बिहार चुनाव 2025: भारतीय जनता पार्टी का ‘घुसपैठिया’ दांव कितना रंग लाएगा?
बिहार की सियासी सरजमीं पर 2025 के विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। अक्टूबर-नवंबर में होने वाली इस रणभूमि में भारतीय जनता पार्टी ने ‘घुसपैठिया वोटर’ का पुराना दांव फिर से चला है। यह मुद्दा ऐसा है, जो सीमांचल की गलियों से लेकर दिल्ली के सियासी गलियारों तक हलचल मचा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले से इसे राष्ट्रीय मंच दिया और हाल ही में गया की रैली में दोहराया, “घुसपैठिए देश की जनसांख्यिकी बदल रहे हैं, हम इन्हें बाहर निकालेंगे।” केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी साफ कहा, “घुसपैठिए वोट नहीं डाल सकते।” मगर विपक्ष इसे ‘वोट चोरी’ की साजिश बता रहा है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी और राष्ट्रीय जनता दल के तेजस्वी यादव सड़कों पर उतरकर जनता को जगा रहे हैं। सवाल यह है कि क्या भारतीय जनता पार्टी का यह दांव सत्ता की राह आसान करेगा, या बिहार की समझदार जनता इसे नकार देगी? आइए, दैनिक जागरण की शैली में इस मुद्दे की गहराई में उतरकर देखें कि यह रणनीति कितना रंग लाएगी।
सीमांचल में घुसपैठ का शोर, हिंदू वोटों पर नजर
बिहार में चुनावी जंग का रंग अनोखा होता है। यहां जाति का गणित, विकास की बात और क्षेत्रीय अस्मिता वोटरों के दिल-दिमाग पर छाई रहती है। इस बार भारतीय जनता पार्टी ने ‘घुसपैठिया वोटर’ को हथियार बनाया है। पार्टी का दावा है कि बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठिए सीमांचल के किशनगंज, अररिया, पूर्णिया और कटिहार जैसे जिलों में बस गए हैं, जो न सिर्फ जनसांख्यिकी बदल रहे हैं, बल्कि रोजगार और सुरक्षा के लिए खतरा बन रहे हैं। इन इलाकों में मुस्लिम आबादी 40-50 फीसदी है, और भारतीय जनता पार्टी इसे घुसपैठ से जोड़कर हिंदू वोटरों में असुरक्षा की भावना जगाकर उन्हें एकजुट करना चाहती है। इसके लिए निर्वाचन आयोग ने विशेष गहन पुनरीक्षण शुरू किया है, जिसमें 2003 के बाद जुड़े मतदाताओं को अपनी नागरिकता साबित करनी होगी। भारतीय जनता पार्टी के सांसद मनोज तिवारी ने राहुल गांधी पर तंज कसा कि वे घुसपैठियों को वोटर बनाने की साजिश रच रहे हैं। गया में पीएम मोदी ने 13 हजार करोड़ की सड़क, बिजली और पर्यटन योजनाओं की सौगात दी और विपक्ष पर निशाना साधा कि वे घुसपैठियों को बचाने में जुटे हैं। यह रणनीति हिंदुत्व और राष्ट्रीय सुरक्षा का मिश्रण है, जो सीमांचल की 24 सीटों पर फायदा दिला सकती है।
पुराना दांव, नया रंग: रणनीति की गहराई
यह दांव भारतीय जनता पार्टी की पुरानी किताब से निकला है। 2021 में पश्चिम बंगाल और 2024 में झारखंड चुनावों में भी पार्टी ने घुसपैठ को मुद्दा बनाया, मगर दोनों जगह नाकामी मिली। बंगाल में ममता बनर्जी ने इसे धार्मिक ध्रुवीकरण की साजिश बताकर पलट दिया, और झारखंड में हेमंत सोरेन ने आदिवासी वोटों के दम पर बाजी मारी। फिर भी बिहार में इसे आजमाने की वजह साफ है। 2024 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को बिहार में कम सीटें मिलीं। नीतीश कुमार के साथ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार तो है, लेकिन विधानसभा में मजबूत बहुमत चाहिए। गया की रैली में दो राष्ट्रीय जनता दल विधायकों- बिभा देवी और प्रकाश वीर का मंच पर होना भारतीय जनता पार्टी की ताकत और राष्ट्रीय जनता दल की कमजोरी का सबूत है। गहरा विश्लेषण बताता है कि भारतीय जनता पार्टी अब गरीब वोटरों पर ज्यादा फोकस कर रही है। 2020 के चुनावों में कम आय वाले जिलों जैसे शेओहर, सीतामढ़ी में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने 70 फीसदी सीटें जीतीं, जबकि अमीर जिलों जैसे पटना, भागलपुर में इंडिया गठबंधन हावी रहा। राष्ट्रीय स्तर पर गरीब वोटरों से भारतीय जनता पार्टी को 37 फीसदी समर्थन मिला, जो 2014 के 24 फीसदी से बढ़ा है। यह बदलाव ‘लाभार्थी योजनाओं’ और सामाजिक अभियानों से जुड़ा है, जो जाति और आर्थिक मुद्दों को जोड़कर वोटरों को लुभा रहा है।
विपक्ष का पलटवार: ‘वोट चोरी’ का इल्जाम
विपक्ष इस दांव को ‘वोट चोरी’ की साजिश बता रहा है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी और राष्ट्रीय जनता दल के तेजस्वी यादव ‘वोटर अधिकार यात्रा’ निकालकर जनता को जगा रहे हैं। राहुल ने कहा, “विशेष गहन पुनरीक्षण के जरिए लाखों वोटरों को हटाया जा रहा है, यह लोकतंत्र पर हमला है।” उन्होंने निर्वाचन आयोग पर सवाल उठाए और कहा कि वोट चुराने वाले सत्ता में नहीं रह सकते। तेजस्वी ने और तीखा हमला बोला, कहा कि 2003 के बाद जुड़े 1.5 करोड़ वोटरों को परेशान किया जा रहा है, जबकि घुसपैठिए न के बराबर हैं। विपक्ष का आरोप है कि यह प्रक्रिया गरीबों, दलितों और मुसलमानों को निशाना बना रही है। वॉशिंगटन पोस्ट ने इसे लाखों लोगों को मताधिकार से वंचित करने की कोशिश बताया, तो फ्रांस 24 ने कहा कि दस्तावेजों की कमी से लोग डर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट में यह मामला पहुंच चुका है, और बिहार विधानसभा में विपक्ष ने खूब हंगामा किया। तेजस्वी ने तो चुनाव बहिष्कार की धमकी तक दे डाली, जिसे भारतीय जनता पार्टी ने उनकी घबराहट करार दिया।
निर्वाचन आयोग की सफाई, मगर सवाल बरकरार
निर्वाचन आयोग ने विशेष गहन पुनरीक्षण को नियमित प्रक्रिया बताया है। आयोग का कहना है कि यह मतदाता सूची की सफाई है, और दलों को गहराई से सोचना चाहिए। 2003 की तुलना में 2025 में नागरिकता जांच जोड़ी गई है, और समयसीमा कम की गई है। आयोग ने बताया कि 7.24 करोड़ फॉर्म जमा हुए, जो जनता की बड़ी भागीदारी दिखाता है। मगर बीबीसी की एक रिपोर्ट में कहा गया कि मतदाता सूची में अब भी मृतक और गलत फोटो हैं। एडीआर जैसी संस्थाएं सवाल उठा रही हैं कि यह सफाई है या साजिश? आयोग रविवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहा है, ताकि विवाद शांत हो। गहरा विश्लेषण कहता है कि अगर यह प्रक्रिया सही साबित हुई, तो भारतीय जनता पार्टी को फायदा होगा, वरना विपक्ष को बड़ा हथियार मिलेगा।
दांव कामयाब होगा या उल्टा पड़ेगा?
क्या भारतीय जनता पार्टी का यह दांव कामयाब होगा? बिहार की सियासत की नब्ज टटोलें, तो जवाब जटिल है। मनीकंट्रोल का ताजा सर्वे राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को बहुमत दे रहा है, मगर तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री पद की रेस में आगे हैं। भारतीय जनता पार्टी को लोकसभा में गरीब वोटरों से 37 फीसदी समर्थन मिला, जो उसकी बढ़ती पैठ दिखाता है। प्रशांत किशोर का कहना है कि घुसपैठ का मुद्दा सीमांचल में हिंदू वोटरों को जोड़ सकता है। मगर बंगाल और झारखंड का इतिहास चेतावनी देता है कि यह मुद्दा ज्यादा असर नहीं डालता। बिहार में जाति सर्वे, आरक्षण और बेरोजगारी जैसे मुद्दे हावी हैं। नीतीश कुमार की जनता दल यूनाइटेड इस मुद्दे पर चुप है, क्योंकि उनका वोट बैंक अति पिछड़ा वर्ग और मुसलमान हैं। अगर गठबंधन में फूट पड़ी, तो भारतीय जनता पार्टी की राह मुश्किल हो सकती है। तेजस्वी को ‘मौलाना’ कहकर भारतीय जनता पार्टी का हमला उल्टा पड़ सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि 2025 का चुनाव जाति, ध्रुवीकरण और तीसरे विकल्प पर टिका होगा। प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी नया रंग ला सकती है।
विकास का दम, मगर जोखिम भी
भारतीय जनता पार्टी ने विकास को भी रणनीति का हिस्सा बनाया है। गया में सड़क, बिजली और पर्यटन योजनाओं की घोषणा हुई। मगर अगर घुसपैठ का मुद्दा ज्यादा धार्मिक रंग लेगा, तो मुस्लिम वोट इंडिया गठबंधन की ओर जा सकते हैं। अगर विशेष गहन पुनरीक्षण में गड़बड़ियां साबित हुईं, तो जनता भारतीय जनता पार्टी को साजिशकर्ता मानेगी। अंतरराष्ट्रीय मीडिया की नजर भी इस पर है, जो भारत की छवि को प्रभावित कर रहा है।
जनता का फैसला क्या होगा?
बिहार की जनता समझदार है। वह रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य चाहती है। घुसपैठ एक मुद्दा हो सकता है, मगर क्या यह वोटों का आधार बनेगा? भारतीय जनता पार्टी का यह दांव जोखिम भरा है। अगर हिंदू एकता और विकास का तालमेल बैठा, तो सत्ता की राह आसान होगी। वरना, विपक्ष की एकजुटता और जाति गणित भारी पड़ेगा। जनता का फैसला ही बताएगा कि यह दांव हिट है या मिस।
0 टिप्पणियाँ