सोनिया-प्रियंका ने उठाया फिलिस्तीन का दर्द, भारत की विदेश नीति और दोगलापन पर साधा निशाना
सोनिया गांधी ने हाल ही में एक लेख लिखा, जिसमें उन्होंने फिलिस्तीन के दर्द को दिल से महसूस करते हुए साफ कहा कि उसे इंसाफ मिलना चाहिए। दो-राष्ट्र समाधान, यानी टू-स्टेट सॉल्यूशन, ही इसका रास्ता है। यह बात उन्होंने 'द हिंदू' में 25 सितंबर 2025 को छपे अपने लेख में कही। उनका लहजा वही पुराना कांग्रेस वाला था भावनाओं से भरा, फिलिस्तीन के जख्मों को भारत की आजादी की लड़ाई से जोड़ता हुआ। इससे पहले प्रियंका गांधी भी सोशल मीडिया पर फिलिस्तीन के हक में बोल चुकी हैं। 21 सितंबर को उनके ट्वीट ने हलचल मचा दी, जब उन्होंने पूछा कि जब ऑस्ट्रेलिया, कनाडा जैसे देश फिलिस्तीन को मान्यता दे रहे हैं, तो भारत क्यों चुप है? प्रियंका ने इजरायल के हमलों को 'नरसंहार' तक कह डाला। लेकिन सवाल वही पुराना है जब भारत पर हमला होता है, जब हमारे लोग मरते हैं, तब फिलिस्तीन कहां होता है?पिछले कुछ महीनों की बात करें। अप्रैल 2025 में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में आतंकी हमला हुआ। 22 अप्रैल को बैसरन घास के मैदान में 25 पर्यटक और एक नेपाली नागरिक मारे गए। जांच में साफ हुआ कि हमले के तार पाकिस्तान से जुड़े थे। इसके जवाब में भारत ने 'ऑपरेशन सिंदूर' चलाया। 6-7 मई की रात भारत ने पीओके और पाकिस्तान में नौ आतंकी ठिकानों को तबाह कर दिया। दुनिया के 100 से ज्यादा देशों ने भारत का साथ दिया। इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने पीएम मोदी को मैसेज भेजा'आतंकियों को जहां भी छिपा पाओ, सजा दो। भारत को अपनी सुरक्षा का हक है।' लेकिन फिलिस्तीन? वहां से सिर्फ एक औपचारिक पत्र आया। फिलिस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास ने संवेदना तो जताई, लेकिन पाकिस्तान का नाम लेने की हिम्मत नहीं दिखाई। आतंकवाद पर एक शब्द नहीं। यह चुप्पी दिल में चुभती है।
कांग्रेस का इतिहास देखें तो वह हमेशा फिलिस्तीन के साथ खड़ी रही। जवाहरलाल नेहरू ने 1947 में फिलिस्तीन को मान्यता देने की बात कही थी। 1974 में भारत पहला गैर-अरब देश बना, जिसने पीएलओ को मान्यता दी। इंदिरा गांधी ने 1988 में फिलिस्तीन को स्वतंत्र राष्ट्र का दर्जा देने का समर्थन किया। सोनिया और प्रियंका उसी सोच को आगे ले जा रही हैं। सोनिया जी ने अपने लेख में लिखा कि फिलिस्तीन का मसला सिर्फ जमीन का नहीं, इंसाफ का है। उन्होंने इजरायल की नीतियों पर सवाल उठाए और भारत की चुप्पी को कायरता बताया। लेकिन क्या यह हमदर्दी एकतरफा नहीं? जब 2019 में पुलवामा में 40 जवान शहीद हुए, तब भी फिलिस्तीन ने सिर्फ संवेदना जताई, पाकिस्तान का नाम नहीं लिया।भारत की विदेश नीति का जिक्र करें तो वह दो नावों पर सवार है। 1998 से भारत का साफ स्टैंड है इजरायल और फिलिस्तीन, दोनों का अलग-अलग वजूद होना चाहिए। यानी दो-राष्ट्र समाधान। भारत न तो फिलिस्तीन को पूरी तरह छोड़ता है, न इजरायल को। इजरायल से हमें हथियार, तकनीक और खुफिया जानकारी मिलती है। ऑपरेशन सिंदूर में इजरायली खुफिया मदद ने बड़ा रोल निभाया। दूसरी तरफ, फिलिस्तीन के साथ खड़े रहना मुस्लिम दुनिया में भारत की साख बढ़ाता है। अगर हम सिर्फ इजरायल के साथ जाएं, तो सऊदी, यूएई जैसे देशों में बसे लाखों भारतीय प्रवासियों का रोजगार खतरे में पड़ सकता है। अगर सिर्फ फिलिस्तीन के साथ जाएं, तो रक्षा और तकनीक में पीछे रह जाएंगे।
कांग्रेस और बीजेपी के रुख में फर्क साफ है। कांग्रेस का झुकाव हमेशा फिलिस्तीन की तरफ रहा। सोनिया जी का लेख हो या प्रियंका का ट्वीट, दोनों में वही भावनात्मक लहजा है। प्रियंका ने पिछले साल दिसंबर में संसद में 'फिलिस्तीन आजाद होगा' लिखा बैग लेकर हंगामा खड़ा किया था। बीजेपी ने इसे तुष्टिकरण कहा। दूसरी तरफ, बीजेपी का रुख ज्यादा व्यावहारिक है। पीएम मोदी ने 2017 में इजरायल का दौरा किया। पहली बार कोई भारतीय पीएम वहां गया। इजरायल से रिश्ते नई ऊंचाई पर पहुंचे। लेकिन बीजेपी ने फिलिस्तीन को भी नहीं छोड़ा। सितंबर 2025 में संयुक्त राष्ट्र में भारत ने फिलिस्तीन के पक्ष में वोट दिया। गाजा में मानवीय सहायता भी भेजी। फिर भी, सोनिया जी का लेख सरकार की नीति पर सवाल उठाता है। वे कहती हैं कि भारत को अपनी सभ्यतागत विरासत अहिंसा और न्याय के साथ फिलिस्तीन के लिए और मुखर होना चाहिए।लेकिन असल सवाल वही है क्या फिलिस्तीन हमारी पीड़ा समझता है? जब भारत आतंकवाद से जूझता है, तब उनकी चुप्पी क्यों? पाकिस्तान, जो फिलिस्तीन का पुराना दोस्त है, आतंकियों को पनाह देता है। लेकिन फिलिस्तीन कभी इस पर नहीं बोलता। पहलगाम हमले के बाद पाकिस्तान ने सीजफायर तोड़ा, लेकिन फिलिस्तीन ने इसकी निंदा नहीं की। यह दोहरा रवैया भारत के लोगों को सोचने पर मजबूर करता है। हम सालों से उनके हक की आवाज उठाते हैं, लेकिन जब हमारे जवान मरते हैं, तब उनका मौन क्यों?
सोशल मीडिया पर इस मुद्दे पर बहस छिड़ी है। एक्स पर कुछ लोग सोनिया जी के लेख को सही ठहराते हैं, तो कुछ बांग्लादेश में हिंदुओं की पीड़ा पर कांग्रेस की चुप्पी का जिक्र करते हैं। कोई कहता है कि भारत की विदेश नीति सिर्फ दूसरों के आंसू पोंछने के लिए है। लेकिन सच यह है कि भारत की नीति हमेशा संतुलित रही। नेहरू के दौर से लेकर अब तक, हमने फिलिस्तीन का साथ दिया, लेकिन इजरायल से भी रिश्ते बनाए। मोदी सरकार ने इसे और खुला कर दिया। इजरायल से ड्रोन, मिसाइल और साइबर तकनीक लेते हैं, तो फिलिस्तीन को मानवीय सहायता देते हैं।सोनिया जी का लेख एक तरह से आह्वान है। वे कहती हैं कि भारत को वैश्विक मंच पर नेतृत्व करना चाहिए। जैसे हमने दक्षिण अफ्रीका के अपार्थीड के खिलाफ आवाज उठाई, वैसे ही फिलिस्तीन के लिए भी खड़ा होना चाहिए। लेकिन यह इतना आसान नहीं। फ्रांस, ब्रिटेन जैसे देश भी अब फिलिस्तीन को मान्यता दे रहे हैं। 150 से ज्यादा देश ऐसा कर चुके हैं। भारत अगर इस दिशा में बढ़े, तो वैश्विक साख बढ़ेगी। लेकिन ऑपरेशन सिंदूर जैसी घटनाएं याद दिलाती हैं कि विदेश नीति में भावनाएं और हित दोनों का मेल जरूरी है।फिलिस्तीन का मसला अब सिर्फ जमीन का नहीं, इंसाफ का प्रतीक बन गया है। भारत, जो खुद उपनिवेशवाद का शिकार रहा, इस लड़ाई में बड़ा रोल निभा सकता है। लेकिन इसके लिए पहले हमें अपनी नीति को और साफ करना होगा। दो-राष्ट्र समाधान ही रास्ता है, लेकिन यह तभी कामयाब होगा, जब दोनों तरफ से हमदर्दी हो। भारत ने हमेशा फिलिस्तीन का दर्द समझा, लेकिन क्या वे हमारे जख्मों को समझते हैं? यह सवाल हर भारतीय के मन में है। सोनिया जी का लेख इस बहस को और गहरा करता है। भारत की सभ्यता, जो अहिंसा और न्याय की बात करती है, इस मोड़ पर अपनी परीक्षा दे रही है। क्या हम इसे पास करेंगे? यह वक्त बताएगा।
0 टिप्पणियाँ