मायावती का मास्टरप्लान: 2027 में 2007 को दोहराने की तैयारी, बसपा की वापसी का बिगुल

 उत्तर प्रदेश 2027 विधानसभा चुनाव में मायावती ने बसपा की वापसी की तैयारी तेज कर दी है। कांशीराम रैली में बड़ी भीड़ जुटी, आकाश आनंद को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया। जातीय समीकरण, पारदर्शी टिकट वितरण और दलित-मुस्लिम-बैकवर्ड वोटों पर फोकस से बसपा ने भाजपा-सपा को चुनौती दी। हाथी फिर दहाड़ने को तैयार है।



ग्लोबल हिंदी न्यूज़

उत्तर प्रदेश की राजनीति में 2027 विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। सत्ताधारी भाजपा 2017 की 300 से अधिक सीटों का जादू दोहराने को बेताब है, तो समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव 2022 की 111 सीटों को पार करने का सपना संजोए जनसभाओं में PDA (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) का नारा बुलंद कर रहे हैं। लेकिन इस द्विध्रुवीय जंग के बीच बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती ने एक बार फिर अपनी पुरानी चालाकी भरी रणनीति से मैदान में कूदकर सबको चौंका दिया है। करीब 20 साल बाद 2007 के सोशल इंजीनियरिंग फॉर्मूले को दोहराने का ऐलान करते हुए मायावती ने कांशीराम की पुण्यतिथि पर लखनऊ में आयोजित महारैली को सत्ता की वापसी का संकेत बना दिया। पांच लाख से अधिक की भीड़ ने न सिर्फ विपक्षी दलों के कयासों पर पानी फेर दिया, बल्कि मायावती को पांचवीं बार मुख्यमंत्री पद की कुर्सी तक पहुंचाने का भरोसा भी दिला दिया। यह रैली महज एक स्मृति सभा नहीं थी, बल्कि 2027 के चुनावी समर का शंखनाद थी, जहां मायावती ने जातीय समीकरणों को साधने, उम्मीदवार चयन पर सख्ती और बिना गठबंधन के अकेले लड़ने का खुलासा कर दिया।

कांशीराम स्मारक स्थल पर सुबह से ही नीले झंडों का सैलाब उमड़ पड़ा। पश्चिमी यूपी के मेरठ, सहारनपुर से लेकर पूर्वांचल के आजमगढ़, मछलीशहर तक के बसपा समर्थक ट्रक-ट्रेलरों पर सवार होकर पहुंचे। 'जय भीम, जय मीम' और 'हाथी नहीं गधे चले, हाथी घर में रहेगा' जैसे नारे गूंजते रहे। मंच पर मायावती के अलावा उनके भतीजे आकाश आनंद को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पद पर आधिकारिक तौर पर स्थापित किया गया, जो पार्टी में नई पीढ़ी के नेतृत्व की झलक था। आकाश ने मंच से कहा, 'यह भीड़ प्रमाण है कि 2027 में बहनजी पांचवीं बार मुख्यमंत्री बनेंगी।' मायावती ने तीन घंटे तक भाषण दिया, जो उनकी लंबे अरसे बाद की सबसे लंबी सार्वजनिक उपस्थिति थी। उन्होंने समाजवादी पार्टी और कांग्रेस पर तीखा प्रहार किया। 'सत्ता में रहते PDA याद नहीं आता, कांशीराम जी की जयंती-पुण्यतिथि पर सपा को याद आ जाती है। उन्होंने कांशीराम नगर का नाम बदलकर कासगंज कर दिया, उनके नाम पर बने संस्थानों को तोड़ दिया। कांग्रेस ने भी केंद्र में सत्ता में रहते कांशीराम जी के निधन पर शोक का दिन घोषित नहीं किया। ये दोनों दलित-विरोधी हैं।' मायावती का यह हमला सपा के PDA नारे को सीधा चुनौती देता है, जो दलित वोटों पर टिका है।

रैली की सफलता ने मायावती में नई ऊर्जा भर दी है। रैली के ठीक बाद उन्होंने 16 अक्टूबर को प्रदेश स्तर पर महत्वपूर्ण बैठक बुलाई, जिसमें सभी जिला अध्यक्ष, कोऑर्डिनेटर और बामसेफ के पदाधिकारी शामिल होंगे। सूत्र बताते हैं कि मायावती ने रैली के बाद ही 100 से अधिक गैर-पार्टी लोगों से अलग-अलग बैठकें कीं। इनमें यादव, मुस्लिम, ठाकुर, ब्राह्मण जैसे समुदायों के प्रतिनिधि थे। मायावती ने इनसे फीडबैक लिया कि ये समुदाय क्या चाहते हैं, क्या नाराजगी है। 'इस बार टिकट वितरण में कोई समझौता नहीं होगा। जिताऊ उम्मीदवार ही चुने जाएंगे, चाहे वे कहीं से भी आएं।' यह बयान बसपा के अंदरूनी स्रोतों से आया है। बसपा ने 230 सीटें चिह्नित कर ली हैं, जहां पार्टी ने पहले दो या अधिक बार जीत हासिल की है। इनमें पश्चिमी यूपी की जाटव बहुल सीटें, लखीमपुर खीरी, अंबेडकर नगर, आजमगढ़ और पूर्वांचल की अधिकांश विधानसभाएं शामिल हैं। जानकारों के अनुसार, जहां जाटव वोट 40-42 प्रतिशत हैं, वहां बैकवर्ड, मुस्लिम, ब्राह्मण और ठाकुर वोटों पर फोकस रहेगा। ब्राह्मण चेहरा सतीश चंद्रा मिश्रा को, ठाकुर वोटों के लिए उमा शंकर सिंह को जिम्मेदारी सौंपी गई है।

टिकट वितरण को लेकर बसपा की पुरानी छवि पर भी मायावती ने लगाम कसने का संकेत दिया। अतीत में टिकट बेचने के आरोप लगते रहे, लोकसभा चुनावों में 12-20 करोड़ तक की कीमत की खबरें आईं। लेकिन इस बार फिक्स अमाउंट तय करने और अंतिम समय पर बदलाव न करने की बात हो रही है। कांशीराम युग से चली आ रही यह प्रथा है, लेकिन मायावती इसे पारदर्शी बनाने को बेताब हैं। बामसेफ को फिर से सक्रिय किया गया है, जो पहले टिकट वितरण की निगरानी करती थी। रैली में बामसेफ की भूमिका सराहनीय रही, जिसे मायावती ने 'मेरी तीसरी आंख' कहा। यह बदलाव मायावती के व्यक्तित्व में भी झलकता है। पहले वे मंच पर अकेली बैठती थीं, लेकिन इस बार सात वरिष्ठ नेताओं के साथ रहीं, जिनके नाम लिए। यह सामूहिकता का संदेश था, जो पार्टी के कैडर को मजबूत करेगा।

मायावती की नजरें विरोधी दलों पर भी तनी हैं। वे भाजपा और सपा के उन विधायकों की लिस्ट तैयार कर रही हैं, जिनके टिकट कट सकते हैं। ऐसे नेताओं से संपर्क कर उन्हें बसपा में लाने की योजना है। धनंजय सिंह, अब्बास अंसारी जैसे नामों पर विचार हो रहा है। स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी संध्या मौर्य 2026 तक बसपा जॉइन कर सकती हैं, जिनकी 10 महीने पहले मायावती से मुलाकात हुई। इसी तरह पल्लवी पटेल, संजय निषाद, ओपी राजभर जैसे नेता भी बसपा की ओर झुक सकते हैं। मायावती ने रैली में भाजपा सरकार की कुछ तारीफ भी की। 'सपा ने कांशीराम स्मारक के टिकटों से होने वाली आय दबा ली थी, लेकिन वर्तमान सरकार ने इसे स्मारक के रखरखाव के लिए इस्तेमाल किया। हम आभारी हैं।' यह बयान भाजपा के लिए सकारात्मक संकेत है, लेकिन मायावती ने केंद्र की योजनाओं और ईवीएम पर सवाल उठाकर दूरी भी बनाए रखी। उन्होंने कहा, 'संविधान में बदलाव की कोई साजिश सफल नहीं होगी।'

बिहार चुनाव खत्म होते ही नवंबर से आकाश आनंद को यूपी में उतार दिया जाएगा। वे जिला और विधानसभा स्तर पर यात्राएं करेंगे, माहौल गर्म रखेंगे। मायावती खुद 15-16 घंटे मंथन कर रही हैं, कैडर को एकजुट करने, अन्य जातियों को साधने पर फोकस। 2022 में बसपा को सिर्फ एक सीट मिली, 2017 में 19, लेकिन 2007 में 206 सीटों का रिकॉर्ड है। तब दलित-ब्राह्मण गठजोड़ ने कमाल किया। अब मुस्लिम और बैकवर्ड वोट जोड़कर वही जादू दोहराने की कोशिश है। रैली में मुस्लिम नेताओं जैसे शमसुद्दीन राइन, नौशाद अली, बाबू मुनकाद अली की मौजूदगी इसका प्रमाण थी। मायावती ने मुस्लिम मुद्दों पर खुलकर बोला, जो सपा के वोट बैंक को चोट पहुंचा सकता है।

राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि बसपा की यह कमबैक कोशिश यूपी की सियासत को त्रिकोणीय बना देगी। सपा के दलित वोटों पर असर पड़ेगा, क्योंकि 2024 लोकसभा में बसपा का वोट शेयर घटकर 8-10 प्रतिशत रह गया। लेकिन रैली ने दिखा दिया कि कैडर अभी भी मजबूत है। भाजपा के लिए भी चुनौती है, क्योंकि मायावती का सॉलिड वोट बैंक मोदी लहर में भी नहीं डगमगाया। मायावती ने रैली में कहा, 'हमने ऐतिहासिक काम किए थे, अब बसपा की सरकार जरूरी है।' जानकारों का मानना है कि 2012 में भाजपा को 10-50 हजार वोट मिलते थे, कोई नहीं मानता था कि वे सत्ता में आएंगे। लेकिन 2014 में जादू चल गया। वैसे ही 2027 में बसपा का समय है। मायावती की तैयारी अंदरखाने जोरों पर है। वे जो कहती हैं, वो करती हैं। बंद कमरे में जातीय गणित बिठा रही हैं, विरोधियों की हर चाल पर नजर।

यह रैली बसपा के पुनरुत्थान का प्रतीक बनी। आकाश आनंद की भूमिका बढ़ेगी, बामसेफ एक्टिव होगा, टिकट पारदर्शी होंगे। पूर्वांचल पर विशेष फोकस रहेगा, जहां बसपा का कैडर मजबूत है। अगर दलित-मुस्लिम-बैकवर्ड का गठजोड़ कामयाब रहा, तो 230 सीटों का लक्ष्य हासिल हो सकता है। सपा को सतर्क रहना होगा, क्योंकि मायावती का वोटर 'हवा' से नहीं, 'जड़ों' से जुड़ा है। भाजपा भी निगरानी रखे, क्योंकि बसपा का उभार उनका वोट भी काट सकता है। 2027 का चुनाव अब महज भाजपा-सपा की लड़ाई नहीं रहेगा। मायावती ने साबित कर दिया कि हाथी अभी भी जिंदा है, और वह सत्ता की दहलीज पर दहाड़ मारने को तैयार है। यूपी की सियासत में यह नया अध्याय बहुजन समाज की उम्मीदों को पंख देगा, और विपक्ष को आईना दिखाएगा।


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