबित किया कि समाज में बदलाव लाने के लिए संघर्ष जरूरी है। उनका यह कदम उन्हें बिहार की राजनीति में एक मजबूत स्थान दिलाने की दिशा में एक बड़ा कदम हो सकता है।बहरहाल , प्रशांत किशोर का यह कदम बिहार की राजनीति में एक नया मोड़ ला सकता है। उनके इस फैसले ने यह साबित कर दिया है कि अगर नेतृत्व में दम हो, तो किसी भी आंदोलन को सफल बनाया जा सकता है। गांधीजी की राह पर चलने का निर्णय प्रशांत किशोर के लिए एक ऐतिहासिक कदम साबित हो सकता है, जो उन्हें भविष्य में एक मजबूत नेता के रूप में स्थापित कर सकता है। बिहार में राजनीति का अगला अध्याय प्रशांत किशोर के इस फैसले से ही लिखा जाएगा।
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