लालू परिवार में भाई-भाई की जंग तेज प्रताप की पीली टोपी ने तेजस्वी की सत्ता को चुनौती दी

लालू परिवार में भाई-भाई की जंग तेज प्रताप की पीली टोपी ने तेजस्वी की सत्ता को चुनौती दी

लालू परिवार में भाई-भाई की जंग तेज प्रताप की पीली टोपी ने तेजस्वी की सत्ता को चुनौती दी

ग्लोबल हिंदी न्यूज़

बिहार की सियासत इन दिनों एक नए तूफान की चपेट में है। लालू प्रसाद यादव का परिवार, जो कभी बिहार की राजनीति का पर्याय माना जाता था, आज दो भाइयों तेज प्रताप यादव और तेजस्वी यादव के बीच की खुली जंग का अखाड़ा बन चुका है। तेज प्रताप, जो अब तक लालू के बड़े बेटे और तेजस्वी के भाई की छवि में सिमटे थे, अब अपनी अलग पहचान बनाने के लिए बेकरार हैं। पीली टोपी, भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ा उनका अंदाज और आक्रामक तेवर न केवल उनकी सियासी महत्वाकांक्षा को जाहिर करते हैं, बल्कि बिहार की सियासत में एक नया रंग भी भर रहे हैं। लेकिन यह राह इतनी आसान नहीं। परिवार और पार्टी से बेदखली की मार झेल रहे तेज प्रताप अब अपने अकड़ भरे अंदाज में न केवल तेजस्वी को चुनौती दे रहे हैं, बल्कि बिहार की जनता के बीच अपनी जमीन मजबूत करने की जिद ठान चुके हैं।

तेज प्रताप का नया अवतार: पीली टोपी और श्रीकृष्ण की छवि

तेज प्रताप यादव अब वह शख्स नहीं रहे, जो अपने पिता लालू प्रसाद यादव की छत्रछाया में सियासत सीखते थे। मई 2025 में लालू द्वारा पार्टी और परिवार से निकाले जाने के बाद तेज प्रताप ने खामोशी तो अपनाई थी, लेकिन अब वह उस खोल से बाहर निकल चुके हैं। उनकी पीली टोपी अब उनकी सियासी पहचान का प्रतीक बन चुकी है। वह इसे भगवान श्रीकृष्ण से जोड़ते हैं और इसे अपनी ताकत का परिचायक मानते हैं। उनकी सभाओं में वह बांसुरी बजाते हैं, श्रीकृष्ण की तरह जनता को लुभाते हैं और अपने विरोधियों पर तीखे तंज कसते हैं। खासकर जन सुराज पार्टी के प्रशांत किशोर और उत्तर प्रदेश के नेता ओम प्रकाश राजभर उनके निशाने पर हैं, जो पीले रंग का गमछा इस्तेमाल करते हैं।तेज प्रताप का कहना है, “ये पीला रंग हमारे भगवान श्रीकृष्ण का है। कोई बहरूपिया या व्यापारी इसे अपनाकर जनता को गुमराह नहीं कर सकता।” यह बयान उनकी आक्रामकता और आत्मविश्वास को दर्शाता है। वह न केवल अपनी छवि को एक धार्मिक और सांस्कृतिक प्रतीक के तौर पर पेश कर रहे हैं, बल्कि अपने विरोधियों को खुली चुनौती भी दे रहे हैं। उनकी सभाओं में उमड़ने वाली भीड़ इस बात का सबूत है कि वह जनता के बीच अपनी पैठ बना रहे हैं। खासकर ऐसे समय में, जब वह परिवार और पार्टी से अलग-थलग हैं, यह भीड़ उनकी ताकत और हौसले को दर्शाती है।

तेजस्वी पर हमला: ‘जो अपनों का न हुआ, वो जनता का क्या होगा?’

तेज प्रताप और तेजस्वी के बीच की तल्खी अब किसी से छिपी नहीं है। पहले वह तेजस्वी को अर्जुन और खुद को श्रीकृष्ण बताते थे, लेकिन अब वह इस रिश्ते को भूल चुके हैं। तेजस्वी का नाम सुनते ही वह भड़क उठते हैं। हाल ही में जहानाबाद के घोसी में एक सभा के दौरान जब एक समर्थक ने ‘अबकी बार तेजस्वी सरकार’ का नारा लगाया, तो तेज प्रताप का गुस्सा फूट पड़ा। उन्होंने समर्थक को डांटते हुए कहा, “फालतू बात मत करो। जनता का सरकार आएगा, किसी व्यक्ति-विशेष का नहीं। जो घमंड करेगा, वो जल्दी गिरेगा।” यह बयान साफ तौर पर तेजस्वी पर निशाना था।तेज प्रताप की यह अकड़ और बेबाकी उनकी नई सियासी रणनीति का हिस्सा है। वह बार-बार कहते हैं कि उन्हें सत्ता का लालच नहीं है, उनका मकसद केवल जनता की सेवा है। रामायण और गीता का हवाला देते हुए वह कहते हैं, “भगवान राम को भी वनवास भेजा गया था, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। मैं भी चुप बैठने वाला नहीं हूँ।” वह यह भी दावा करते हैं कि उनके खिलाफ साजिश रची गई, लेकिन वह जनता के बीच रहकर अपनी लड़ाई लड़ेंगे। उनका यह बयान, “जो अपनों का न हुआ, वो सूबे की जनता का क्या होगा?” तेजस्वी के लिए एक खुला हमला है।

परिवार में बंटवारा: रक्षाबंधन पर खुली सियासी जंग

लालू परिवार में यह बंटवारा केवल सियासी नहीं, बल्कि भावनात्मक भी है। रक्षाबंधन के मौके पर यह साफ हो गया, जब तेज प्रताप को उनकी सभी बहनों ने राखी नहीं बांधी। जिन बहनों का सियासत से लेना-देना नहीं है, केवल वही तेज प्रताप के साथ खड़ी दिखीं। वहीं, मीसा भारती और रोहिणी आचार्या जैसी बहनें, जो राजनीति में सक्रिय हैं, तेजस्वी के साथ हैं। तेज प्रताप ने सोशल मीडिया पर खुलकर बताया कि किस-किस बहन ने उन्हें राखी बांधी और किसने नहीं। यह पारिवारिक विभाजन आरजेडी के भीतर भी साफ दिखता है।पार्टी के कई नेता और कार्यकर्ता, खासकर वे जो विधानसभा टिकट के दावेदार हैं, तेज प्रताप के संपर्क में हैं। बिहार की सियासत पर नजर रखने वाले जानकार बताते हैं कि अगर इन नेताओं को आरजेडी से टिकट नहीं मिला, तो वे तेज प्रताप के साथ किसी नए बैनर तले चुनाव लड़ सकते हैं। यह स्थिति तेजस्वी के लिए बड़ा खतरा है, क्योंकि इससे आरजेडी का कोर वोट बैंक यादव और मुस्लिम मतदाता बंट सकता है।

तेज प्रताप की जिद: ‘महुआ से लडूंगा, राघोपुर भी संभाल लूंगा’

तेज प्रताप ने साफ कर दिया है कि वह 2025 के विधानसभा चुनाव में महुआ से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर मैदान में उतरेंगे। इतना ही नहीं, अगर तेजस्वी राघोपुर से चुनाव लड़ते हैं, तो वह वहां भी अपनी किस्मत आजमा सकते हैं। जब पत्रकारों ने उनसे पूछा कि महुआ में तो आरजेडी का उम्मीदवार भी होगा, तो वह भड़क उठे। उन्होंने कहा, “मैं तेजस्वी के खिलाफ भी लड़ने को तैयार हूँ। मुझे कोई परहेज नहीं है।” यह बयान उनकी जिद और अकड़ को साफ दर्शाता है।तेज प्रताप की यह सक्रियता तेजस्वी के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती है। बिहार में यादव और मुस्लिम वोटों का बंटवारा आरजेडी के लिए घातक हो सकता है। तेजस्वी भले ही अपनी रणनीति के तहत युवाओं और पिछड़े वर्गों को लुभाने के लिए नौकरी और आरक्षण जैसे मुद्दों को उठा रहे हों, लेकिन तेज प्रताप की यह नई सियासी अकड़ उनके लिए सिरदर्द बन सकती है।

बिहार की सियासत में नया मोड़

तेज प्रताप की यह नई सक्रियता बिहार की सियासत को और रोचक बना रही है। उनकी पीली टोपी, श्रीकृष्ण से जुड़ी छवि और आक्रामक बयानबाजी उन्हें एक अलग पहचान दे रही है। लेकिन सवाल यह है कि क्या वह इस नई राह पर अपनी सियासी जमीन मजबूत कर पाएंगे? या फिर यह केवल एक पारिवारिक और सियासी ड्रामा बनकर रह जाएगा?बिहार की सियासत में तेज प्रताप का यह नया अवतार निश्चित तौर पर चर्चा का विषय है। वह न केवल तेजस्वी को चुनौती दे रहे हैं, बल्कि अपनी अलग सियासी पहचान बनाने की जिद में भी डटे हैं। उनकी यह जंग भले ही अभी शुरुआती दौर में हो, लेकिन इसका असर बिहार की सियासत पर गहरा हो सकता है। तेज प्रताप की यह अकड़ और सक्रियता तेजस्वी के लिए नुकसानदेह साबित हो सकती है। अब यह देखना बाकी है कि क्या तेज प्रताप अपनी इस नई राह पर बिहार की जनता का दिल जीत पाएंगे, या फिर यह जंग केवल लालू परिवार की सियासी विरासत को कमजोर करेगी। समय और बिहार की जनता ही इसका फैसला करेगी।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ